गंगा-जमुनी तहज़ीब

गंगा-जमुनी तहज़ीब उत्तरी भारत के मैदानों, विशेषकर दोआब क्षेत्र की उस संस्कृति को कहते हैं जिसमें हिन्दू-मुस्लिम समुदाय पारस्परिक भाईचारे के साथ रहते हैं।[1]यह नाम गंगा और यमुना (जिसे ही जमुना कहते है) नदी से आया है। इन नदियों के बीच के मैदानी इलाकों में रहने वाली आबादी मुस्लिम सांस्कृतिक तत्वों के साथ हिन्दू सांस्कृतिक तत्वों को मिश्रित रूप से अपनाती है। यह संस्कृति दक्षिण एशिया के इतिहास में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच मेल-मिलाप के कारण उभरी।
इस तहज़ीब (संस्कृति) में भाषा की एक विशेष शैली, साहित्य, मनोरंजन, वेशभूषा, शिष्टाचार, विश्वदृष्टि, कला, वास्तुकला और व्यंजन शामिल हैं। यह कमोबेश हिन्दुस्तान क्षेत्र यानी उत्तरी दक्षिण एशिया के मैदानी इलाकों में व्याप्त है। भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों द्वारा एक दूसरे के त्यौहार मना के सांप्रदायिक सद्भाव प्रकट करना गंगा जमुनी तहज़ीब मानी जाती है।[2]
गंगा-जमुनी तहज़ीब के कुछ ऐतिहासिक उदहारण हैं, उर्दू भाषा का उद्भव, मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा अवधी भाषा में लिखी पद्मावत, भक्ति काल के कई कवि जैसे कि कबीर जो मुसलमान और हिन्दू दोनों के तत्व के साथ रचनाएँ लिखें। आधुनिक समय में लखनऊ या हैदराबाद की नवाबी संस्कृति इसका उदहारण मानी जाती है। गंगा-जमुनी तहज़ीब वाक्यांश का उद्गम अवधी भाषा से माना जाता है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "MP News: रामनवमी पर दिखी गंगा जमुनी तहजीब, जहां पिछले साल जुलूस पर बरसे थे पत्थर, वहां लोगों ने बरसाए फूल". अमर उजाला. Retrieved 12 मई 2023.
- ↑ "Palamu News : सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है जिला, रामनवमी पर फिर दिखा गंगा जमुनी तहजीब का अद्भुत नजारा". न्यूज़ 18. 30 मार्च 2023. Retrieved 12 मई 2023.