शवसिक्थ

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शवसिक्थ (अंग्रेज़ी: Adipocere) को शव, कब्र या मुर्दाघर मोम भी कहा जाता है। यह एक मोम के जैसा कार्बनिक पदार्थ होता है, जो कि उतकों में वसा की अवायवीय जीवाणु हाइड्रोलिसिस हो जाने के कारण बनता है, जैसे कि, लाशों के शरीर में वसा के रूप में बन जाना।

इतिहास[संपादित करें]

शवसिक्थ, सबसे पहले सर थोमूस ब्रोवने (Sir Thomas Browne) ने वर्णित किया था। शवसिक्थ की रसायनिक प्रक्रिया १७वीं शताब्दी में समझी गयी थी।

यहाँ तक भी मन जाता है कि १८२५ में ओगसटस ग्रानविल्ले (Augustus Granville) ने शवसिक्थ से मोमबत्ती बनाई थी और उसे अपने भाषण के दौरान जलाया भी था।

दिखावट[संपादित करें]

शवसिक्थ बिखरा हुआ, मोमी, पानी में अघुलनशील पदार्थ होता है। यह ज्यादातर संतृप्त फैटी एसिड से मिलकर बना होता है। इसका रंग निर्भर करता है कि यह कोंसे रंग के वसा से बना है, भूरे रंग के या सफेद रंग के।

कई बार शवसिक्थ से शरीर के आकार और चेहरे की विशेषताओं और चोट जो कि शरीर में लगी होंगी का आकलन किया जा सकता है।

गठन[संपादित करें]

वसा, शवसिक्थ में ऐसे वातावरण में बदलता है जहां नामी कि मात्र ज्यादा होती है और ऑक्सीजन नहीं होती। जैसे कि गीला मैदान, एक झील के तल पर कीचड़, एक सीलबंद डिबिया इत्यादि।

शवसिक्थ मृत्यु के एक महीने बाद बनना शुरू हो जाता है। और हवा कि अनुपस्थिति में तो यह सदियों तक दृढ रह सकता है।

औरत, शिशु तथा ऐसे व्यक्ति जिनका वजन ज्यादा होता है उनके शरीर की शवसिक्थ बनने की ज्यादा प्रवृति होती है क्युकी उनमे वसा कि मात्र ज्यादा होती है।

न्यायिक विज्ञान में शवसिक्थ से पोस्टमार्टम के अंतराल का एक हद तक ही अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि प्रक्रिया की गति तापमान पर निर्भर है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]