बटेश्वरनाथ (महादेव शिव)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

बटेश्वरनाथ मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है। बटेश्वर यमुना नदी के तट पर आगरा (उत्तर प्रदेश) से 70 किमी की दूरी पर स्थित है। बटेश्वर एक समृद्ध इतिहास के साथ सबसे पुराने गांवों में से एक है। यह भारत में महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र में से एक है। बटेश्वर स्थल यमुना और शौरीपुर के तट पर स्थित 101 शिव मंदिरों के लिए जाना जाता है। हिंदुओं के भगवान शिव के सम्मान में यमुना नदी तट पर स्थित बटेश्वर धाम की तीर्थयात्रा करते हैं। कुछ मंदिरों की दीवारों और छत में आज भी सुन्दर आकृतियां बनी हुई है। 22वें तीर्थंकर प्रभु नेमिनाथ शौरीपुर में पैदा हुआ थे। इस क्षेत्र के रूप में अच्छी तरह से जैन पर्यटकों को आकर्षित करती है।

यमुना के तट पर एक पंक्ति में 101 मंदिर स्थित हैं जिनको राजा बदन सिंह भदौरिया द्वारा बनाया गया था। राजा बदन सिंह ने यमुना नदी के प्रवाह को जो कभी पश्चिम से पूर्व कि ओर था उसको बदल कर पूर्व से पश्चिम की ओर अर्थात् बटेश्वर की तरफ कर दिया गया था। इन मंदिरों को यमुना नदी के प्रवाह से बचाने के लिए एक बांध का निर्माण भी राजा बदन सिंह भदौरिया द्वारा किया गया था। बटेश्वर नाथ मंदिर का रामायण, महाभारत, और मत्स्य पुराण के पवित्र ग्रंथों में इसके उल्लेख मिलता है।

बटेश्वरनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा बिहार का प्राचीन मंदिर है। यह हाजीपुर के पूर्व में स्थित है। यह मंदिर मुग़ल काल से यहाँ स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति हज़ारों वर्ष पुराने बरगद के वृक्ष के बीच से हुई तथा अनेक लोग यह मानते हैं कि यह मंदिर स्वनिर्मित है। इसके परिणामस्वरूप अनेक भक्त यहाँ आते हैं।

डाकू घुनघुन परिहार ने यहां घंटा चढ़ाकर डाकू होने का एलान किया था। डाकू पान सिंह तोमर जब भी बड़ी डकैती में सफल होते थे, तो वह बड़ा घंटा चढ़ाया करते थे। - दर्जनों घंटे मोटे-मोटे जंजीरों से बंधे हैं। इनमें से कई घंटों पर डकैतों के नाम भी लिखे हैं।

बटेश्वर मेला यहां हर साल एक बड़ा पशु मेला अक्टूबर और नवंबर के महीने में (प्रतिवर्ष कार्तिक मास) आयोजित किया जाता है। शिव का एक नाम पशुपति भी है, बटेश्वर का पशुमेला इसे सार्थक करता है। बटेश्वर का पशुओं का मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है तथा इस मेले का आनन्द लेने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। यहां मेला तीन चरणों मे पूरा होता है, पहले चरण में ऊँट, घोड़े और गधों की बिक्री होती है, दूसरे चरण में गाय आदि अन्य पशुओं की तथा अंतिम चरण में सांस्कृतिक रंगा रंग कार्यक्रम होते हैं। मेला शुरू होने के एक सप्ताह पहले से ही पशु-व्यापारी अपने पशु लेकर यहां पहुँचने लगते हैं। मेले में पशुओं की विभिन्न प्रकार की दौड़ों का आयोजन भी किया जाता है। बटेश्वर के इस छोटे से शहर में अब तक शहर के व्यस्त जीवन से मन की शांति प्रदान करता है जो हिन्दुओं और जैनियों के लिए पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख स्थान है।