बीजांडासन
बीजाण्डासन या अपरा (Placenta) वह अंग है जिसके द्वारा गर्भाशय में स्थित भ्रूण के शरीर में माता के रक्त का पोषण पहुँचता रहता है और जिससे भ्रूण की वृद्धि होती है। यह अंग माता और भ्रूण के शरीरों में संबंध स्थापित करनेवाला है। यद्यपि माता का रक्त भ्रूण के शरीर में कहीं पर नहीं जाने पाता, दोनों के रक्त पूर्णतया पृथक् रहते हैं और दोनों की रक्तवाहिनियों के बीच एक पतली झिल्ली या दीवार रहती है, तो भी उस दीवार के द्वारा माता के रक्त के पोषक अवयव छनकर भ्रूण की रक्तवाहिकाओं में पहुँचते रहते है।
बीजाण्डासन की उत्पत्ति
[संपादित करें]जब संसेचित डिंब डिंबवाहिनी से गर्भशय में आता है तो वह वहाँ की उपकला या अंत:स्तर में, जो पिछले मासिक स्रव में नए सिरे से बन चुकी है, अपने रहने के लिए स्थान बनाता है। वह अंत:स्तर को खोदकर उसमें घुस जाता है। इस क्रिया में अंत: स्तर की कुछ रक्तवाहिकाएँ फटकर उनसे निकला हुआ रक्त संसेचित डिंब के चारों ओर एकत्र हो जाता है और अतं:स्तर का एक पतला स्तर डिंब के ऊपर भी छा जाता है। अब डिंब की वृद्धि होने लगती है। उसके चारों ओर जो रक्त एकत्र है उसी से वह पोषण लेता रहता है। उसके बाहरी पृष्ठ में अंकुर निकलते हैं। उधर गर्भाशय के डिंब के नीचे के खुले हुए भाग से भी अंकुर निकलते हैं। भ्रूण के और बढ़ने पर उसके ऊपर के आच्छादित भाग के अंकुर लुप्त हो जाते हैं और केवल अंत:स्तर की ओर के अंकुर रह जाते हैं। इन अंकुरों में रक्तवाहिकाओं की केशिकाएँ भी बन जाती हैं, जो अंत:स्तर की केशिकाओं से केवल एक झिल्ली द्वारा पृथक् रहती है। अंत में यह झिल्ली भी लुप्त हो जाती है और माता और भ्रूण के रक्त के बीच में केवल रक्तकेशिकाओं की सूक्ष्म दीवार रह जाती है, जिसके द्वारा माता के रक्त से ऑक्सीजन और पोषण विसरण (diffusion) और रसाकर्षण की भौतिक क्रियाओं से भ्रूण के रक्त में चले जाते हैं और भ्रूण के शरीर में रासायनिक क्रियाओं द्वारा उत्पत्र हुई कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य त्याज्य पदार्थ माता के रक्त में चले आते हैं। अनुराधा और अंकुर नायक सगे भाई बहिन है।
संरचना
[संपादित करें]पूर्ण बीजाण्डासन (मुनष्य में) २२ सेमी लम्बा होता है। यह बीच में लगभग २ से २.५ सेमी मोटा, चपटा, परिधि में गोल मंडल होता है; किंतु परिधि के पास, जहाँ वह गर्भाशय की उपकला से मिल जाता है, पतला होता है। उसका भार लगभग ५०० ग्राम होता है। प्रसव के समय गर्भाशय के मांसस्तर में संकोच होने से माता और भ्रूण के अंकुरों का संबंध विच्छिन्न हो जाता है। मांससूत्रों के संकोच से गर्भाशय के अंकुरों की रक्तवाहिकाओं के मुँह बंद हो जाते हैं, इससे उनसे रक्त नहीं निकलता, किंतु बीजाण्डासनवाले अंकुरो की वाहिनियों के मुँह खुले रहने से कुछ रक्त निकलकर प्रसव में बाहर आता है।
बीजाण्डासन का कर्म
[संपादित करें]इस प्रकार बीजाण्डासन शिशु की वृद्धि और उसके जीवन के लिए अत्यंत महत्व का अंग है:
(१) वह भ्रूण के फुफ्फुस की भाँति श्वसन (respiration) का कर्म करता है। माता के रक्त का ऑक्सीजन इसके द्वारा भ्रूण में पहुँचता हैं;
(२) भ्रूण के शरीर में उत्पन्न हुई कार्बन डाइआक्साइड तथा भ्रूण के चयापचय से उत्पन्न हुए अन्य अंतिम त्याज्य पदार्थ माता के रक्त में बीजाण्डासन द्वारा लौट जाते हैं। इस प्रकार वह उत्सर्जन (excretion) का कर्म करता है;
(३) भ्रूण में माता के रक्त से पोषक अवयवों के पहुँचाने का काम इसी अंग का है। अतएव वह पोषण (nutrition) भी करता है;
(४) वह अवरोधक (barrier) का भी काम करता है; रोगों के पराश्रयी जीवों तथा बहुत से विषों को माता के रक्त से भ्रूण में नहीं जाने देता तथा
(५) बीजाण्डासन में एक अंत:स्रावी रस या हार्मोन (hormone) भी बनता है, जो भ्रूण की वृद्धि करता है।