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सिन्धु-गंगा का मैदान

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सिन्धु-गंगा मैदान का योजनामूलक मानचित्र
उत्तर पश्चिम दिशा से ली गयी अंतरिक्ष यात्री की इस तस्वीर में सिन्धु-गंगा के मैदान पर पीली रोशनी के गुच्छे उत्तरी भारत और उत्तरी पाकिस्तान के कई बड़े और छोटे शहरों को दिखाते हैं। नारंगी रेखा भारत-पाकिस्तान सीमा है।

सिन्धु-गंगा का मैदान, जिसे उत्तरी मैदानी क्षेत्र तथा उत्तर भारतीय नदी क्षेत्र भी कहा जाता है, एक विशाल एवं उपजाऊ मैदानी इलाका है। इसमें उत्तरी तथा पूर्वी भारत का अधिकांश भाग, पाकिस्तान के सर्वाधिक आबादी वाले भू-भाग, दक्षिणी नेपाल के कुछ भू-भाग तथा लगभग पूरा बांग्लादेश शामिल है। इस क्षेत्र का यह नाम इसे सींचने वाली सिन्धु तथा गंगा नामक दो नदियों के नाम पर पड़ा है।

खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी होने के कारण इस इलाके में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है।

7,00,000 वर्ग किमी (2,70,000 वर्ग मील) जगह पर लगभग 1 अरब लोगों (या लगभग पूरी दुनिया की आबादी का 1/7वां हिस्सा) का घर होने के कारण यह मैदानी इलाका धरती की सर्वाधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है। सिन्धु-गंगा के मैदानों पर स्थित बड़े शहरों में अहमदाबाद, लुधियाना, अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, जयपुर, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, कोलकाता, ढाका, लाहौर, फैसलाबाद, रावलपिंडी, इस्लामाबाद, मुल्तान, हैदराबाद और कराची शामिल है। इस क्षेत्र में, यह परिभाषित करना कठिन है कि एक महानगर कहां शुरू होता है और कहां समाप्त होता है।

सिन्धु-गंगा के मैदान के उत्तरी छोर पर अचानक उठने वाले हिमालय के पर्वत हैं, जो इसकी कई नदियों को जल प्रदान करते हैं तथा दो नदियों के मिलन के कारण पूरे क्षेत्र में इकट्ठी होने वाली उपजाऊ जलोढ़ मिटटी के स्रोत हैं। इस मैदानी इलाके के दक्षिणी छोर पर विंध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाएं तथा छोटा नागपुर का पठार स्थित है। पश्चिम में ईरानी पठार स्थित है।

इंडो-गैंजेटिक मैदानी क्षेत्र का एक भाग

कुछ भूगोलशास्त्री सिन्धु-गंगा के मैदान को कई भागों में विभाजित करते हैं: सिंधु घाटी, पंजाब के मैदानी इलाके, हरियाणा के मैदानी इलाके, तथा गंगा के मध्य एवं निचले इलाके. ये क्षेत्रीय अंतर मुख्य रूप से जल की उपलब्धता पर आधारित हैं।

एक अन्य परिभाषा के अनुसार, सिन्धु-गंगा के मैदान दिल्ली रिज द्वारा दो घाटियों में विभाजित हैं; पश्चिमी भाग में पंजाब और हरियाणा के मैदानी इलाके स्थित हैं और पूर्वी भाग गंगा-ब्रह्मपुत्र की जल निकासी प्रणालियों से बना है। यह विभाजन समुद्र की सतह से केवल 300 मीटर ऊपर है, जिसके कारण ऐसी धारणा है कि सिन्धु-गंगा के मैदान दोनों घाटियों के बीच निरंतर (अविभाजित) प्रतीत होते हैं।

पंजाब एवं हरियाणा के मैदानी इलाकों की सिंचाई रावी, ब्यास और सतलुज नदियों द्वारा की जाती है। इन नदियों पर सिंचाई परियोजनाओं में हुई प्रगति के कारण पानी का प्रवाह कम हुआ है, जो भारत के पंजाब राज्य की निचली घाटी के इलाकों तथा पाकिस्तान में सिंधु घाटी तक पहुंचता है। सिंचाई की वृद्धि से हरियाणा के किसानों को होने वाला लाभ उन प्रभावों की वजह से विवादित है जो भारत और पाकिस्तान, दोनों के पंजाब के क्षेत्रों के कृषि जीवन पर सिंचाई की वजह से पड़ा है।

