काम्य कर्म

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जो कर्म किसी भी कामना की पूर्ति हेतु किया जाए है उसे काम्य कर्म कहते है। वैसे तो सभी लोग किसी ना किसी कामना या इच्छा पूर्ति हेतु ही कर्म करते है।

संसार में धन, संपत्ति, वैभव, इन्द्रिय सुख हेतु किये गए कर्म काम्य कर्म होते है। इसके विपरीत निःस्वार्थ भाव से किये गए कर्म को निष्काम कर्म कहते है।

श्रीमद भगवत गीता में काम्य कर्म या सकाम कर्म से अधिक निष्काम कर्म पर अधिक बल दिया गया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति को कामनाहीन हो जाना है अपितु व्यक्ति को कामना के प्रति आसक्त नहीं होना चाहिए।

कर्म केवल फल की प्राप्ति की आशा में ही नहीं करना चाहिए। कर्म तो करते रहना चाहिए फल तो मेहनत के अनुसार स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा । दूसरे शब्दों में फल को ध्येय रखकर किया गया कर्म काम्य कर्म है और केवल कर्म पर ध्येय रखकर किया गया कर्म निष्काम कर्म है।