कीर्तन घोषा
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कीर्तन-घोषा एक काव्यरचना है जिसकी रचना आज से लगभग ५०० वर्ष पूर्व महापुरुष श्रीमन्त शंकरदेव ने एकशरण धर्म के प्रचार के लिए की थी। कीर्तन घोषा की गणना श्रेष्ठ ग्रन्थों में होती है।
अध्याय
[संपादित करें]कर्तन घोषा में शङ्करदेव द्वारा रचित २७ अध्याय सन्निविष्ट हैं।
- अध्यायसमूह ये हैं-
- चतुविशति अवतार वर्णन
- नाम अपराध
- पाखण्ड मर्दन
- ध्यान वर्णन
- अजामिल उपाख्यान
- प्रह्लाद चरित
- गजेन्द्र उपाख्यान
- हरमोहन
- बलिछलन
- शिशुलीला
- रासक्रीडा
- कंस बध
- गोपी-उद्धव संवाद
- कुँजीर बाञ्चा पूरण
- अक्रुरर बाञ्चा पूरण
- जरासन्धर युद्ध
- कालयबन बध
- मुचुकुन्दर स्तुति
- स्यामन्तक हरण
- नारदर कृष्ण दर्शन
- बिप्र पुत्र आनयण
- बिप्र दामोदर आख्यान
- दैवकीर पुत्र आनयण
- बेदस्तुति
- कृष्णलीला माला
- श्रीकृष्णर बैकुण्ठ प्रयाण
- उरेषा बर्णन
- भागवतर तात्पर्य्य
बिषयबस्तु और आधार ग्रन्थ
[संपादित करें]कीर्तन की बिषयबस्तु तीन प्रकार की है-
- लीला विषयक
- लीलाहीन प्रार्थना, तत्त्व और व्यवस्था-प्रधान
- अन्य कथाएँ उर तीर्थ-व्यवस्था प्रधान