आत्मनिर्भर भारत
आत्मनिर्भर भारत एक वाक्यांश है जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने देश की आर्थिक विकास योजनाओं के संबंध में उपयोग किया और लोकप्रिय बनाया। यह वाक्यांश मोदी सरकार की विश्व अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने और इसे और अधिक कुशल, प्रतिस्पर्धी और लचीला बनाने के लिए मोदी सरकार की योजनाओं के लिए एक अध्यर्थक अवधारणा है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान का प्रथम लोकप्रिय उपयोग 2020 में भारत के कोविड-19-महामारी से सम्बन्धित आर्थिक पैकेज की घोषणा के दौरान हुआ था। तब से, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय द्वारा इस वाक्यांश का उपयोग किया गया है। और प्रेस विज्ञप्तियों, बयानों और नीतियों में रक्षा मंत्रालय। सरकार ने भारत की नूतन राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारत के 2021 के केन्द्रीय बजट के सम्बन्ध में भी इस वाक्यांश का उपयोग किया है।
स्वदेशी आन्दोलन भारत के सबसे सफल पूर्व-स्वतंत्रता आंदोलनों में से एक था। 1947 और 2014 के बीच कई पंचवर्षीय योजनाओं में देश के पूर्व योजना आयोग द्वारा आत्मनैर्भर्य की अवधारणा का उपयोग किया गया है। टिप्पणीकारों ने उल्लेख किया है कि भारत स्वतंत्रता के बाद से ऐसी नीतियाँ बना रहा है और संस्थानों का निर्माण कर रहा है जो आत्मनैर्भर्य की वृद्धि करते हैं। निजी कम्पनियों और उनके उत्पादों को पेय पदार्थ, औटोमोटिव, सहकारी समितियों, वित्तीय सेवाओं और बैंकिङ, औषध निर्माण और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में आत्मनैर्भर्य के उदाहरण के रूप में माना गया है।
इतिहास
[संपादित करें]भारत ने अपने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, स्वराज के लिए राजनीतिक आत्मनिर्भरता के तरफ बढ़ाव देखा।[1] महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे उस समय के विचारकों ने भी न केवल एक राष्ट्र के संदर्भ में, बल्कि स्वयं के संदर्भ में भी आत्मनिर्भरता की व्याख्या की।[1][2] इसमें एक व्यक्ति का अनुशासन और एक समाज में के मूल्य शामिल थे।[1][2] विश्व भारती विश्वविद्यालय जैसे शैक्षणिक संस्थानों की नींव के साथ, टैगोर की भी भारत को शिक्षा में आत्मनिर्भरता के करीब लाने में भूमिका थी।[3] एम एस स्वामीनाथन लिखते हैं कि उनकी युवावस्था में, "1930 के दशक के भारत में अधिकांश अन्य लोगों की तरह, आदर्शवाद और राष्ट्रवाद का दौर था। युवा और बड़ों ने एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साझा किया। पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) और स्वदेशी (आत्मनिर्भरता) हमारे लक्ष्य थे..."।[4]
नीति और भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ
[संपादित करें]भारत के योजना आयोग का प्रमुख दस्तावेज, 1951 से 2014 तक प्रकाशित बारह पंचवर्षीय योजनाएं है, जिसमें लक्ष्य के रूप में आत्मनिर्भरता शामिल है।[5] पहली दो योजनाओं ने सरकारी नीति में आत्मनिर्भरता की नींव रखी, जिसे आयात-प्रतिस्थापन जैसी अवधारणाओं के माध्यम से लागू किया गया।[5] जब पर्याप्त प्रगति हासिल नहीं हुई, तो योजनाएं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने पर स्थानांतरित हो गईं।[5] इसका उद्देश्य यह था कि भारत के पास अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए पर्याप्त धन होना चाहिए। 