गुप्त इसाइयत

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गुप्त इसाइयत या (क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी) ईसाई धर्म का एक गुप्त व्यवहार है। इसमें इसाई जिस देश मे रहते हैं वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते हैं, वहाँ का धर्म मानते हैं पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रचार करते रहते हैं। अन्य धर्मों के शासकों या समाज द्वारा ईसाई धर्मावलंवियों के लिए खतरा उत्पन्न किए जाने की स्थिति में यह व्यवहार अपनाया गया। जब क्रिप्टो क्रिश्चियन 1 प्रतिशत से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर को अपना कर अपना काम करते रहते हैं। जब वे अधिक संख्या में हो जाते हैं तो प्रकट रूप से ईसाई धर्म को मानने लगते हैं। हॉलिवुड फिल्म 'अगोरा' (2009) में गुप्त इसाइयत को दिखाया गया है।

इतिहास[संपादित करें]

रोम[संपादित करें]

गुप्त इसाइयत का सबसे पहला उदाहरण रोमी साम्राज्य में मिलता है जब ईसाईयत ने शुरुवाती दौर में रोम में अपने पैर रखे थे। तत्काल महान रोमी सम्राट ट्रॉजन ने ईसाईयत को रोमन संस्कृति के लिए खतरा समझा और जितने रोमी ईसाई बने थे उनके सामने प्रस्ताव रखा कि या तो वे ईसाईयत छोड़ें या मृत्यु-दंड भुगतें। रोमी ईसाईयों ने मृत्यु-दंड से बचने के लिए ईसाई धर्म छोड़ने का नाटक किया। वे ऊपर से रोमी देवी देवताओं की पूजा करते रहे, पर अंदर से ईसाईयत को मानते थे। इस विषय पर बनी हॉलिवुड फिल्म अगोरा (२००९) में दिखाया गया है कि जब गुप्त-इसाई रोम में संख्या में अधिक हो गए तब उन्होंने रोमी देवी-देवताओं का अपमान करना शुरू कर दिया।[1][2]

जापान[संपादित करें]

संत ज़ेवियर 1550 में धर्मान्तरण के लिए जापान गया और उसने कई बौद्धों को ईसाई बनाया। 1643 में जापान के राष्ट्रवादी राजा शोगुन (Shogun) ने ईसाई धर्म का प्रचार जापान की सामाजिक एकता के लिए खतरा समझा। शोगुन ने बल का प्रयोग किया और कई चर्चो को तोड़ा गया। जीसस-मैरी की मूर्तियां जब्त करके तोड़ दी गईं। बाईबल समेत ईसाई धर्म की कई किताबें खुलेआम जलायी गईं। जितने जापानियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था उनको प्रताड़ित किया गया। उनकी बलपूर्वक बुद्ध धर्म मे घर वापसी कराई गई। जिन्होंने मना किया, उनके सर काट दिए गए। कई ईसाइयों ने बौद्ध धर्म मे घर वापसी का नाटक किया और क्रिप्टो-क्रिश्चियन बने रहे। जापान में इन गुप्त इसाइयों को काकूरे ईसाई कहा गया। काकूरे ईसाइयों ने बौद्धों के डर से ईसाई धर्म से संबधित कोई भी किताब रखनी बन्द कर दी। जीसस और मैरी की पूजा करने के लिए इन्होंने प्रार्थना बनायी जो सुनने में बौद्ध मंत्र लगती पर इसमें बाइबल के शब्द होते थे। ये ईसाई प्रार्थनाएँ काकूरे-क्रिश्चियनों ने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मौखिक रूप से हस्तांतरित करनी शुरू कर दी। वे बुद्ध के जैसी दिखने वाली मूर्ति, जो वास्तव में माँ मरियम की थी, की पूजा करते थे। 1550 से ले कर अगले 400 सालों तक काकूरे ईसाई बौद्ध धर्म के छद्मावरण में रहे। 20वीं शताब्दी में जब जापान औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ा और बौद्धों के धार्मिक कट्टरवाद में कमी आई तो इन काकूरे इसाइयों ने बौद्ध धर्म के मुखौटे से बाहर निकल अपनी ईसाई पहचान उजागर की।

