सदस्य:AkhandRamayan

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

अखंड रामायण

भगवान श्री राम जी के बारे में जानें

राजा दशरथ के घर जन्मे भगवान श्री राम को विष्णु जी का सातवां अवतार माना जाता है। रामायण नामक धार्मिक ग्रंथ के मुख्य पात्र श्री राम ही हैं। विष्णु जी का अवतार होने के कारण भगवान श्री राम को बेहद पूजनीय माना जाता है। "रामायण" नामक ग्रंथ में भगवान राम के विषय में पूर्ण जानकारी दी गई है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।

भगवान श्री राम और उनका परिवार

भगवान राम जी का जन्म अयोध्या में हुआ था। उनकी माता का नाम कौशल्या और पिता का नाम दशरथ था। भगवान राम के तीन भाई थे:- भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण। भगवान राम जी के गुरु का नाम वशिष्ठ था। उनका विवाह माता सीता के साथ हुआ था। भगवान राम और सीता जी की जोड़ी को आज भी एक आदर्श जोड़ी माना जाता है। भगवान राम जी के दो पुत्र थे:- लव और कुश।

भगवान विष्णु ने क्यों लिया राम अवतार

हिन्दू मान्यता के अनुसार विष्णु जी ने राम अवतार अन्यायी एवं दुष्ट राक्षस राजा रावण को खत्म करने के लिए लिया था। श्री राम अवतार में विष्णु जी ने विश्व पुत्र, भाई, पति और मित्र के गुणों को सामने रखा। श्री राम जी ने अपने पिता के कहने पर 14 वर्ष का वनवास काटा तथा अपनी मित्रता का संदेश देते हुए बाली की हत्या कर सुग्रीव का राज-पाठ उसे वापस दिलाया।

भगवान श्री राम के संदेश

भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान राम ने हर काम एक मर्यादा में रहकर किया। फिर चाहे बिना किसी प्रश्न के अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करना हो या फिर वन में सीता हरण के बाद रावण का वध। रावण की मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपने दुश्मन से बैर नहीं रखा बल्कि अपने भाई को रावण के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा। भगवान राम का चरित्र हमें माता- पिता की सेवा करना उनकी आज्ञा का पालन करना सिखाता है।

श्री रामचन्द्र जी की आरती

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं | नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं | श्री राम श्री राम....

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनीलनीरद सुन्दरं | पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं | श्री राम श्री राम....

भजु दीनबंधु दिनेश दानवदै त्यवंशनिकंदनं | रघुनंद आंनदकंद कोशलचंद दशरथनंदनं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं | श्री राम श्री राम...

सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं | आजानु भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ||

भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं | श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ||

इति वदित तुलसीदास शंकरशेषमुनिमनरंजनं | मम ह्रदयकंजनिवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं | नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं || श्री राम श्री राम...

श्री राम चालीसा

श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥ निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥1॥

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥ दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥2॥

तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥ तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥3॥

ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥ चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥4॥

गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥5॥

राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥ गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥6॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥ फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥7॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥ नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥8॥

लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥ ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥9॥

महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥ सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥10॥

घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥ सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥11॥

सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥ औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥12॥

इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥ जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥13॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥ सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥14॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥ सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥15॥

सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥ तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥16॥

जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥ राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥17॥

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥ धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥18॥

सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥ सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥19॥

याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥ आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥20॥

और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥ तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥21॥

साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥ अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥22॥

श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥23॥

॥ दोहा॥ सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय। हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥

राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय। जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥

विस्तार से पढ़े

अखंड रामायण

संस्थापक

मनीष कुमार चतुर्वेदी

संपर्क करे:-
akhandramayan@yahoo.com
m.pandit24@gmail.com
+919554988808
+601111322449