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भारतचंद्र राय

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https://web.archive.org/web/20160829035704/https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Bharathchandra_Ray.jpg

मोटे अक्षरबंगाल में भारतचंद्र विद्यासुंदर (1712-1760) काव्यपरंपरा के श्रेष्ठ कवि हुए हैं।

ईश्वरचंद्र गुप्त ने भारतचंद्र की बहुत सी रचनाओं की खोज करके उन्हें 'भारतचंद्रेर ग्रंथावली' नाम से सन्‌ 1855 ई. में पुस्तकाकार प्रकाशित किया। इसी में उन्होने उनकी खोजपूर्ण जीवनी भी प्रकाशित की है। इसके अनुसार भारतचन्द्र दक्षिण राढ़ी भुरशिट (वर्तमान हावड़ा जिला) परगने में स्थित पेड़ो वसंतपुर ग्राम के निवासी एवं मुखर्जी ब्राह्मण थे। इनके एक पूर्वपुरुष प्रतापनारायण अत्यंत प्रसिद्ध व्यक्ति थे। इनके पिता का नाम नरेंद्रनारायण एवं माता का नाम भवानी था। इनका जन्म 1712-13 ई. में हुआ था एवं मृत्यु 48 वर्ष की उम्र में सन्‌ 1760-61 में हुई थी। भारतचंद्र ने विवाहोपरांत अल्प आयु में ही गृहत्याग कर दिया और देवानंदपुर में रामचंद्र मुंशी के पास आश्रय लिया। वहीं इन्होंने संस्कृत और फारसी की शिक्षा ग्रहण की। शिक्षाकाल में ही काव्यरचना भी प्रारंभ कर दी थी। वहीं पर उन्होंने अपने आश्रयदाता के अनुरोध से सत्यनारायण संबंधी दो छोटे पांचाली काव्य लिखे थे। शिक्षा समाप्त करने के उपरांत वे घर लौट आए। इनकी पैतृक जमींदारी को बर्दवान के दीवान ने आत्मसात्‌ कर लिया था। भारतचंद्र उसे छुड़ाने राजदरबार गए। वहाँ से वैष्णव धर्म ग्रहण करके वृंदावन की ओर चल दिए। राह से एक आत्मीय उन्हें लौटा आया। कुछ दिनों के बाद वे गृहत्याग करके जीविका की खोज में चल दिए। नवद्वीप के राजा कृष्णचंद्र राय ने उन्हें अपने यहाँ आश्रय दिया। मूलाजोड़े नामक ग्राम में उन्हें जमीन इत्यादि देकर उन्हें अपना सभाकवि बनाया। इनके तीन पुत्र थे परीक्षित, रामतनु और भगवान्‌।

भारतचंद्र के नाम से कई एक छोटी, बड़ी रचनाएँ प्राप्त हैं। इनकी सुप्रसिद्ध रचना 'अन्नदामंगल' अथवा 'अन्नपूर्णामंगल' है। इसकी रचना राजा कृष्णचंद्र राय की आज्ञा से हुई थी। इसमें तीन स्वतंत्र उपाख्यान हैं। इस काव्य में कई गीत बड़े सुंदर हैं।

भारतचंद्र ने 'नागाष्टक' एवं 'गंगाष्टक' नाम की दो रचनाएँ संस्कृत में की थीं। रसमंजरी नाम से एक नायक-नायिका-भेद संबंधी अनुवाद ग्रंथ भी प्राप्त है।

भारतचंद्र अत्यंत सुंदर कविता करते थे। शब्दचयन, छंदों का प्रवाह अलंकारों का प्रयोग, उक्तिचातुर्य सबको लेकर इनकी काव्यप्रतिभा विकसित हुई है। इनकी उक्तियाँ काफी प्रचलित हैं। प्राचीन काव्यों की विषयपरंपरा के प्रतिकूल इन्होंने नए विषयों, जैसे वर्षा, वसंत, वासना इत्यादि पर कविता की है। इनके परिवर्ती कवियों पर इनका बहुत प्रभाव है।

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