1991 के जून के विपरीत, भारत के पास केवल दो सप्ताह के लिए विदेशी मुद्रा भंडार था।[5] लाइसेंस राज के दौरान इन स्थितियों और प्रथाओं ने आत्मनिर्भरता के लिए नए सिरे से आह्वान किया।[5] योजनाएंं आत्मनिर्भरता की बात करती थीं, जब्की बिमल जालान, जोे आरबीआई गवर्नर बने, बताते हैं कि आत्मनिर्भरता दृष्टिकोण योजनाओं के बीच झूलता और दोलन करता है, जो भारत के बाहर के कारकों से भी प्रभावित होता है।[6] उनका स्पष्ट था कि आत्मनिर्भरता को अन्य आर्थिक संकेतकों में सुधार के साथ-साथ चलना होगा, और इस प्रकार आत्मनिर्भरता को उसी के अनुसार समझना और परिभाषित करना होगा।[6]
आत्मनिर्भर भारत
[संपादित करें]भारत में कोरोनावायरस महामारी की पृष्ठभूमि में, महामारी प्रेरित लॉकडाउन, और घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास में पहले से मौजूद मंदी और महामारी के आर्थिक प्रभाव के कारण, सरकार आत्मनिर्भरता के एक अनुकूलित विचार के साथ सामने आई।[7] 12 मई 2020 को, प्रधान मंत्री मोदी ने पहली बार लोकप्रिय रूप से हिंदी वाक्यांश का इस्तेमाल किया जब उन्होंने कहा[8] "विश्व की आज की स्थिति हमें सिखाती है कि इसका मार्ग एक ही है- "आत्मनिर्भर भारत"। हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है- एष: पंथा: यानि यही रास्ता है- आत्मनिर्भर भारत।"[9][5] जबकि भाषण हिंदी में था, प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा "आत्मनिर्भरता" के इस संदर्भ ने कुछ भ्रम पैदा किया।[9][5] भारत सरकार आने वाले दिनों में एक आर्थिक पैकेज लेकर आई जिसे ‘आत्मनिर्भर भारत मिशन’ के रूप में लेबल किया गया।[10]
1960-70 के दशक में भारत ने आत्मनिर्भरता की कोशिश की और यह कारगर नहीं हुआ।[11] स्वामीनाथन अय्यर कहते हैं कि "1960s के आत्मनिर्भरता की ओर वापस जाना फिर से गलत दिशा में जाना प्रतीत होगा।"[11] सदानंद धूमे ने वाक्यांश से संबंधित शब्दावली और भाषा से संबंधित संदेह को उठाया, की अगर यह पूर्व-उदारीकरण के पुनरुद्धार का संकेत था।[12]
अनुकूलित आत्मनिर्भरता जो उभरी, वैश्वीकृत दुनिया के साथ जुड़ने और चुनौती देने के लिए तैयार थी, वह पिछले दशकों के स्वतंत्रता पूर्व स्वदेशी आंदोलन से विपरीत थी।[13] हालाँकि, स्वदेशी को भी 'वोकल फॉर लोकल' जैसे नारों के साथ रूपांतरित किया गया है, साथ ही साथ वैश्विक अंतर्संबंध को बढ़ावा दिया जा रहा है।[13] सरकार का लक्ष्य इसे समेटना है। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट बताती है, "मोदी की नीति का उद्देश्य घरेलू बाजार में आयात को कम करना है, लेकिन साथ ही साथ अर्थव्यवस्था को खोलना और दुनिया के बाकी हिस्सों में निर्यात करना है"।[14]
आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के तहत गोवा में दो दिवसीय शिखर सम्मेलन का उद्घाटन मंत्री रानी के मुताबिक प्लास्टिक उद्योग क्षेत्र में 30000 लोगों को रोजगार प्रदान करने के अवसर प्रदान किए जाएंगे पूरी जानकारी पढ़ने के लिए क्लिक करें Archived 2022-11-16 at the वेबैक मशीन
मोदी सरकार द्वारा उपयोग
[संपादित करें]नारे
[संपादित करें]- वोकल फॉर लोकल/ लोकल के लिए वोकल[15]
- दुनिया के लिए बनाओ[16]
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग
