ऋषियन आश्रम

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बरहा कोटरा, मऊ, चित्रकूट (उ॰प्र॰): तपोभूमि[संपादित करें]

ऋषियन आश्रम

प्राकृतिक सौन्दर्य से ओत-प्रोत आश्रम जिसे वर्तमान में ऋषियन आश्रम के नाम से जानते हैं,यह उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी के नाम से विख्यात् चित्रकूट के मऊ तहसील से 14 किमी. की दूरी पर बरहा कोटरा गांव में स्थित है। वास्तव में इस आश्रम का नामऋषियननहीं था। एक किवदन्ति के अनुसार, ‘बरहा’ गांव के जंगल में 84000 ऋषियों ने तपस्या की थी जिससे इस स्थान का नाम पहले ‘‘ऋषिवन’’ पड़ा तथा बाद में यह अपभ्रंस होकर ‘‘ऋषियन आश्रम’’ हो गया।

         जिस बरहा गांव में यह ऋषियन आश्रम स्थित है इस गांव का नाम भी ‘बाणासुर’ की माँ ‘बरहा’ के नाम से ‘बरहा कोटरा’ पड़ा। यह बाणासुर का राज्य था। यहाँ पर प्रख्यात् शिव मंदिर के पास अवशेष बिखरे पड़े दिखाई देते हैं। यह मनोरम स्थल

देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों के साथ-साथ दानवों का भी साधना स्थल रहा है। दैत्यराज बाणासुर ने यहीं पर घोर तपस्या की थी। यह वही बाणासुर था जिसका जिक्र रामायण में गोस्वामी तुलसीदास ने धनुष यज्ञ के दौरान किया है। भारद्वाज मुनि के आश्रम से चलकर भगवान श्रीराम ने यहीं से धर्मनगरी में प्रवेश किया था। महाभारत काल में दैत्यराज बाणासुर की राजधानी रहा यह स्थल असुरों का आराधना स्थल रहा है। बाणासुर की माँ भी एक महान शिव भक्त थीं। भगवान भोलेनाथ प्रतिदिन यहाँ आकर बाणासुर की माँ को दर्शन दिया करते थे।

         इस मनोरम एवं दुर्लभ आश्रम में धार्मिक से लेकर पर्यटन के लिए दूर-दूर से लोग भारी जनबल के साथ आते हैं। यहाँ भाँति-भाँति के दर्शनीय स्थल मौजूद है; जैसे- शिव मंदिर, गणेश मंदिर, सूर्य मंदिर (सात घोड़ों के रथ के साथ), गुफाएं आदि।

शिव मंदिर:-[संपादित करें]

शिव मंदिर

ऋषियन आश्रम में एक शिव मंदिर है जो कि एक गुफा के भीतर है। ऐसी मान्यताहै कि गुफा में बाणासुर ने तप किया था। इस गुफा में अनेक शिवलिंग हैं तथा जल की अविरल धारा बहती है। इस आश्रम में अनेकों शिवलिंग विराजमान हैं और पर्वतों से निकलकर आ रही जलधारा उनका अभिषेक करती हुई जान पड़ती है।

श्रावण या सावन के महीने में इस स्थान का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। सावन माह में इस स्थान पर जलाभिषेक का विशेष महत्त्व माना जाता है। आस-पास के इलाकों के लोगों की आगाध श्रद्धा व आस्था जुड़ी है।

हनुमान मन्दिर :-[संपादित करें]

हनुमान मन्दिर

आश्रम में एक प्राचीन हनुमान मन्दिर है जिसमें हनुमान जी प्रतिमाएं एवं भगवान श्री राम जी के चरण बने हुए हैं। इसी मन्दिर में हनुमान जी के साथ में सिद्धिविनायक, शिव पुत्र गणेश जी की भी प्रतिमा विराजमान है।

ग्रंथों में ऐसी व्याख्या की गई है कि पवन पुत्र श्री हनुमान जी भगवान शिव जी के अंश हैं। शायद इसीलिए इस स्थान में (जहाँ पर इतने अधिक संख्या में शिवलिंग विराजमान हैं) हनुमान जी की भी स्थापना की गई है ।

यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियां :-[संपादित करें]

यक्ष-यक्षिणी

ऐसी मान्यता है कि ऋषियन आश्रम में यक्ष और यक्षिणी भी आते हैं। गुफा के बाहर एक शिला में एक साथ जो मूर्तियां हैं कहा जाता है, कि यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियां हैं। इस शिला के एक ओर यक्ष और दूसरी ओर यक्षिणी विराजमान हैं। यक्ष यानि जादू की शक्तियाँ और यक्षिणी को शिव की दासियाँ भी कहा जाता है। आदि-अनादि काल में ये सब रहस्यमयी जातियाँ थीं। जैसे कि देव, दानव, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, किन्नर, वानर, अप्सराएं, रीझ, किरात, नाग, भल्ल आदि ये सभी मानव जाति से कुछ अलग ही थे।


पीपल के पेड़ पर बनी शिव की जटाएं :-[संपादित करें]

पीपल के पेड़ पर बनी शिव की जटाएं

ऋषियन आश्रम में एक प्राचीन एवं विशाल पीपल का वृक्ष है। यह पीपल का एक ऐसा पेड़ है जिसकी जड़ें इस प्रकार से बाहर निकली हुई हैं मानों जैसे कि ये भगवान भोलेनाथ की जटाएं हों। इसी वृक्ष के नीचे से जल की अविरल धारा का प्रवाह भी है। जो जल की अविरल धारा बह रही है वह शिवजी की जटा से निकली गंगा मैया प्रतीत होती हैं। लोगों की इन सब पर अटूट आस्था पायी जाती है।

लोग यहाँ आकर इसी अविरल धारा से स्नान कर अपने आप को पवित्र करते हैं व उनके मन को शान्ति तथा दिव्य ऊर्जा की प्राप्ति होती है। यहाँ का दृश्य अत्यंत मनोहारी एवं प्राकृतिक है। यहाँ आने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यहीं पर पीपल की शीतल छांव में अपना ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करें।

बौद्ध मूर्तियों के भग्नावशेष :-[संपादित करें]

ऋषियन आश्रम में ही बौद्ध काल में बनी मूर्तियों के भग्नावशेष पड़े मिलते हैं। लेकिन अज्ञानतावश लोगों को जानकारी ना होने के कारण वह खण्डहर जैसे वहीं पड़े हैं।

गुफाएं :-[संपादित करें]

गुफाएं

तपोभूमि ऋषियन आश्रम में दो विशेष प्रकार की गुफाएं भी है जिनके अंदर कई प्रकार के शिवलिंग स्थापित है। इन गुफाओं में प्रवेश करते ही एक प्रकार की दिव्य ऊर्जा का एहसास होता है तथा दोनों गुफाओं के अंदर जल की अविरल धारा बहती रहती है।

इस गुफा के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की किवदन्तियाँ प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने वनवास के समय इनमे से एक गुफा में वास किया था तथा दूसरी गुफा से गुजरते हुए चित्रकूट तक का रास्ता तय किया था।

दैत्यराज बाणासुर का ऋषियन आश्रम से सम्बन्धित इतिहास:-[संपादित करें]

         जनपद चित्रकूट के मऊ थाना क्षेत्र के बरहा कोटरा गाँव के पास यमुना नदी के तट पर स्थित धर्मस्थली चित्रकूट का प्रवेश द्वार ऋषियन आश्रम है। यह केवल देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की ही तपस्थली नहीं है बल्कि सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए दानव भी यहाँ तपस्या किया करते थे। महाभारत काल में दैत्यराज बाणासुर की राजधानी रहा यह क्षेत्र असुरों का अराधना स्थल रहा है। बाणासुर की माँ भी एक महान शिव भक्त थीं। कहा जाता है कि बाणासुर की माँ प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करने के लिए कैलाश पर्वत जाया करती थीं। माँ के वृद्ध हो जाने पर जब कैलाश पर्वत जाने में वह असमर्थ हो गईं बाणासुर ने घोर तपस्या करते हुए शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करतें वरदान माँगा की वे खुद प्रतिदिन यहाँ आकर उसकी माँ को दर्शन दें। ऋषियन आश्रम में एक बड़ी शिला से निर्मित गुफा के अन्दर अनेकों शिवलिंग विराजमान हैं। कंदराओं से निकलती जल धाराओं से शिवलिंगों का निरन्तर जलाभिषेक होता रहता है। बाणासुर और उसकी माँ के महान भक्त होने की गवाही देता है यह स्थान।