अन्य देशों में[संपादित करें]

बालकन और एशिया माइनर, मध्यपूर्व, सोवियत रूस, चीन, नाज़ी जर्मनी समेत भारत में भी क्रिप्टो क्रिश्चियनों की बहुतायत है। गुप्त इसाई एशिया माइनर के देशों सर्बिया में द्रोवर्तस्वो, साइप्रस में पत्सलोई, अल्बानिया में लारामनोई, लेबनान में क्रिप्टो मरोनाईट व इजिप्ट में क्रिप्टो कोप्ट्स कहलाते हैं।

अंतर-ईसाई मामले[संपादित करें]

गैर-ईसाई समाज में गुप्त रूप से अपने विश्वास का अभ्यास करने वाले ईसाइयों के अलावा, क्रिप्टो-कैथोलिक बहुसंख्यक प्रोटेस्टेंट, या प्रोटेस्टेंट-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों और पूर्वी रूढ़िवादी देश। उदाहरण के लिये , कैथोलिक धर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और व्यक्तिगत कैथोलिकों को इंग्लैंड में 1558 से कानूनी रूप से सताया गया था। इसने रेक्यूसेंसी को प्रेरित किया, विशेष रूप से आयरलैंड में। इसी तरह, कैथोलिक धर्म को रूसी साम्राज्य में, पूर्वी रूढ़िवादी के पक्ष में, और स्कैंडिनेविया में लूथरनवाद के पक्ष में दबा दिया गया था। क्रिप्टो-प्रोटेस्टेंट ने कभी-कभी कैथोलिक क्षेत्रों में अभ्यास किया है। प्रारंभिक आधुनिक युग के दौरान, फ़्रांसीसी ह्यूगेनोट के अनुसरण नैन्टेस के आदेश का निरसन के लिए यह मामला था। अभी हाल ही में, इरीट्रिया में प्रोटेस्टेंट, एक ईसाई-बहुल देश, आबादी का लगभग 2% है और अक्सर अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न और यातना से बचने के लिए गुप्त रूप से अभ्यास करता है। इसके अतिरिक्त, बाल्कन और पूर्वी यूरोप में ऐतिहासिक रूप से पूर्वी रूढ़िवादी आबादी जो विभिन्न रोमन कैथोलिक राज्यों (वेनिस गणराज्य, [3] ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य,[4] और पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल [5] ) मध्य युग से प्रारंभिक आधुनिक युग के माध्यम से अक्सर कैथोलिक विश्वास को न अपनाने के लिए हिंसक रूप से सताया जाता था। समझौता अधिनियमित किया गया था जिसके तहत इन पूर्व रूढ़िवादी लोगों (जैसे पश्चिमी यूक्रेन में) को उनके चर्च संबंधी मामलों पर पोप के अधिकार क्षेत्र को मान्यता देने की शर्त पर अपने अनुष्ठान की ख़ासियत को बनाए रखने की अनुमति दी गई थी, फिर भी कई मामलों में वफादार बनाए रखा उनके पदानुक्रमों द्वारा की गई सतही रियायतों के बावजूद उनकी रूढ़िवादी पहचान।[6]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. David F. Watson, "Honor Among Christians: The Cultural Key to the Messianic Secret", Fortress Press, Minneapolis, 2010, pp. 1-10, passim.
  2. "Polycarp", Theopedia.
  3. "https://pure.royalholloway.ac.uk/portal/files/26864394/Chrysovalantis_Kyriacou_Thesis_2_vols.pdf"
  4. Véghseő, Tamás. "Reflections on the Background to the Union of Uzhhorod/Ungvár (1646)". अभिगमन तिथि 18 जनवरी 2022.
  5. Fahlbusch, Erwin; Lochman, Jan; Bromiley, Geoffrey William; Barrett, David B.; Mbiti, John; Pelikan, Jaroslav; Vischer, Lukas (1999). The Encyclopedia of Christianity (अंग्रेज़ी में). Wm. B. Eerdmans Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-90-04-14595-5.
  6. Magocsi, Paul Robert (2015-11-30). With Their Backs to the Mountains: A History of Carpathian Rus? and Carpatho-Rusyns (अंग्रेज़ी में). Central European University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-615-5053-46-7.