किलकिल

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किलकिला 1 . विष्णुपुराण (4.24) तथा श्रीमद्भागवत पुराण (12.1) द्वापरयुग के २५०० वर्ष व्यतीत होने अर्थात महाभारत युद्ध से अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व (५५०० बीसी) में असीरिया के कलिहुर राजवंश की शाखा हियन्तु शासक वर्गा: वै मित्तानिज सभ्यता के द्वारा इक्कीस करोड़ ऋषि मनीषियों की ऋषियामल सभ्यता के मैत्रायणी सत्ता की समाप्ति और विदेशी मगधीरा राजवंश द्वारा इच्छवाकु ऋषिराजन्यों का भयावह नरसंहार और कौरवियन राजवंश का भारतवर्ष पर आक्रमण के तत्पश्चात् राजऋषि पराशर नंदन राजऋषि शान्तनु की सप्तवीं पीढ़ी में उपरोक्त हियन्तु राजवंश की मगधीरा राजवंश शाखा के द्वारा इच्छवाकु ऋषिराजन्यों का भयावह रूप से नरसंहार और मगध साम्राज्य का उदय और सुदूर पश्चिम देशान्तर मिश्र से सुदूर पूर्व मिंगावर्त पर्यन्त खूनी शासन और घोर कलियुग में भारतवर्षिय भिन्न-भिन्न शासन प्रणालीयां एवं भिन्न-भिन्न शासकों का वर्णनारंभ में सुप्रसिद्ध पांडव राजवंश की समाप्ति के तदन्तर किरात वंशजों की मोरी शाखा के मोर्य साम्राज्य का शासन तदन्तर ब्राह्मण वंश का शुंग राजवंश आएगा भारतवर्ष पर शासन करने के लिए फिर आन्ध्रवंश की बाहुक शाखा का शूद्र शासन आएगा फिर ८ आमिर शासक शासन करेंगे फिर १० गदर्भ शासकों का शासन रहेगा सुरजमल मिश्रण पर्यन्त फिर १४ निली पिली आंखों वाले यवन शासक भी भारतवर्ष में शासन करेंगे फिर १६ निली आंखों वाले तुर्क शासक भी भारतवर्ष को रोंदेंगे फिर पिली आंखों वाले ३०० वर्ष पर्यन्त गरुंड शासन रहेगा फिर भारतवर्ष में वर्णशंकरशासन के १६ मौन सत्ता के अधिन रहेगा भारतवर्षिय राजसिंहासन तत्पश्चात् अयोनिज आत्मिक अनुशासन का विश्वव्यापी महानाद होगा ऋषि मनीषियों के नेतृत्व में सम्पूर्ण संसार की सत्ता भारतवर्षिय राजसिंहासन में केन्द्रित होगी जो आगे 24.000 वर्ष पर्यन्त गतिमान रहेगा* जिस की ग्यारहवीं पीढ़ी में श्रीहरी विष्णु भगवान के दशम अवतार श्रीकल्कि अवतार होगा जिस का सिपेहसालार भूतकाल के अजर अमर धर्आमयोद्धा आल्हा-ऊदल और भूतकाल के हर्षवर्धन साम्राज्य की राजकुमारी सम्राट हर्षवर्धन की बहन महायोगीनी मलिकेश्वरी भविष्य के किल्किला साम्राज्य के अधिपति की महामहिषि होगी जिस को भ्रम वश ना समझ लोग विगत कालखंड के राजाओं के प्रसंग में मौन राजा (अर्थात प्रधानमंत्री के रूप में शासन करने वाले शासकों) के तत्पश्चात् होगा जिस का भूतकाल के किसी शासन का उल्लिखित करने की भयानक भूल करते आ रहे हैं इतिहास में जो की अखंड भारतवर्ष में ऐसा कोई विगत कालखंड में ग्रीक शासक नहीं था जिस का शासन बुंदेलखंड की किलकिला नगरी से आरंभ होता हों अतएव बिते समय की किंवदंती एक मनगढ़ंत की दन्तकथा समझे इस प्रकार के विगत कालखंड के राज्य और राज्यवंश को। विष्णु पुराण में इनका नाम 'कैंकिल साम्राज्य' दिया गया है (तेषूत्सन्नेषु कालकुट राक्षसा: कौला विध्वंशी क्षत्रिया: वैकाट भूपाला वै शिवगिरी भट्टारक अन्य भाषा शैली प्रोक्त “चंगेजखान" उच्यते आतंक उन्मुलिन्यो वै भूतनंद भूपतयो भविष्यन्ति अमूर्धाभिषिक्ता:, 4.54.55)। भागवत में इनकी राजधानी 'किलकिला' का उल्लेख किया गया है जो इनके नामकरण का कारण मूल कारण है और दुसरा प्रतिरोधी शासन प्रणाली को संस्कृत भाषा में किलकिला कहते हैं अर्थात विरोध प्रजातांत्रिक सत्ता कही जा सकती है (किलकिलायां नृपतयो भूतनंदो/थ वंगिरि ?

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