श्रावण के मास में विशेष महत्त्व:-[संपादित करें]

         श्रावण या सावन के महीने में इस स्थान का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। सावन माह में इस स्थान पर जलाभिषेक का विशेष महत्त्व माना जाता है। आस-पास के इलाकों के लोगों की आगाध श्रद्धा व आस्था जुड़ी है। इस स्थान के अलावा दूर-दूर से भी श्रद्धालुओं का आना-जाना सावन माह में लगा रहता है और भोले भण्डारी की स्तुति आराधना का दौर निरंतर जारी रहता है। घने जंगलों व पहाड़ों के बीच स्थित होने के कारण ऋषियन में एक आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है।

         सावन के महीने के अलावा हर सोमवार को भी बड़ी संख्या में लोग जलाभिषेक के लिए पहुँचते हैं। जनपद के मऊ थाना क्षेत्र के अंतर्गत बराह कोटरा गांव के पास यमुना नदी के तट पर स्थित ऋषियन आश्रम चित्रकूट का प्रवेश द्वार के नाम से भी विख्यात् है। इलाकाई बाशिंदों ने अपने तरीके से इस मनोरम एवं दुर्लभ स्थान को धार्मिक से लेकर पर्यटन के पटल पर जिंदा रखा है।

ऋषियन आश्रम में पर्यटन की सम्भावनाएं:-[संपादित करें]

         मनोहारी, प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एवं दुर्लभ ऋषियन आश्रम पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। ऋषियन आश्रम में पर्यटन की काभी सम्भावनाएं है। मनोहारी प्राकृतिक दृश्य यहाँ की सुन्दरता में इजाफा करते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस स्थान पर देखने सराहने के लिए बहुत कुछ मौजूद है। कई ऐतिहासिक इमारतें इतिहास के कई पन्नों को समेटे हुए काफी कुछ बयां करती है। बरहा कोटरा गाँव के इर्द-गिर्द कई छोटी-छोटी पहाड़ियों में से एक है सुगरिया पहाड़ी।इस पहाड़ी में हजारों वर्ष पूर्व आदिमानवों के बनाये गए शैल चित्र बिखरे पड़े हैं। पुरातात्त्विक महत्त्व के इन स्थलों तक अभी सरकार की नजरें नहीं पहँुच पायी हैं। सौ प्रतिशत प्राकृतिक इन स्थलों में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सरकार को कोई कार्य-योजना बनाकर नहीं देने से फिलहाल ये स्थल अभी भी विकास से कोसों दूर और पब्लिक ट्राँसपोर्ट की व्यवस्था न होने के कारण लोगों की पहुँच से दूर है। पुरातत्त्व विभाग मात्र बोर्ड लगाकर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहा है। किसी टूरिस्ट गाइड के भी न होने के कारण यहाँ आए लोगों को इस स्थल के तमाम पहलुओं की जानकारी नहीं मिल पाती है।

अतः सरकार को पहल करते हुए इस प्राकृतिक स्थल की पर्यटन सम्बन्धी समस्त संसाधनों की समुचित व्यवस्था करते हुए अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।

ऋषियन आश्रम की अवस्थिति:-[संपादित करें]

अक्षांश : 25°20'42.8"N(उत्तर)

देशांतर : 81°32'29.2"E(पूरब)

ऋषियन आश्रम चित्रकूट से इलाहाबाद जाते समय मऊ तहसील से उत्तर दिशा में 14 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर जाने पर रास्ते में ही एक बोर्ड जो सड़क के बांयी ओर लगा है जिस पर श्रीराम वन मार्ग लिखा है वहाँ से मुड़ कर ऋषियन आश्रम जाते हैं।