देवरानी दाई मंदिर तुरसी मध्य प्रदेश

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देवरानी दाई

तुरसी गांव में उपस्थित देवरानी दाई मंदिर कार्तिक पूर्णिमा से यहाँ पर देवरानी मंदिर में मेले की शुरुआत हो जाती हैं। घटामाली नदी के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच यह आस्था का मेला है। देवरानी दाई का मंदिर भक्तों से और नदी तट सैलानियों से भरना शुरू हो जाता है। देवरानी दाई का मंदिर घटामाली नदी के तट पर स्थित है। यहां गिरने वाला विशाल झरना इस स्थल को प्राकृतिक दृष्टि से आकर्षक बनाता है। वहीं इस ठेठ देहाती मेले का भदेसपन इसे अन्य मेलों से अलग बनाता है। देवरानी मंदिर के समीप घटामाली नदी एक कुंड में गिरती है। इस कुंड को लेकर कई किवदंतिया प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि इस कुंड में एक महिला गिर गई थी। इसी दौरान गाय की पूंछ पकड़कर उसी परिवार की महिला वहां गई। यहां सोने की नथ पहने एक मछली दिखाई दी थी। देवरानी और भाभी से संबंधित इस कथा के चलते इस कुंड का नाम देवरानी कुंड और समीप के मंदिर की देवी का नाम देवरानी दाई पडा। घने जंगल में स्थित मंदिर की इस देवी के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है। लोगों की इस मंदिर के प्रति श्रद्धा के भी कई कारण है। इनमें से एक है खोए पशु तलाशने की देवी की चमत्कारिक क्षमता। ग्रामीण मानते हैं कि जब कभी इस जंगल में पशु खो जाए तो देवी के मंदिर के समीप पेड़ पर पशुओं को बांधने की रस्सी (गिरमा) बांधकर पशुओं को तलाशने निकलों। चंद पलों में ही गुम हुए पशु मिल जाते हैं। इसी का परिणाम है कि इस पेड़ पर बड़ी मात्रा में गिरमे बंधे हैं।


ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए देवरानी का मेला तफरीह के साथ भक्ति का मौका लेकर आता है। इसलिए पूरा परिवार यहां पहुंचता है। परिवार के लोग मंदिर में जब तक पूजा करते हैं। इधर नदी तट पर भोजन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। बड़ी संख्या में लोग नदी तट पर भोजन बनाते मिलते हैं। जो लोग घर से सामान लेकर नहीं आते उनके लिए यहां सब कुछ मिलता है।


मेले में सबसे ज्यादा बिकने वाली चीज है सिंघाड़ा और आईना है। सिंघाड़े जगह जगह उबलते दिख जाते हैं। वहीं मेले से लौटते लोगों के हाथ में आईना होता है। शहर की दुकानों से आईना खरीदकर ले जाना कठिन होता है। वाहनों से लौटने में टूटने का डर होता है। इस मेले से आइना खरीदकर ले जाना ज्यादा सहज है। सभी यहां पैदल पहुंचते है। पैदल पहुंचने से आइना सुरक्षित घर पहुंच जाता है।


इस मेले में तंबू भी लगते है। कई लोग यहां तंबू में रहकर ग्रामीण जीवन का आनंद उठाते हैं। आमतौर पर घटामाली का यह जंगल शांत रहता है। कभी कभी दिन में जंगली कौए महोका के बोलने की आवाज गूंजती रहती है। इस चुप्पी को कार्तिक पूर्णिमा तोड़ती है। इस दौरान गाय के गले में बंधी घंटी, बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों से बंजते घुंघरू, पहाड़ के पत्थरों को चुनौती देती मोटर बाइक की घरघराती आवाज और मेले में सामान बेचने का प्रयास करते दुकानदारों की चिल्लपों जंगल की इस शांती को बेधकर यहां जीवन का रस घोल देती है।

देवरानी दाई मंदिर गाँव तुरसी और पंचायत सेमरताल में पड़ता हैं यहां पगारा से होकर पहुंचा जा सकता है। पगारा से सेमरताल होते हुए घटामाली नदी पार कर एक किलोमीटर पैदल चल मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। मेले के दौरान यहां पहुंचने के लिए वाहन चलते है।