इतवार व्रत कथा
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रविवार | |
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चित्र:Surya planet.jpg रविवार व्रत | |
आधिकारिक नाम | रविवार व्रत |
अन्य नाम | इतवार व्रत |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी |
प्रकार | Hindu |
उद्देश्य | सर्वकामना पूर्ति |
आरम्भ | रविवार |
समान पर्व | सप्ताह के अन्य दिवस |
यह उपवास सप्ताह के प्रथम दिवस इतवार व्रत कथा को रखा जाता है. रविवार सूर्य देवता की पूजा का वार है। जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
विधि[संपादित करें]
- प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर परमात्मा का स्मरण करें.
- एक समय भोजन करें.
- भोजन इत्यादि सूर्य प्रकाश रहते ही करें.
- अंत में कथा सुनें
- इस दिन नमकीन तेल युक्त भोजन ना करें.
- व्रत के दिन क्या न करें
इस दिन उपासक को तेल से निर्मित नमकीन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सूर्य अस्त होने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
रविवार व्रत विधि[संपादित करें]
रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर शौच व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। तत्पश्चात घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान से गंध-पुष्पादि से भगवान सूर्य का पूजन करें। पूजन के बाद व्रतकथा सुनें। व्रतकथा सुनने के बाद आरती करें। तत्पश्चात सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए सूर्य को जल देकर सात्विक भोजन व फलाहार करें।
यदि किसी कारणवश सूर्य अस्त हो जाए और व्रत करने वाला भोजन न कर पाए तो अगले दिन सूर्योदय तक वह निराहार रहे तथा फिर स्नानादि से निवृत्त होकर, सूर्य भगवान को जल देकर, उनका स्मरण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करे।
कथा[संपादित करें]
एक बुढ़िया का नियम था प्रति रविवार को प्रातः स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर, भोजन तैयार कर, भगवान को भोग लगा कर, स्वयं भोजन करती थी. ऐसा व्रत करने से उसका घर सभी धन धान्य से परिपूर्ण था. इस प्रकार कुछ दिन उपरांत, उसकी एक पड़ोसन, जिसकी गाय का गोबर यह बुढ़िया लाया करती थी, विचार करने लगी कि यह वृद्धा, सर्वदा मेरी गाय का ही गोबर ले जाती है. इसलिये वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी. बुढ़िया, गोबर ना मिलने से रविवार के दिन अपने घर को गोबर से ना लीप सकी. इसलिये उसने ना तो भोजन बनाया, ना भोग लगाया, ना भोजन ही किया. इस प्रकार निराहार व्रत किया. रात्रि होने पर वह भूखी ही सो गयी. रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न में भोजन ना बनाने और भोग ना लगाने का कारण पूछा. वृद्धा ने गोबर ना मिलने का कारण बताया तब भगवान ने कहा, कि माता, हम तुम्हें सर्व कामना पूरक गाय देते हैं. भगवान ने उसे वरदान में गाय दी. साथ ही निर्धनों को धन, और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखों को दूर किया. साथ ही उसे अंत समय में मोक्ष दिया, और अंतर्धान हो गये. आंख खुलने पर आंगन में अति सुंदर गाय और बछड़ा पाया. वृद्ध अति प्रसन्न हो गयी. जब उसकी पड़ोसन ने घर के बाहर गाय बछडे़ को बंधे देखा, तो द्वेष से जल उठी. साथ ही देखा, कि गाय ने सोने का गोबर किया है. उसने वह गोबर अपनी गाय्त के गोबर से बदल दिया. रोज ही ऐसा करने से बुढ़िया को इसकी खबर भी ना लगी. भगवान ने देखा, कि चालाक पड़ोसन बुढ़िया को ठग रही है, तो उन्होंने जोर की आंधी चला दी. इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया. सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो उसके आश्चर्य की सीमा ना रही. अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी. उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी, कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है. राजा ने यह सुन अपने दूतों से गाय मंगवा ली. बुढ़िया ने वियोग में, अखंड व्रत रखे रखा. उधर राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया. सूर्य भगवान ने रात को उसे सपने में गाय लौटाने को कहा. प्रातः होते ही राजा ने ऐसा ही किया. साथ ही पड़ोसन को उचित दण्ड दिया. राजा ने सभी नगर वासियों को व्रत रखने का निर्देश दिया. तब से सभी नगरवासी यह व्रत रखने लगे. और वे खुशियों को प्राप्त हुए.
उद्देश्य[संपादित करें]
- मान सम्मान वृद्धि
- शत्रुओं का क्षय
- आंख के अतिरिक्त सभी पीड़ा दूर.
व्रत फल[संपादित करें]
इससे सभी पापों का नाश होता है। इससे मनुष्य को धन, यश, मान-सम्मान तथा आरोग्य प्राप्त होता है। इस व्रत के करने से स्त्रियों का बाँझपन दूर होता है। इस व्रत के करने से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है।