मध्य गंगा पश्चिम में यमुना नदी से ले कर पूर्व में पश्चिम बंगाल तक फैली हुई है। गंगा के निचले इलाके और असम घाटी के इलाके मध्य गंगा के इलाकों से अधिक हरे हैं।

गंगा का निचला हिस्सा पश्चिम बंगाल में केंद्रित है, जहां यमुना से जुड़ कर गंगा डेल्टा बनाने के बाद, दोनों नदियां भारत में बहती हैं।

ब्रह्मपुत्र की शुरुआत तिब्बत में यरलुंग त्संगपो नदी के रूप में होती है तथा बांग्लादेश को पार करने से पहले यह अरुणाचल प्रदेश और असम से हो कर बहती है।

एक बड़े मैदान के रूप में, सटीक सीमा एक स्रोत से दूसरे स्रोत तक अलग-अलग हो सकती हैं। मोटे तौर पर, सिन्धु-गंगा का मैदान निम्न हिस्सों में फैला हुआ है:

  • उत्तर में कश्मीर;
  • पाकिस्तान का पंजाब क्षेत्र और

अरावली श्रृंखला;

इस मैदान का उपजाऊ तराई क्षेत्र नेपाल तक फैला है। इसके चारों ओर से हो कर गुजरने वाली नदियों में ब्यास, चंबल, चिनाब, गंगा, गोमती, सिन्धु, रावी, सतलुज और यमुना शामिल हैं। मिट्टी तलछट से भरपूर है, जिससे यह मैदानी इलाका दुनिया के उन मैदानों में से एक है जहां सबसे अधिक कृषि की जाती है। यहां के ग्रामीण क्षेत्र भी घनी आबादी वाले हैं।

सिन्धु-गंगा के मैदानी इलाके, जिन्हें "ग्रेट प्लेन" भी कहा जाता है, सिन्धु तथा गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के घास के विशाल मैदान हैं। ये पश्चिम में जम्मू व कश्मीर से लेकर पूर्व में असम तक हिमालय पर्वतों के समानांतर स्थित हैं तथा उत्तरी तथा पूर्वी भारत के अधिकांश क्षेत्रों तक फैले हैं। इन मैदानी इलाकों का क्षेत्रफल लगभग 700,000 वर्ग किमी (2,70,000 वर्ग मील) है और लंबाई के अनुसार चौड़ाई में कई सौ किलोमीटर तक का अंतर है। इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां गंगा एवं सिंधु और उनकी सहायक नदियां - व्यास, यमुना, गोमती, रावी, चंबल, सतलुज और चिनाब हैं।

दक्षिण एशिया तक सिन्धु-गंगा मैदानों का विस्तार.इन विशाल मैदानों को कभी-कभी चार खण्डों में वर्गीकृत किया जाता है:

  • भाबर क्षेत्र - हिमालय की तलहटी से सटा है और नदी की धाराओं के साथ नीचे लाए गए कंकड़ों और पत्थरों से बना है। चूंकि इस क्षेत्र की सरंध्रता बहुत अधिक है, अतः धारा भूमिगत रूप से प्रवाहित होती है। भाबर क्षेत्र आम तौर पर 7-15 किलोमीटर तक संकरा है।
  • तराई क्षेत्र - भाबर क्षेत्र के बाद आता है और नवीन जलोढ़ मिट्टी से बना हुआ है। भूमिगत धाराएं इस क्षेत्र में फिर से प्रकट होती हैं। यह क्षेत्र जरूरत से ज्यादा नम और सघन वनों से आच्छादित है। इस क्षेत्र में साल भर भारी वर्षा होती है और यहां विविध प्रकार के वन्य जीव बहुतायत में पाए जाते हैं।
  • बांगड़ क्षेत्र - पुरानी जलोढ़ मिट्टी से बना होता है और बाढ़ के मैदानों के जलोढ़ कगार का निर्माण करता है। गंगा के मैदानों में, इसकी निचली परत लेटराइट के भंडार से ढकी है।
  • खादर क्षेत्र - बांगड़ इलाके के बाद अपेक्षाकृत निचली भूमि पर स्थित है। यह अपेक्षाकृत नई व ताजा जलोढ़ मिटटी से बना है जो मैदान में नीचे की ओर बहने वाली नदियों द्वारा इकठ्ठा होती है।

