काव्य हेतु

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काव्य का तात्पर्य कवि-कर्म तथा हेतु का अर्थ है कारण।काव्य-हेतु अर्थात काव्य की रचना करने वाले कवि में ऐसी कौन सी विलक्षण शक्ति /कारण/तत्व है जिसके द्वारा वह साधारण मानव होते हुये भी असाधारण काव्य की सर्जना कर देता है। वह शक्ति लौकिक है अथवा अलौकिक (ईश्वरदत्त)?

अवधारणा

भारतीय एवं पाश्चात्य मनीषियों ने इस विषय पर अपने अपने ढ़ग से मत व्यक्त किया है।काव्य-हेतु के अंतर्गत तीन साधन या कारण मुख्य रूप से विवेचित किए गए हैं -

१. प्रतिभा

२.व्युत्पत्ति

३. अभ्यास

काव्य-हेतुओं पर विचार करने वाले भारतीय आचार्यों में भामह, दंडी ,वामन रुद्रट,कुंतक एवं मम्मट के नाम उल्लेखनीय है। काव्य-हेतु पर आचार्यों की दो प्रकार की अवधारणाएँ मिलतीं हैं। पहले के अनुसार केवल प्रतिभा ही काव्य सर्जना का हेतु है तथा व्युत्पत्ति एवं अभ्यास इसके संसकारक तत्व हैं।इस अवधारणा के प्रमुख आचार्य भामह,रुद्रट,वामन और पण्डितराज जगन्नाथ हैं। दूसरी अवधारणा के अनुसार प्रतिभा,व्युत्पत्ति और अभ्यास तीनों काव्य के निर्मिति के लिए आवश्यक हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]