गुरुमापा

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गुरुमापा चावल खाते हुए

गुरुमापा नेपाल मंडल के लोककथाओं का एक पौराणिक पात्र है। किंवदंतियों के अनुसार इन्हें अवज्ञाकारी बच्चों को ले जाने के रूप में वर्णित किया जाता है और यही कारण है कि स्थानीय निवासियों का मानना है कि इन्हें काठमांडू के एक खेत (टुंडीखेल) में निर्वासित कर कैद कर दिया गया है। गुरुमापा की कहानी नेवार समाज की सबसे प्रसिद्ध लोक कथाओं में से एक है। इन्हें एक भयानक चेहरे और उभरे हुए नुकीले-नुकीले दांतों और नाखूनों के साथ चित्रित किया जाता है।[1][2]

कथा[संपादित करें]

केश चंद्र[संपादित करें]

कहानी काठमांडू के एक पवित्र प्रांगण, इतुंबाहा में रहने वाले केश चंद्र नामक एक जिद्दी व्यक्ति के साथ शुरू होती है। जो अपनी सारी संपत्ति को जुआ में दांव पर लगाने के बाद हार जाता है और फिर वह अपनी बहन के साथ रहने चला जाता है। लेकिन जुआ खेलने की आदत उसकी बनी रही। वह अपनी बहन के घर में चेरियाँ करने लगा। एक दिन उसने उस थाली को भी चुरा लिया जिस पर उसका दोपहर का भोजन परोसा जाता था, इससे नाराज होकर उसकी बहन ने उसे सबक सिखाने की इच्छा से उसके चावल फर्श पर परोसना शुरू कर दिया। इस घटना से बुरी तरह आहत केशचंद्र ने रूमाल में खाना इकट्ठा किया और शहर के बाहर जंगल की ओर चला गया। वहाँ भूख लगने पर उसने चावल को खोला और पाया कि वह चावल खराब हो गए था और उसके चारों तरफ कीड़े लग गए थे इसलिए उसने भोजन को धूप में सुखाने के लिए फैला दिया और सो गया।[3][4][5]

गुरुमापा का आगमन[संपादित करें]

जब केशचंद्र जागता है तो वह देखता है कि कबूतरों ने सब कुछ खा लिया है। इस बात से वह इतना दुखी हुआ कि फूट-फूट कर रोने लगा। उस पर दया करते हुए कबूतरों ने अपना गोबर छोड़ दिया, जो सोने में बदल गया। यह सोना इतना था कि केशचंद्र अकेले यह सब नहीं उठा सकता था। जब वह सोच रहा था कि क्या किया जाए तो उसी वक्त उसने गुरुमापा को देखा, जो एक आदमखोर राक्षस था और जो जंगल में ही रहता था। वह शिकार की गंध से इस ओर आकर्षित हो गया था। केशचंद्र ने उसे चाचा कहकर शांत किया और उसे एक दावत का वादा करके उसको साथ में सोने को अपने घर ले जाने के लिए राजी किया और उसे यह अधिकार भी दिया कि वह गांव के बच्चों को अगवाह कर सकता है बस शर्त यह थी कि उनके माता-पिता उन्हें बुरा और जिद्दी मान बैठे हो। केशचंद्र गुरुमापा को अपने घर इतुंबाहा ले गया और उसे अटारी में रहने दिया। जैसे-जैसे साल बीतने लगे, वैसे-वैसे बच्चे गायब होने लगे।[6]

टुंडीखेली से बहिष्कृत करना[संपादित करें]

जब लोगों को गुरुमापा के संदर्भ में पता चला तब स्थानीय निवासियों ने फैसला किया कि गुरुमापा को पड़ोस में रखना सुरक्षित नहीं है। तब लोगों ने उनसे वादा लिया कि अगर वह टुंडीखेल के खेत में रहने के लिए राजी हो जाता हैं तो उन्हें उबले हुए चावल और भैंस के मांस का वार्षिक भोज प्रदान किया जाएगा और इस तरह उसको बाहर जाने के लिए राजी कर लिया गया। आज तक इलाके के लोग होली की रात को गुरुमापा के लिए एक दावत तैयार करते हैं और उसे टुंडीखेल में छोड़ देते हैं।[7][8][9]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Slusser, Mary Shepherd (1982). Nepal Mandala: A Cultural Study of the Kathmandu Valley. Princeton University Press. ISBN 0691031282, 9780691031286. Page 364.
  2. Finlay, Hugh; Everist, Richard and Wheeler, Tony (1999). Nepal: Lonely Planet Travel Guides. Lonely Planet. ISBN 0864427042, 9780864427045. Page 154.
  3. Pal, Pratapaditya and National Centre for the Performing Arts (India) (2004). Nepal, old images, new insights. Marg Publications. ISBN 8185026688, 9788185026688. Page 108.
  4. "Lonely Planet review for Itum Bahal". Lonely Planet. 2012. अभिगमन तिथि 10 July 2012.
  5. Goodman, Jim (1981). Guide to enjoying Nepalese festivals: an introductory survey of religious celebration in Kathmandu Valley. Kali Press. Page 21.
  6. "Tales Of Nepali Mystical Creature Gurumapa". OMG Nepal. 22 जून 2021. अभिगमन तिथि 20 नवम्बर 2021.
  7. "Polishing up the past". Nepali Times. 22–28 July 2005. मूल से February 23, 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 July 2012.
  8. Child, John (15 March 2011). "Colors and Rituals Mark Holi in Nepal". News Blaze. मूल से 11 जून 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 July 2012.
  9. Bisht, Kapil (November 2011). "A walk into the heritage". ECS Nepal. मूल से 11 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2013.