चतुर्थ कल्प
तृतीय कल्प (Tertiary period) के अंतिम चरण में पृथ्वी पर अनेक भौगोलिक एवं भौमिकीय परिवर्तन मिलते हैं, जिनसे एक नए युग का प्रादुर्भाव होना निश्चित हो जाता है। इन्हीं परिवर्तनों के आधार पर डेसनोआर ने 1829 ई. में चतुर्थ कल्प (Quarternary age) की कल्पना की। यद्यपि अब भूशास्त्रवेत्ताओं का मत है कि इस नवीन कल्प को तृतीय कल्प से पृथक् नहीं किया जा सकता है, फिर भी दो मुख्य कारणों से इस काल को अलग रखना उचित नहीं होगा। इनमें से एक है इस समय में हुआ मानव जाति का विकास और दूसरा इस काल की विचित्र जलवायु।
चतुर्थ कल्प का प्रारंभ तृतीय कल्प के अतिनूतन युग (प्लायोसीन/ Pliocene) युग के बाद होता है। इसके अंतर्गत दो युग आते हैं :
- एक प्राचीन युग, जिसे अत्यंतनूतन युग (प्लायस्टोसीन / Pleistocene) कहते हैं और
- दूसरा आधुनिक युग, जिसे नूतनतम युग (होलोसीन / Holocene) कहते हैं।
'प्लायस्टोसीन' नाम सर चार्ल्स लायल ने सन् 1839 ई. में दिया था।
विस्तार
[संपादित करें]इस कल्प के शैलसमूहों का विस्तार मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्ध में मिलता है। इन सभी जगहों में तृतीय समुद्री निक्षेप, हिमनदज निक्षेप, पीली मिट्टी और नदीय निक्षेपों के ही शैलसमूह मिलते हैं।
चतुर्थ कल्प की विशेषताएँ और भौमिकीय इतिहास
[संपादित करें]इस कल्प की विशेषताओं में हिमनदीय जलवायु और मानवीय विकास मुख्य रूप से आते हैं। इस समय ताप कम होने के कारण समस्त उत्तरी गोलार्ध बरफ से ढक गया था। इसके प्रमाणस्वरूप यूरोप, एशिया तथा उत्तरी अमरीका में अनेक हिमनदों के अस्तितव के संकेत मिलते हैं। भारत में यद्यपि हिमनदों के होने का कोई सीधा प्रमाण नहीं मिलता, तथापि ऐसे निष्कर्षीय प्रमाण मिलते हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ की जलवायु भी अतिशीतोष्ण हो गई थी। भारत के उत्तरी भाग में इन हिमनदों के अस्तित्व के कोई स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं, किंतु दक्षिणी प्रायद्वीप में हिमनदों के अस्तित्व का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता। दक्षिणी प्रायद्वीप में अब भी ऊँची पहाड़ियों पर, जिनमें नीलगिरि, शेवराय, पलनीस और बिहार प्रदेश की पारसनाथ की पहाड़ियाँ हैं, ऐसे जीवजंतु और वनस्पतियाँ मिलती हैं जो आजकल भारत के उत्तरी प्रदेशों (कश्मीर, गढ़वाल इत्यादि) में ही सीमित हैं। विद्वानों का मत है कि शीतोष्ण जलवायु में रहनेवाले ये जीवजंतु किसी भी प्रकार से राजस्थान की गरम और रेतीली जलवायु से होकर इन पहाड़ियों पर नहीं पहुँच सकते थे। अत: उनके आगमन का समय चतुर्थ कल्प की हिमनदीय अवधि ही हो सकती है, जब राजस्थान की जलवायु शीतोष्ण थी ओर इस प्रदेश का कुछ भाग कहीं कहीं बरफ से ढका हुआ था।
वर्गीकरण
[संपादित करें]चतुर्थ कल्प सिस्टम के उपविभाग | |||
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सिस्टम | श्रेणी | स्टेज | आयु (Ma) |
चतुर्थ कल्प | नूतनतम युग | 0–0.0117 | |
अत्यंतनूतन युग | Late Pleistocene | 0.0117–0.126 | |
मध्य अत्यंतनूतन युग | 0.126–0.781 | ||
कैलेब्रियन प्रावस्था | 0.781–1.806 | ||
Gelasian | 1.806–2.588 | ||
नियोजीन युग | अतिनूतन युग | Piacenzian | अधिक पुराना |
भारत में चतुर्थ कल्प के निक्षेप
[संपादित करें]चतुर्थ कल्प में भारत में पाए जानेवाले निक्षेपों में कश्मीर के हिमनदीय निक्षेप, जो वहाँ करेवा के नाम से विख्यात हैं, मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त उच्च (अपर) सतलज और नर्मदाताप्ती की तलहटी मिट्टी, राजस्थान के रेत के पहाड़, पोटवार प्रदेश के निक्षेप, जो हिमनदों के गलने से लाई हुई मिट्टी और कंकड़ से बने हैं, पंजाब एवं सिंध की पीली मिट्टी और भारत के पूर्वी किनारे पर की मिट्टी भी इसी युग में निक्षिप्त हुई थी। इस प्रकार पूर्व कैंब्रियन के बाद इसी कल्प के निक्षेपों का विस्तार आता है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Gibbard, P.L., S. Boreham, K.M. Cohen and A. Moscariello, 2005, Global chronostratigraphical correlation table for the last 2.7 million years v. 2005c., PDF version 220 KB. Subcommission on Quaternary Stratigraphy, Department of Geography, University of Cambridge, Cambridge, England
- Gibbard, P.L., S. Boreham, K.M. Cohen and A. Moscariello, 2007, Global chronostratigraphical correlation table for the last 2.7 million years v. 2007b., jpg version 844 KB. Subcommission on Quaternary Stratigraphy, Department of Geography, University of Cambridge, Cambridge, England
- Silva, P.G. C. Zazo, T. Bardají, J. Baena, J. Lario y A. Rosas, 2007, Tabla Cronoestratigráfica del Cuaternario aequa., PDF version 1.4 MB. asociación española para el estudio del cuaternario (aequa), Departamento de Geología, Universidad de Alcalá Madrid, Spain. (Corelation chart of European Quaternary and cultural stages and fossils)