[संपादित करें]मोदी सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को आर्थिक रूप से सक्ष्म बनाने के लिए इसकी परिभाषा में संशोधन किया है। सूक्ष्म या माइक्रो इकाई[17] में निवेश की ऊपरी सीमा 1 करोड़ रुपये और टर्नओवर 5 करोड़ रुपये होना चाहिए। लघु इकाई में निवेश की ऊपरी सीमा 10 करोड़ रुपये और टर्नओवर 50 करोड़ रुपये होना चाहिए। मध्यम इकाई में निवेश की ऊपरी सीमा 50 करोड़ रुपये और 250 करोड़ का टर्नओवर होना चाहिए।
संकटग्रस्त एमएसएमई के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया, इससे 2 लाख एमएसएमई को मदद मिलेगी। फ़ण्ड ऑफ़ फ़ण्ड्स के माध्यम से एमएसएमई के लिए 50 हजार करोड़ रुपये की पूँजी लगाए जाने को स्वीकृति दी गई है। एमएसएमई के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की आपातकालीन कार्यशील पूँजी सुविधा दी गई है।
सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा 45 दिन के भीतर एमएसएमई के बकायों का भुगतान करना होगा। सूक्ष्म खाद्य उद्यमों (एमएफई) को औपचारिक रूप देने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये की योजना शुरू की गई। 2 लाख एमएफई की सहायता के लिए ‘वैश्विक पहुँच के साथ वोकल फ़ॉर लोकल’ का शुभारम्भ किया जाएगा। एमएसएमई की सहायता और कारोबार के नए अवसर के लिए ‘चैंपियंस’ पोर्टल लॉन्च किया गया है।
ज्ञातव्य है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। 6 करोड़ से अधिक एमएसएमई जीडीपी में 29 प्रतिशत और निर्यात में लगभग 50 प्रतिशत योगदान करते हैं। इस क्षेत्र में 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
सरकार द्वारा इस क्षेत्र के लिए घोषित 16 नीतियाँ निम्नलिखित हैं-
- एमएसएमईज सहित व्यापार के लिए रुपये 3 लाख करोड़ सम्पार्श्विक निःशुल्क स्वचालित ऋण
- एमएसएमईज के लिए रु 20 हजार करोड़ का अधीनस्थ ऋण
- एमएसएमईज के फण्ड के माध्यम से रुपए 50 हजार करोड़ की इक्विटी इन्फ्यूशन
- एमएसएमईज की नई परिभाषा गढ़ी दी गई है।
- एमएसएमईज के लिए वैश्विक टेण्डर की सीमा बढ़ाकर 200 करोड़ रुपये तक कर दी गई है।
- एसएमई के लिए अन्य हस्तक्षेप भी किये गए हैं।
- 3 और महीनों के लिए व्यापार और श्रमिकों के लिए 2500 करोड़ रुपये का ईपीएफ समर्थन दिया गया है।
- ईपीएफ अंशदान 3 महीने के लिए व्यापार और श्रमिकों के लिए कम हो गया है।
- एनबीएफसीएस, एचसी, एमएफआई के लिए 30 हजार करोड़ रुपये की तरलता सुविधा प्रदान की गई है।
- एनबीएफसी के लिए 45000 करोड़ रुपये की आंशिक क्रेडिट गारण्टी योजना दी गई है।
- डीआईएससीओएम के लिए 30 हजार करोड़ रुपये की तरलता इंजेक्शन दिया गया है।
- ठेकेदारों को राहत दी गई है।
- ईआरए के तहत रियल एस्टेट परियोजनाओं के पंजीकरण और पूर्णता तिथि का विस्तार किया गया है।
- डीएस-टीसीएस कटौती के माध्यम से 50 हजार करोड़ रुपये की तरलता प्रदान की गई है।
- अन्य कर उपाय किये गए हैं।
'मेक इन इण्डिया' को प्रोत्साहन
[संपादित करें]प्रधानमन्त्री मोदी ने 4 जुलाई, 2020 को ऐप के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए 'ऐप इनोवेशन चैलेंज' लॉन्च किया। एप इनोवेशन चैलेंज का मंत्र है ‘भारत में भारत और विश्व के लिए बनाओ' (मेक इन इण्डिया फ़ॉर इण्डिया एण्ड द वर्ल्ड)।
