सदस्य:अमित हार्डिया

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जयपुर नामा

कुशवंशी , कुशवाहा , कच्छवाह ,कछावत ,काछी[संपादित करें]

इस जाति के बारे में वार्तालाप करने से पहले इसके इतिहास पर गौर करना जरूरी होगा । इस पर भी कई अवधारणाएं है । 1 ,भगवान श्री राम के पुत्र कुश को कच्छ का साम्राज्य शासन करने के लिए दिया गया था । ये सब भगवान राम के बेटे कुश के वंसज ही है तभी अपने नाम के आगे अपने कुल शिरोमणि कुश वंशी ,कुशवाहा आदि लिखते है । 2 , कच्छ में निवास करने वाले क्षत्रिय जब कच्छ से निकलकर देश के अन्य भागों में जाकर बस गए । तब इन्हें कच्छ से आए होने के कारण कछावत ,कच्छपपारी आदि नामों से संबोधन किया जाने लगा । कालांतर में हुए जातियों के नाम से छेडछाड़ के चलते इनके नामों में समय समय पर परिवर्तन आते गए जैसे कच्छवाह , कुशवाहा इन्ही शब्दों का बिगड़ा हुआ और संछिप्त रूप काछी है । 3 , आमेर के राजा भारमल सिंह कच्छवाह के मुगलों से राजनीतिक समझौते के तौर पर राजकुमारी जोधा का विवाह मुगलशासक जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर के साथ कर दिया जिसका विरोध करने वाले सभी क्षत्रियों ने अपना राजपाठ छोड़कर गृह त्याग कर देश के अन्य राज्यो में पलायन कर दिया और आजीविका के लिए कृषि को ही भरण पोषण और व्यवसाय स्वरूप अपना लिया क्योंकि राजा ही भूस्वामी होता था और क्षत्रियों के लिए शास्त्र सम्मत कार्य शासन के अतिरिक्‍त कृषि ही है | अगर तीनो अवधारणाओं को आपस मे जोड़कर देखा जाए तो हम यही पाते है कि कुशवंशी ,कुशवाहा , कच्छवाह , कछावत ,काछी सभी एक ही माला के मोती है इनके नामों को समय और स्थान के साथ बार बार परिवर्तित तथा बोलचाल में सहजता हेतु परिवर्तित किया जाता रहा है । असल मे ये रघुकुल शिरोमणि श्री राम के पुत्र कुश की ही संताने है जो कच्छ से निकलकर अन्य राज्यों में बस गई थी । ये पौराणिक सूर्य वंशी क्षत्रीय है ।