तूम्बा

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कोल्हान के आदिवासी ग्रमीण इलाकों मे अलग ही व्यवस्था बनाये रखा है।गर्मी के दिन मे या अन्य दिनों पानी ले जाने के लिए लौकी का तुंबा  प्रयोग किया जाता है।आज नई तकनीकों के संसाधनों उपलब्ध हों, लेकिन देसी वस्तुएं आज भी क्षेत्र में विद्यमान हैं।पानी को ठंडा रखने आज भी लौकी को सुखाकर बनाए गए तुम्बा को अपने साथ लेकर चलते हैं जिसका वाटर बैग के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

बाहरी आवरण मोटा होता है इसलिए पानी ठंडा रहता है । सुराही के आकार के बर्तन में पानी ठंडा ही रहता है। इस लौकी का आकार सुराही की तरह होने के कारण इसका द्वार छोटा होता है, जिसमें सूर्य की किरणें सीधे इसमें प्रवेश नहीं कर पातीं, जिससे पानी ठंडा रहता है।  लौकी का बाहरी आवरण मोटा होता है, यह खासियत कुम्हड़ा व बाकी चीजों में नहीं होती। आवरण मोटा होने के कारण टूटने की गुंजाइश नहीं रहती व ताप को अंदर जाने से रोकती है। देसी वाटर फ्रिज़ की तरह काम करती है।जो घर से निकलते वक्त अपने साथ लेकर निकलते है।

तूम्बे

जो प्लास्टिक फ्री और केमिकल फ्री की नींव सदियों पहले चलती आ रही है।