भारत आज पीपीई किट का विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। सीएसआईआर-एनएएल ने 35 दिनों के भीतर बाईपैप वेण्टिलेटर का विकास किया। वस्त्र समिति (मुम्बई) ने पूर्ण रूप से स्वदेशी डिजाइन और ‘मेक इन इण्डिया’ वाला पीपीई जाँच उपकरण बनाया। बिजली क्षेत्र में ट्रांसमिशन लाइन टॉवर से लेकर, ट्रांसफार्मर और इन्सुलेटर तक देश में ही बनाने पर जोर दिया गया है। सभी सेवाओं में सरकारी खरीद व अन्य के लिए ‘मेक इन इण्डिया’ नीति में संशोधन किया गया है। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए ‘मेक इन इण्डिया[20]’ को बढ़ावा दिया जाएगा। एक निश्चित समयावधि के भीतर आयात पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए हथियारों / प्लेटफार्मों की एक सूची को अधिसूचित किया जाएगा। आयातित पुर्जों का स्वदेशीकरण किया जाएगा और इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान किया जाएगा। आयुध निर्माणियों (ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों) को कॉर्पोरेट का दर्जा दिया जाएगा और उनको शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया जाएगा।
कुछ परिणाम
[संपादित करें]कोरोना काल के तीन-चार महीने में ही पीपीई की करोड़ों की इण्डस्ट्री भारतीय उद्यमियों ने ही खड़ी की है। रक्षामन्त्री ने घोषणा की है कि 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगा दी गयी है।
प्रधानमन्त्री स्वनिधि योजना
[संपादित करें]भारत में कोरोना महामारी से लॉकडाउन के कारण नाई की दुकानें, मोची, पान की दुकानें व कपड़े धोने की दूकानें, रेहड़ी-पटरी वालों की आजीविका पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। इस समस्या को ख़त्म करने के लिए प्रधानमंत्री के द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत एक नई योजना की घोषणा की है जिसका नाम है पीएम स्वनिधि योजना। इस योजना के अंतर्गत रेहड़ी पटरी वालों को सरकार द्वारा 10,000 रूपये का ऋण मुहैया कराया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत दी जा रही अल्पकालिक सहायता 10,000 रुपया छोटे सड़क विक्रेताओं को अपना काम फिर से शुरू करने में सक्षम बनाएंगे। इस योजना के ज़रिये भी आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति मिलेगी।
गरीबों, श्रमिकों और किसानों के लिए की गई मुख्य घोषणाएँ
[संपादित करें]14 मई 2020 को घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के अन्तर्गत मुख्यतः गरीब, श्रमिक और किसानों के लिए जो घोषणाएँ की गई हैं, वह निम्नलिखित हैं-
- पहला, किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करने की कोविड-19 पश्चात योजना
- दूसरा, पिछले 2 महीनों के दौरान प्रवासी और शहरी गरीबों के लिए सहायता योजना
- तीसरा, प्रवासियों को वापस करने के लिए एमजीएनआरईजीएस सहायता योजना
- चतुर्थ, श्रम संहिता में बदलाव करके श्रमिकों के लिए लाभ सुनिश्चित करना
- पंचम, 2 महीने के लिए प्रवासियों को मुफ्त भोजन की आपूर्ति
- षष्ठम, 2021 तक 'एक देश एक राशन कार्ड' द्वारा भारत में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उपयोग करने के लिए प्रवासियों को सक्षम करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रौद्योगिकी प्रणाली को बढ़ावा दिया जाना तय हुआ है।
- सप्तम, प्रवासी श्रमिकों, शहरी गरीबों के लिए किफायती किराये के आवास परिसर बनाने की पहल
- अष्टम, मुद्रा शिशु ऋण के लिए 1500 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
- नवम, स्ट्रीट वेण्डर्स के लिए 5 हजार करोड़ रुपये की विशेष क्रेडिट सुविधा दी जा रही है।