सिन्धु-गंगा का इलाका, दुनिया का सबसे बड़ा जलोढ़ मिट्टी का निर्बाध विस्तार है जो अनेक नदियों द्वारा तलछट के जमाव से बना है। मैदानी इलाके समतल और ज्यादातर वृक्ष-रहित हैं, जिससे ये नहरों द्वारा सिंचाई के लिए अनुकूल हैं। यह क्षेत्र भूमिगत जल स्रोतों से भी समृद्ध है।

ये मैदान दुनिया के सबसे सघन खेती वाले क्षेत्रों में से एक है। उपजाई जाने वाली मुख्य फसलें चावल और गेहूं हैं, जिन्हें बारी-बारी से उपजाया जाता है। दूसरी फसलों में मक्का, गन्ना और कपास शामिल है। सिन्धु-गंगा के मैदान, दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में गिने जाते हैं।

जीव-जंतु

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अभी हाल ही तक, सिन्धु-गंगा के खुले घास के मैदान पशुओं की कई प्रजातियों के निवास-स्थान थे। खुले मैदानों में बड़ी संख्या में शाकाहारी पशु पाए जाते थे जिनमे गैंडों की तीन प्रजातियां (भारतीय गैंडे, जावा में पाए जाने वाले गैंडे, सुमात्रा में पाए जाने वाले गैंडे) भी शामिल थीं। ये खुले घास के मैदान कई मामलों में आधुनिक अफ्रीका के विशाल मैदानों जैसे थे। इन घास के मैदानों में बारहसिंगा, भैंसे, गैंडे, हाथी, शेर और दरियाई घोड़े उसी तरह से विचरण करते थे, जैसे वे आज अफ्रीका में करते हैं। अब विलुप्त हो चुके ओरॉक सहित, हाथियों के बड़े समूह, बारहसिंगा, हिरण, तथा घोड़ों के साथ जंगली पशुओं की कई प्रजातियां यहां रहती थीं। वन क्षेत्रों में जंगली सूअर, हिरण व साम्भर की कई प्रजातियां पाई जाती थीं। गंगा के करीब दलदली क्षेत्रों में दरियाई घोड़ों की विलुप्त प्रजातियों के साथ भैंसों के विशाल समूह चरते हुए नज़र आते थे।

इसलिए इतनी विशाल संख्या में जानवरों ने अवश्य ही मांसाहारी जानवरों की बड़ी संख्या को भी आकर्षित किया होगा. भेड़िये, सियार, धारीदार लक्कड़बग्घे, भारतीय चीते और एशियाई शेर ने खुले मैदानों पर अत्यधिक शिकार किया होगा जबकि बाघों और तेंदुओं ने आसपास के जंगलों में शिकार किया होगा. गंगा में बड़ी संख्या में घड़ियाल, मगरमच्छ और नदी में मिलने वाली डॉल्फिन मिलती थीं, जो मछलियों तथा कभी कभार नदी पार करने वाले झुंडों की संख्या को (शिकार द्वारा) नियंत्रित रखते थे।

सिन्धु-गंगा के मैदानों में मुख्यतः चावल और गेहूं की खेती की जाती है, जिन्हें बारी-बारी से उपजाया जाता है। अन्य फसलों में मक्का, गन्ना और कपास शामिल है।

वर्षा का मुख्य स्रोत दक्षिण पश्चिम मानसून है जो आम तौर पर सामान्य कृषि के लिए पर्याप्त है। हिमालय से निकलने वाली कई नदियां सिंचाई के प्रमुख कामों के लिए पानी उपलब्ध करती हैं।

