जगद्धात्री

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चंदननगर में जगद्धात्री माँ की प्रतीमा

जगद्धात्री (= जगत् + धात्री = जगत की रक्षिका) दुर्गा का एक रूप हैं। यह सिंहवाहिनी चतुर्भुजा, त्रिनेत्रा एवं रक्तांबरा हैं। हिंदू धर्म में दुर्गा के रूप की पूजा का आरंभ अज्ञात है। शक्तिसंगमतंत्र, उत्तर कामाख्यातंत्र, भविष्यपुराण स्मृतिसंग्रह और दुर्गाकल्प आदि ग्रंथों में जगद्धात्री पूजा का उल्लेख मिलता है। केनोपनिषद में हेमवती का वर्णन जगद्धात्री के रूप में प्राप्त है। अतएव इन्हें अभिन्न मानते है। कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को इनकी पूजा का विधान है। इनकी पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और बिहार (मधुबनी)में होती है। वहाँ भी चन्दननगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में जगद्धात्री पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है।

  • कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत रामकृष्ण की पत्नी शारदा देवी ने रामकृष्ण मिशन में की थी। वह भगवान के पुनर्जन्म में बहुत विश्वास करती थी। इसकी स्थापना के बाद दुनिया के कोने-कोने में मौजूद रामकृष्ण मिशन के केंद्र में इस त्योहार को मनाने की शुरुआत हुई l
  • जगतधात्री या जगद्धात्री ( अनुवाद विश्व की वाहक ) हिंदू देवी पार्वती का एक रूप है, जिसकी पूजा भारतीय राज्यों पश्चिम बंगाल और ओडिशा में की जाती है। उनकी पूजा और अनुष्ठान तंत्र से लिए गए हैं, जहां वह दुर्गा और काली के अलावा सत्व का प्रतीक हैं, जो क्रमशः रजस और तमस के प्रतीक हैं।

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