तित्तिरि

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तित्तिरि एक शाखा-प्रवर्तक ऋषि थे। ये वैशम्पायन के बड़े भाई थे। एक ऋषि के रूप में इनका स्पष्ट उल्लेख महाभारत में मिलता है।

परिचय[संपादित करें]

महाभारत के सभापर्व में युधिष्ठिर की सभा में उपस्थित रहने वाले ऋषियों में वैशम्पायन याज्ञवल्क्य से पहले इनका नाम लेते हैं।[1] शान्तिपर्व में उपरिचर वसु के यज्ञ में एक सदस्य के रूप में आद्य कठ के साथ इनका स्पष्ट उल्लेख वैशम्पायन के बड़े भाई (वैशम्पायनपूर्वजः) के रूप में हुआ है।[2]

अनेक विद्वानों का अनुमान है कि कृष्णयजुर्वेदीय तैत्तिरीय शाखा के मूल आचार्य यही रहे होंगे।[3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. महाभारत, सभापर्व- ४-१२, महाभारत (हिन्दी अनुवाद सहित), खण्ड-१, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण- संवत् २०५३, पृष्ठ-६७३.
  2. महाभारत, शान्तिपर्व-३३६-९, महाभारत (हिन्दी अनुवाद सहित), खण्ड-५, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण- संवत् २०५३, पृष्ठ-५३३७.
  3. भारतवर्षीय प्राचीन चरित्रकोश, सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव, भारतीय चरित्रकोश मंडल, पूना, संस्करण-१९६४ ई॰, पृष्ठ-२४५.