पानी की आपूर्ति पर दबाव

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ऐसा माना जाता है कि तेजी से बढ़ रही आबादी (तथा इसके साथ-साथ मानसून तथा हिमालय के क्षरण को प्रभावित करने वाले अन्य कारक, जैसे वैश्विक गर्मी) के कारण भविष्य में इस क्षेत्र में पानी की अत्यधिक कमी का खतरा हो सकता है। यह क्षेत्र ब्रह्मपुत्र नदी और अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच भूमि का गठन करता है, गंगा, यमुना, चंबल घग्गर और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रसिद्ध नदियां इस क्षेत्र से हो कर बहती है।

इस क्षेत्र को पाकिस्तान में केन्द्रित सिन्धु घाटी सभ्यता के लिए जाना जाता है जो प्राचीन दक्षिण एशियाई संस्कृति के जन्म के लिए उत्तरदायी थी। समतल और उपजाऊ क्षेत्र में विभिन्न साम्राज्यों का उदय एवं विस्तार हुआ जिनमे गुप्त साम्राज्य, कन्नौज, मगध, मौर्य साम्राज्य, मुगल साम्राज्य और दिल्ली सल्तनत शामिल है - इन सभी साम्राज्यों के जनसांख्यिकीय और राजनीतिक केंद्र सिन्धु-गंगा के मैदानों में स्थित थे। भारतीय इतिहास के वैदिक और महाकाव्य युग के दौरान, इस क्षेत्र को "आर्यावर्त" (आर्यों की भूमि) कहा जाता था जो पश्चिम में सिन्धु नदी तक तथा दक्षिण में विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं तक फैला हुआ था। इस्लामी काल के दौरान, तुर्की अफगान और इरान के शासकों ने इस क्षेत्र को "हिन्दुस्तान" (हिन्दुओं की भूमि) का नाम दिया, जो सिन्धु नदी के फ़ारसी शब्द के लिए प्रयुक्त हुआ है। बाद में इस शब्द का प्रयोग पूरे भारत का उल्लेख करने के लिए किया गया, किन्तु आधुनिक युग में भी, इस क्षेत्र में बोली जाने वाली हिंदी-उर्दू की प्राकृत भाषा को हिन्दुस्तानी कहा जाता है, यह एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग स्थानीय संगीत व संस्कृति के लिए भी किया जाता है।[1][2]

ब्रिटिश और स्वतंत्र भारत, दोनों के जनसांख्यिकीय और राजनीतिक केंद्र (पहले कलकत्ता में और फिर दिल्ली में) यहीं स्थित थे।

पहले सिन्धु-गंगा के मैदानी क्षेत्र की भाषा सिन्धु-आर्य थी। इसके अतिरिक्त यहां क्षेत्रीय भाषाओं में विशाल विविधता पाई जाती है, जो कई मामलों में एक दूसरे में रचबस कर एक श्रृंखला का रूप ले लेती हैं।[उद्धरण चाहिए]

सिन्धु-गंगा के मैदानों पर स्थित बड़े शहरों में भारत के अहमदाबाद, लुधियाना, अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, जयपुर, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, एवं कोलकाता, बांग्लादेश में ढाका, तथा पाकिस्तान के लाहौर, फैसलाबाद, रावलपिंडी, इस्लामाबाद, मुल्तान, हैदराबाद और कराची शामिल हैं। इस क्षेत्र में यह परिभाषित करना कठिन है कि एक महानगर कहां से शुरू होता है और कहां ख़त्म होता है।

प्रशासनिक विभाजन

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चूंकि सिन्धु-गंगा के मैदान की सीमाओं को पूरी तरह से परिभाषित करना संभव नहीं है, अतः इस इलाके के प्रशासनिक क्षेत्रों की सटीक सूची देना भी कठिन है।

निम्न क्षेत्रों का लगभग पूरा भाग या आधे से अधिक भाग मैदानी इलाकों का हिस्सा है:

प्रशासनिक क्षेत्रों के निम्नलिखित छोटे हिस्से मैदान का हिस्सा नहीं हैं या इनमें से कुछ हैं:

इन्हें भी देंखें

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सन्दर्भ

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  1. "India". CIA – The World Factbook. मूल से 11 जून 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-12-14.
  2. "Hindustani Classical Music". Indian Melody. मूल से 11 दिसंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-12-14.

बाहरी कड़ियाँ

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