कॉन-टिकी

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कॉन-टिकी पर बने वृत चित्र के डीवीडी का कवर

पिछली शताब्दी में अनेकों तरह से यात्रायें की गयीं पर कॉन-टिकी (Kon-Tiki) अभियान, शायद सबसे अनूठी तरह से की गयी यात्रा है।

१९४७ में छ: व्यक्तियों द्वारा आदियुग की तरह बालसा लकड़ी से बनी नाव पर, समुद्र में ३७७० नॉटिकल मील (६९८० किलोमीटर) लम्बी की गयी यात्रा है। इसका नेतृत्व, थूर हायरडॉह्ल (Thor Heyerdahl) ने किया था। इसे कॉन-टिकी अभियान कहा गया क्योंकि नाव का नाम कॉन-टिकी था।


अभियान का कारण[संपादित करें]

थूर हायरडॉह्ल (Thor Heyerdahl) यह सिद्ध करना चाहता था कि पॉलीनीसियन (Polynesia) द्वीपों में दो तरह के लोग आये हैं: एक दक्षिण पूर्वी से और दूसरे दक्षिण अमेरिका से। इस बात का कोई सबूत नहीं था कि दक्षिण अमेरिका से कोई इन द्वीप समूह में आया था, या इस तरह से उस समय कोई यात्रा की जा सकती थी। थॉर ने यह सिद्ध करने के लिये उसी तरह से यात्रा करने की ठानी जैसे कि २०० साल पहले की गयी होगी।


कॉन-टिकी (Kon-Tiki) पुस्तक[संपादित करें]

थूर हायरडॉह्ल ने अपनी बात सिद्घ करने के लिए आदियुगीन बालसा लकड़ी का बेड़ा (raft) बनाया। इसका नाम, दक्षिण अमेरिका में पुराने समय में प्रचलित सूर्य देवता के नाम पर कॉन-टिकी रखा गया। थौर अपने पांच अन्य साथियों के साथ, उसी के ऊपर, २८ अप्रैल १९४७ को पेरू से पॉलीनीसियन द्वीपों के लिए चल दिये। इसी नाव पर, उन्होने समुद्र में ३७७० नॉटिकल मील (६९८० किलोमीटर) लम्बी यात्रा की। 'कॉन-टिकी' (Kon-Tiki) पुस्तक में इस यात्रा का विवरण है।

बालसा लकड़ियों से बेड़े को बनाने में कोई नयी तकनीक नहीं प्रयोग की गयी थी। इसमें नये युग के समान में केवल एक रेडियो सेट था जिससे वे दुनिया से सम्पर्क कर सकते थे। इसके अतिरिक्त आधुनिक युग का कोई सामान नहीं था। उन्होंने यह यात्रा उसी तरह से की जैसे पुराने समय में शायद की गयी होगी। रास्ते के लिये उनके पास २५० लीटर पानी, बांस की ट्यूब में था। खाने के लिये लौकी, कद्दू, नारियल, शकरकन्द और अन्य फल थे। रास्ते में उन्होंने मछलियां भी पकड़ीं। उन्होंने प्रतिदिन ५०-६० मील की दूरी तय की।

पॉलीनिसयन द्वीप में, सबसे पहले उन्हें पुलक Puka-Puka (पुका-पुका) नामक प्रवालद्वीप दिखायी पड़ा। ४ अगस्त को Angatan द्वीप के लोगों से संबंध स्थापित हुआ पर वे उस पर उतर नहीं पाये। Tumotus द्वीप समूह, पालीनोसिया का हिस्सा है। Raroia द्वीप, इसी समूह का द्वीप है। ७ अगस्त को Raroia के पास चट्टान से टकरा गये और वहीं उतर गये।

क्या इस यात्रा ने यह सिद्घ कर दिया कि पालीनेसियन द्वीपों पर सभ्यता दक्षिण अमेरिका से भी आयी ? इस अभियान में यह तो सिद्घ हो गया कि दक्षिण अमेरिका से पॉलीनोसियन द्वीपों तक समुद्र यात्रा हो सकती थी पर इससे यह नहीं सिद्घ हो पाया कि पॉलीनोसिया में लोग दक्षिण अमेरिका से आये। पॉलीनोसिया पर रहने वालों के डी.एन.ए. टेस्ट से यही पता चलता है कि यहां पर लोग दक्षिणी पूर्वी एशिया से आये और वैज्ञानिक इसी को सही मानते हैं।

इस पुस्तक का ५० भाषाओं में अनुवाद हुआ है और इस अभियान पर एक वृत्तचित्र बना है। जिसे १९५१ में आकदमी पुरुस्कार भी मिला है। नॉरवे में इसी पर कॉन-टिकी संग्रहालय भी बनाया गया है जिसमें अभियान से सम्बन्धी सारी जानकारी है।

इस यात्रा ने लोगों के बीच मानव-शास्त्र के प्रति जागरूकता उठायी लोगों को इस तरह की और यात्रा करने के लिये प्रेरित किया। यह विवरण जोखिम, उत्साह और अपने आत्म विश्वास की अपनी मिसाल है। यह सब पुस्तक में बहुत अच्छी तरह से बताया गया है।

स्रोत[संपादित करें]