किषक्केकोट किला

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केरल की राजधानी तिरुवनन्तपुरम नगर के मध्य भाग में स्थित दुर्ग ऐतिहासिक महत्व रखता है। यही किष़क्केक्कोट्टा अर्थात् पूर्वी किला नाम से जाना जाता है। तिरुवितांकूर के इतिहास में इस किले के भीतर स्थित श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर, अनेक राजगृह, उनसे जुडे अन्य भवन, अग्रहार आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

यह किला और निकटवर्ती भूभाग केरल सरकार की संपत्ति के रूप में घोषित है। प्रसिद्ध चाला बाज़ार की ओर उन्मुख किष़क्केक्कोट्टा के प्रवेश द्वार से इस किले के भीतर प्रवेश किया जा सकता है। इस दुर्ग का निर्माण मार्ताण्ड वर्मा महाराजा ने 1744 में करवाया था। इस किले के साथ-साथ अन्य संबन्धित इमारतें भी काफी ऊँची हैं। दुर्ग द्वार के दोनों ओर के बडे कक्ष फ्रेंच वास्तुकला का प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। दुर्ग द्वार के ऊपर दो मण्डप हैं जिनका उपयोग राज्यादेश की घोषणा केलिए होता था। किष़क्केकोट्टा से थोडी दूर दक्षिण में जो लाल दुर्ग द्वार दिखलाई देता है वही 'वेट्टिमुरिच्चकोट्टा' है, इसके दोनों ओर पहरेदारों के लिए कमरे बने हुए हैं। इस दुर्ग के निर्माण का प्रारंभ विशाखम तिरुनाल महाराजा ने किया था। इसी के पास सी. वी. एन. कलरि स्थित है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर[संपादित करें]

किष़क्केकोट्टा से सीधे अन्दर जाएँ तो पद्मनाभस्वामी मंदिर दिखाई पड़ेगा। यह मंदिर परंपरागत द्राविड वास्तुशिल्प शैली में निर्मित है। इसके सात तल वाले गोपुर विस्मयकारी दृश्य उपस्थित करते हैं। यहाँ महाविष्णु की मूर्ति हैं, जिन्हें अनन्तशयी पद्मनाभ भी कहा जाता है। मूर्ति की लम्बाई 18 मीटर है। मार्त्ताण्ड वर्मा से लेकर तिरुवितांकूर में जितने राजा हुए, सभी अपने को श्रीपद्मनाभ का दास मानते थे। मंदिर का भीतरी मण्डप एक ही शिला को काटकर बनाया गया है।

पद्मतीर्थ[संपादित करें]

मंदिर के सामने पद्मतीर्थ नामक तालाब है। इस विशाल तालाब के साथ लगे पथ से मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है। यहीं 'मेत्तनमणि' नामक चमत्कारी घंटी देखी जा सकती है जिसमें दाढ़ी वाले एक आदमी के दोनों गालों पर दो बकरे सींग मार कर समय बताते हैं। घडी के डायल पर समय के अंकों के साथ, सुइयाँ हैं। एक घंटा पूरा होने पर आदमी अपना मुँह खोलता है और बकरे उसके गालों पर मारते हैं।

दुर्ग[संपादित करें]

पश्चिमी भाग के पश्चिमी दुर्ग और दुर्ग-द्वार का निर्माण 1818 में किया गया था। इसके समीप के नरियिडंचानकोट्टा नामक दुर्ग द्वार के बन्द होने पर पडिंजारेकोट्टा (पश्चिमी दुर्ग) बनाया गया। इस दुर्ग के निर्माण में भी फ्रैंच वास्तुकला का प्रभाव लक्षित होता है। श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर की 'आराट्टु' शोभायात्रा इसी द्वार से ही निकलती है। पडिंजारेकोट्टा से 250 मीटर के फासले पर स्थित अष़ीक्कोट्टा, सरकारी अस्पताल के पास स्थित आशुपत्रिक्कोट्टा आदि अन्य दुर्ग द्वार भी इसी किले के अंग हैं।

भीतर[संपादित करें]