- दशम, सीएलएसएस के विस्तार के माध्यम से आवास क्षेत्र और मध्यम आय वर्ग को बढ़ावा देने के लिए 70 हजार करोड़ रु निर्धारित
- ग्यारह, सीएएमपीए फ़ण्ड का उपयोग कर 6 हजार करोड़ रोजगार पक्का किया जा रहा है।
- बारह, नाबार्ड के माध्यम से किसानों के लिए 30 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त आपातकालीन कार्यशील पूँजीगत निधि सुनिश्चित की गई है।
- तेरह, किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ढाई करोड़ किसानों को बढ़ावा देने के लिए ₹2 लाख रखे गए हैं।
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए की गई 11 घोषणाएँ
[संपादित करें]आत्मनिर्भर भारत अभियान के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा देश के किसानों की आय को दोगुना करने के लिए मुख्यतः ग्यारह प्रकार की घोषणा की गई है।
- कृषि अवसंरचना की स्थापना के लिए 11 लाख करोड़ रुपये का कोष
- सूक्ष्म खाद्य उद्यमों के एक औपचारिककरण के उद्देश्य से एक नई योजना के लायक ₹ 10 हजार करोड़ दिए जा रहे हैं।
- प्रधानमन्त्री मातृ सम्पदा योजना के तहत मछुआरों के लिए 2 हजार करोड़ रुपये आवण्टित
- पशुपालन के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए 15 हजार करोड़ रुपये का सेटअप किया जाएगा।
- केन्द्र सरकार जड़ी-बूटियों की खेती के लिए 4 हजार करोड़ रुपये आवंटित करेगी।
- मधुमक्खी पालन की पहल के लिए 500 करोड़ रुपये अलग रखे गए हैं।
- 500 करोड़ रुपये के सभी फलों और सब्जियों को कवर करने के लिए 'ऑपरेशन ग्रीन' का विस्तार किया जाएगा।
- अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दालें, प्याज और आलू जैसे आवश्यक भोजन में संशोधन लाया जाएगा।
- कृषि विपणन सुधारों को एक नए कानून के माध्यम से लागू किया जाएगा जो अंतरराज्यीय व्यापार के लिए बाधाओं को दूर करेगा।
- किसान को सुविधात्मक कृषि उपज के माध्यम से मूल्य और गुणवत्ता आश्वासन दिया जाएगा।
- चौथा और पाँचवाँ ट्रान्च ज्यादातर संरचनात्मक सुधारों से जुड़ा था, जो कुल मिलाकर 48,100 करोड़ का था, जिसमें वायबिलिटी गैप फ़ण्डिंग ₹ 8,100 करोड़ है। इसके अतिरिक्त मनरेगा के लिए ₹ 40,000 करोड़ रखे गए हैं।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के लाभ देश के गरीब नागरिक, श्रमिक, प्रवासी मजदूर, पशुपालक, मछुआरे, किसान, संगठित क्षेत्र व असंगठित क्षेत्र के व्यक्ति, काश्तकार, कुटीर उद्योग, लघु उद्योग, मध्यमवर्गीय उद्योग को मिलेंगे। जिससे 10 करोड़ मजदूरों को लाभ होगा, एमएसएमई से जुड़े 11 करोड़ कर्मचारियों को फायदा होगा, उद्योग से जुड़े 3.8 करोड़ लोगों को लाभ पहुँचेगा और वस्त्र उद्योग से जुड़े साढ़े चार करोड़ कर्मचारियों को लाभ पहुँचेगा।
नोटलिस्ट
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सन्दर्भ
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ग्रंथसूची
[संपादित करें]- Joshi, Shareen; Muchhal, Siddharth; Brennan, Connor; Pradhan, Ria; Yang, Joyce (February 2021), ""Atman Nirbhar Bharat" - Economic Crises and Self-Reliance in the COVID-19 Pandemic" (PDF), International Affairs Forum, Center for International Relations, मूल (PDF) से 8 March 2021 को पुरालेखित
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- स्वदेशी आन्दोलन
- मेक इन इंडिया
- आत्मनिर्भरता (Autarky)