छ्न्द
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वर्णों की संख्या, क्रम, मात्रा और गति-यति के नियमों से नियोजित पद्य रचना छन्द कहलाती है। छंद का सबसे पहले उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। छंद को पद्य रचना का मापदंड कहा जा सकता है। बिना कठिन साधना के कविता में छंद योजना को साकार नहीं किया जा सकता।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- छंद क्या है? - साहित्यिक पत्रिका अनुभूति पर लेख
- हिंदी काव्य के अवयव - रस, छंद तथा अलंकार : हिन्दी चिट्ठा गँठजोड़ पर लेख