तोषमणि

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तोषमणि हिन्दी कवि थे।

परिचय[संपादित करें]

जैसा कि कवि के आत्मकथन

शुक्ल चतुर्भुंज को सुत तोष, बसै सिंगरौर जहाँ रिषि थानो।
दच्छिन देव नदी निकटै दस कोस प्रयागहि पूरब मानौ

से प्रकट है कि वे प्रयाग से पूर्व दस कोस दूर गंगातट पर स्थित सिंगरौर (शृंगवेरपुर) गाँव के निवासी चतुर्भुज शुक्ल के लड़के थे। यह सिंगरौर वही है जिसका जिक्र रामायण में आया है और जो ऋषि शृंगी की तपोभूमि भी रहा। तोषमणि ने प्रसिद्ध रीतिग्रंथ "सुधानिधि" की रचना सं 1691 आषाढ़ पूर्णिमा गुरुवार को की। इसके महत्व का अनुमान इसलिये भी लगाया जा सकता है कि केशवदास के पश्चात् समस्त रसों का इतना सुंदर वर्णन करनेवाला कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है। "सुधानिधि" की सं 1948 की एक प्रति अयोध्यानरेश के पुस्तकालय में देखी गई है। ग्रंथ में कुल 183 पृष्ठ और 560 नाना छंद हैं। इसके मुख्य प्रतिपाद्य विषय हैं -- नौरस, भाव, भावोदय, भावशांति, भावशबलता, रसाभास, रसदोष, वृत्ति, नायिकाभेद, सखा-सखी-भेद और हाव आदि। "विनयशतक" और "नखशिख" कवि की दो अन्य कृतियाँ भी खोज में मिली हैं।

तोषमणि में कवित्व एवं आचार्यत्व का अच्छा संयोग मिलता है किंतु उनका कवित्वपक्ष जितना प्रौढ़ और पुष्ट है उतना रीति-काव्य-विवेचन नहीं। अपनी सारी खूबियों के साथ कवि-अपेक्षित सरसता और काव्यनिपुणता उसमें विद्यमान है। सघन होने पर भी कवि का भावविधान कहीं फँसता और अटकता नहीं है। हाँ, कहीं कहीं मिल जानेवाली ऊहात्मक अत्युक्तियाँ मजा किरकिरा कर देती हैं। भाषा, भाव, अलंकार तथा अभिव्यंजनाकौशल के प्राय: सभी तत्वों से उसकी कविता अपूर्ण है। सहृदयसंवेद्य सरसता और हृदयहारी उक्तिचमत्कार रसखान की याद दिलाता है। कवि की ब्रजभाषा में स्वाभाविक प्रवाह और प्रांचलता के साथ आलंकारिक सौंदर्य सहज रूप में आया है।