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जामाई षष्ठी अथवा पाहुन षष्ठी जो मिथिला और बंगाल का पारिवारिक पर्व है जो अपने जमाई/पाहुन के लिये मनाया जाता है। यह पर्व गर्मी के मौसम में ही आता है (बंगाल और मिथिला में जैष्ट मास में पड़ता है)। बंगाल और मिथिला की उपजाऊ धरती पर इस महिने में आम, लीची, कृष्ण बदररी, पके कटहैल आदि फल होते है। इस शुभ दिन के अवसर पर बंगाल और मिथिला के परिवारों मे पाहुन के लिये हर्ष और उल्लास का समय होता है पूरा परिवार ही इस दिन आनन्दित रहता है।
भारत की संस्कृति में और भारत के हर समाज में ही पाहुन को अधिक महत्व दिया जाता है, बंगाल और मिथिला इसी को दर्शाता है। जिसमें मिथिला और बंगाल में इस पर्व को बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व पर यहां के जनमानस का आचरण बंगाल और मिथिला की संस्कृति का अविभाजित अंग है। कहते हैं की एक बार एक लालची बूढी महिला थी। वह हमेशा सारा भोजन खा जाती थी और दोष बिल्ली पर डाल देती थी। बिल्ली माँ षष्ठी का वाहन है और उसने जाकर माँ षष्ठी से बूढी औरत की शिकायत की। माँ षष्ठी ने उस महिला को सबक सिखाने के लिये उसकी पुत्री और पाहुन को ले जाती है। तभी अपनी त्रुटी को मानते हुए बूढी महिला माँ की पूजा अर्चना करती है और माँ उसे उसकी पुत्री और पाहुन को लौटा देती है। इसी से प्रेरणा ले कर आज तक हजारों माँ और सासु माँ इस पर्व/पबनी को निरन्तर मनाते चले आ रहे हैं।
मिथिला और बंगाल में इस पर्व को बडे़ ही विभित्र ढ़ग से मनाया जाता है। सास अपने पाहुन और पुत्री को घर पर बुलाती है और सास इस समय अनेक विधि-विधान को पूरा करती है। सुबह शीघ्रे स्नान आदि करके उपवास रखते हुए एक कूलो (सूप) में धान, दुर्बा (घास) दही, मिठाई के साथ पांच तरह के फल को कूलो (सूप) में सजा कर एक हाथ का पंखा भी रख कर चन्दन आदि के साथ और षष्ठी देवी की पूजा करती हैं। षष्ठी पूजा के बाद पवित्र जल को पुत्री और पाहुन पर धीरे धीरे छिड़का जाता है और सास अपनी पुत्री और पाहुन की लम्बी आयु की कामना षष्ठी देवी से करती है। पूजा के बाद सास जमाई को खूब सारे उपहार देती है और उनके सिर पर हाथ रख कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। इस दिन पाहुन भीं अपने ससुराल जाते समय खूब मिठाई, फल इत्यादि लेकर जाते हैं और अपनी अपनी सासु माँ के लिए भी उपहार लेकर जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि पुरूष के हृदय तक का मार्ग उदर से हो कर जाता है। भारत में भोजन से बढ़ कर कुछ नहीं है, भोजन इस पर्व का एक महत्वपूर्ण भाग है। लूची (पूडी़) और आलू और पटोल की तरकारी, रओ माछ का मूरी, 6 प्रकार का तरुआ(बैगन, खमहोर,तिलकोर,पटोल,कदुआ,अल्लू), सकरोरी, अदौरी, बोरी,
मोयदा (मैदा) की लूची या दाल पूड़ी कचौड़ी और हींग दही आलू की तरकारी आदि सुबह का नाश्ता दोपहर में चावल, बैंगुन भाजा, मूँग दाल, प्याज के पकोडे, मच्छली करी, या अन्ड़ा करी या मटन चिकिन, पापड़, खट्टे आम की चटनी आदि दोपहर का भोजन। इसके वाद मिठाई में रसगुल्ला, मिथिला में मखान की खीर, गुलाबजामुन, पांतुआ, आम दोही, मिष्टि दोई, आदि बनता है। जमाई लोग खूब मजे से खाते पीते हैं आनन्द करते हैं खूब हास परिहास करते हैं यह एक दिन सुसराल में जमाई/पाहुन का सत्कार होता है।