ऋषीश्वर ब्राह्मण

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ऋषीश्वर ब्राह्मण

'ऋषीश्वर' शब्द ऋषि और ईश्वर के संयुक्तीकरण से बनता है। जिसमें ऋषि का अर्थ है अन्वेषक यानी ईश्वर के अन्वेषक श्रेष्ठ ब्राह्मण। जब भगवान राम ने लंका विजय से लौटकर अश्वमेघ यज्ञ कराया था, तब वशिष्ठ जी के वंशजों को यज्ञ सफल करने के लिये नासिक से बुलाया गया था। इन ब्राह्मणों ने सफलतापूर्वक यज्ञ सम्पन्न किया लेकिन इन्होंने धन सम्पदा रूपी दान लेने से इंकार कर दिया तब श्रीरामचन्द्र जी ने इन ब्राह्मणों को ऋषीश्वर उपाधि से विभूषित किया था। ऋषि वशिष्ठ जी, देवता शिवजी, वेद यजुर्वेद, शाखा मान्ध्यान्दिन, सूत्र कात्यायन, प्रवर त्रिय, खेरा नासिक, गंगा गोदावरी व 72 गोत्र हैं। वेदाध्ययन, यज्ञ विधान और कृषि इनके प्रमुख कार्य रहे हैं और अयाचक ब्राह्मण समाज है। ऋषीश्वर ब्राह्मणों का निवास क्षेत्र, मध्यप्रदेश के भिण्ड मुरैना, ग्वालियर, गुना, उज्जैन, सागर, विदिशा, रायसेन व छिंदवाड़ा जिले, उत्तर प्रदेश के इटावा, आगरा, मथुरा, एटा व उन्नाव जिले एवं राजस्थान के धौलपुर और बारां जिले हैं।