दुर्ग के भीतर अनेक राजगृह तथा बड़ी-बड़ी इमारतें शोभायमान हैं। इनमें पाश्चात्य एवं परंपरागत शैलियों का संगम हुआ है। किसी समय तिरुवितांकूर राज परिवार इनका उपयोग करते थे। दुर्ग के अन्दर के राजगृहों में सर्वाधिक सुंदर 'अनंतविलासम' नामक राजगृह है जिसे 1880 में विशाखम तिरुनाल महाराजा ने बनवाया था। यह राजमहल श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के दक्षिणी भाग में स्थित है। अनंतविलासम राजमहल में बरोक तथा रोक्को की वास्तु कला शैलियाँ उपलब्ध हैं। उसके निकटस्थ 'कृष्णविलासम राजमहल' का निर्माण श्रीमूलम तिरुनाल के राज्यकाल (1885) में किया गया था। इसमें परंपरागत तथा पाश्चात्य वास्तुकला का संगम पाया जाता है। दुर्ग के भीतर का सबसे पुराना राजमहल है 'श्रीपादम राजमहल'। श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर के उत्तरी भाग में स्थित इस राजगृह में मन्दिर के दर्शन करने के लिए आनेवाले राजपरिवार के सदस्य विश्राम करते थे।

विलासम महल[संपादित करें]

दूसरे दो प्रमुख राजगृह हैं 'सरस्वती विलासम' तथा 'सुन्दर विलासम'। 'सवस्वती विलासम' राजगृह में केरलीय तथा पाश्चात्य स्थापत्य कला का सम्मिश्रण पाया जाता है। इसकी ऊँची दीवारें, दीर्घ बरामदे, बन्दनवार दरवाज़े, गोलाकार स्तम्भ आदि इसे अलग पहचान देते हैं। 19 वीं शती के अंत में निर्मित इस राजगृह में कवि एवं मनीषी केरल वर्मा वलिया कोयित्तंपुरान रहा करते थे।

'सरस्वती विलासम' महल के पास 'सुन्दर विलासम महल' स्थित है जिसे राजा श्रीमूलम तिरुनाल ने बनवाया। यहीं पल्लिवेट्टा नामक अनुष्ठान संपन्न होता है जो श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर के आराट्टु उत्सव (जल स्नान उत्सव) का भाग है। दुर्ग के भीतर का दर्शन तभी पूर्ण माना जाएगा जब 'कुतिरामालिका', 'नवरात्रिमण्डपम' आदि का भी दर्शन किया जाए।

अश्व महल[संपादित करें]

किष़क्केकोट्टा से पद्मनाभस्वामी मंदिर के मार्ग में दाई ओर 'कुतिरामालिका' (अश्व महल) स्थित है। इसका दूसरा नाम 'पुत्तनमालिका' (नव महल) है जिसे महाराजा स्वाति तिरुनाल ने 1844 में बनवाया। महल के ऊपरी तल में जो अश्व शिल्प हैं उसके कारण इस महल का नाम 'कुतिरामालिका' (अश्व महल) पड़ा। यह दुमंजिला महल केरलीय वास्तुकला का दिग्दर्शन कराता है। इसी की बालकनी पर बैठकर संगीत सम्राट महाराजा स्वाति तिरुनाल ने अपने संगीत ग्रंथ रचे थे और अन्य संगीतज्ञों एवं कलाकारों का स्वागत सम्मान किया था। इस बालकनी से मंदिर की झलक भी प्राप्त की जा सकती है। कुतिरामालिका संग्रहालय है उसमें राजा रवि वर्मा के पैंटिंग के साथ वे वस्तुएँ संग्रहित की गई हैं जिनका उपयोग तिरुवितांकूर राज परिवार करता था।

नवरात्रि उत्सव[संपादित करें]

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पूर्व में स्थित नवरात्रि मण्डप में 10 दिवसीय नवरात्रि संगीतोत्सव का आयोजन होता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों से संगीतज्ञ यहाँ गाने के लिए आते थे। दुर्ग के भीतर अम्मवीडु नामक राजगृह भी हैं। डेढ़ सौ वर्ष पुराने ये राजगृह तिरुवितांकूर राजाओं की पत्नियों के निवासस्थान थे। मातृसत्तात्मक दाय प्रथा के अनुयायी होने के कारण राजा विवाह नहीं करते थे। वे नायर स्त्रियों से सम्बंध रखते थे उन्हीं नायर स्त्रियों का निवासस्थान 'अम्मावीडु' कहलाता था। इनमें प्रमुख है अरुमना, तंचावूर, वडश्शेरी आदि। अम्मबीडु में भी केरलीय और यूरोपीय वास्तु कलाओं का मेल पाया जाता है। सीमेंट और इस्पात के बिना निर्मित वे राजगृह राजसी ठाट - बाट से खड़े हैं।