द्वार के वेध का फल

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द्वार के वेध का फल

वराहमिहीर द्वारा विरचित बृहत्सहिंता मे वास्तु विद्या अध्याय मे द्वार के वेध के बारे मे बताया है। यदि मार्ग, वृक्ष् खंबा दूसरे घर का कोना, कूप, खंभा या भृम से गृह द्वार विध्द होता है। यह अशुभ होता है। परन्तु गृह द्वार की जितनी उचाई हो उसे दुगुणी भूमि को छोडकर आगे वेध करते हुए भी इन मार्गादि का रहना दोषद नही है।

यदि गृह द्वार मार्ग से वेधित हो तो गृह स्वामी की मृत्यू, वृक्ष् से वेधित हो तो बालको मे दोष, कीचड से वेधित हो तो शोक, मोरी से वेधित हो तो व्यर्थ खर्च, कूप से वेधित हो तो मिरगी रोग की उत्पति, देवता की प्रतिमा से वेधित हो तो गृह स्वामी का नाश, स्तंभ से वेधित हो तो स्त्रियो मे दोष और ब्रह्मा के सम्मुख हो तो कुल का नाश होता है। मूल द्वार की शोभा कलश, श्रीफल, पत्र पुष्प आदि से बढानी चाहिए।

~सुषमा~

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