चॆर्लॊकॊत्तूरु (कर्नूलु)
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INTAQAAM KI EK NAYI DASTAAN Ek Nayi Rong Mein So1
========================== "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।" ============================
INTAQAAM KI EK NAYI DASTAAN S01 Ek Nayi Rong Mein
💘सूचना💘 12:47, 21 अक्टूबर 2024 (UTC)~~ {[ PART=1]}12:47, 21 अक्टूबर 2024 (UTC)~ """"इस कहानी काल्पनिक मनोभाव से बनाया गया है। इस कहानी में अपने ही अपनों के विरोध कैसे खड़ा होकर अपनो के साथ किस तरह खुद की परिचय देते है, कैसा अत्याचार करते है इसके बारे में उल्लेख किया गया है। इस कहानी में अपने ही पिता ने अपनी सन्तान को मार कर उनकी प्राण सीन कर अपनी श्रेष्ठता का परिचय देना चाहता था। पर वो ऐसा करने का सामर्थ नहीं रख पाया क्यों की उनकी एक पत्नी थी जिन्हों ने अपनी परम विश्वास और धैर्य का प्रदर्शन करके आपनी पति से सन्तान को दूर कर के अपनी बच्ची को बसा लिया। पिता ने जब अपनी बच्ची से शक्ति नहीं ले पाया तब वो बच्चे को बार बार मारने का प्रयास किया। ऐसे ही सो सो सालो तक ये युद्ध चलता रहा। 400 सालों के बाद एक एसा वक आया, जब पूरे ब्रह्माण्ड की सारे यह नक्षत्र एक ही दिशा पर आया और उस दोनों शक्तियाँ भी पुनः लोट आया। तभी एक महायुद्ध महासमय का आरम्भ हुआ। उन्ध दोनों के साथ फिर से एक महायुद्ध का आरम्भ हुआ। आइए आगे की पूरी कहानी को देखते है।
Written by RISHI SAIKIA- Address: Tinsukia District, Assam (India)
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[संपादित करें]INTAQAAM KI EK NAYI DASTAAN Ek Nayi Rang Mein So1 WRITTEN BY RISHI SAIKIA
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[संपादित करें]सर्वपरी महाराणी, सर्वपरी रक्षिका। सर्वशक्ति का रक्षिका, परमेशरी कालरक्षिका।। अस्तपरी कालश्वामिनी, अस्तरक्षिका परी। सर्वशक्ति का रक्षिका, परमेशरी कालरक्षिका।। """ ये कहानी आज की कहानी नहीं, ये कहानी आज से 400 साल पहले की कहानी है, काललोक की कहानी, काललोक की भयराजा थे कालराज और उन्ध की पत्नी यानी भयरानी भी कालमयी एक दिन,"""" Rishav Saikia (वार्ता) 12:47, 21 अक्टूबर 2024 (UTC)(काललोक, कालराज ने अपनी सेना के साथ अपने महल में बैठ रहा था। कालमयी ने आके कालराज से कहा: "भगराजा कालराज आप के लिए एक खुशखबरी है, काललोक में एक नए मेहमान आने वाले है, यानी, यानी में मा बनने वाली हूँ।" कालराज खुशी से उछल पड़ा। कालगुरु:""क्या ये त्यो बहुत अच्छी खबर है, और काललोक के नियम के अनुसार आप दोनों की पहली सन्तान यानी आप दोनों की इस बच्चे को ही कालरक्षिका या कार्लक्स अर्थात कालरक्षक होने का वरदान मिलेंगे,काललोक की निवासीयों आप सभी के लिए एक खुशखबरी है, काललोक में एक नए मेहमान यानी एक नए उत्तराधिकारी आने वाले है जाओ जाकर इस पूरे काललोक को अच्छी तरह से सजा दो और नए उत्तराधिकारी आने के खुशी में खुशीया मनाओ।"" सारे काललोक वासी काललोक को सजाने के लिए चला गया। )--- ""इस बात को लेकर सबलोग अथार्त पूरे काललोक वासी बहुत खुश थे। कालराज ने अपनी उत्तराधिकारी के साथ मिलकर इस पूरे ब्राह्मण पर राज करने की सपने में डूब गया। कालराज:"" मे अपनी उतराधिकारी के साथ मिलकर इस पूरे ब्रह्माण्ड पर राज करुंगा, इसबार एसा केहेर लाऊंगा की पुरी दुनीया काँप उठे।"" कालमयी ने कुछ नही कर पाया। कुछ दिन बाद, काललोक, कालगुरु ने कालराज और कालमयी की कक्ष में आया, कालराज अपनी कक्ष में बैठा रहा। कालगुरु ने आके कहा:"" भयराजा की जय हो, भयराजा एक समस्या है, भयराजा, आपलोग और इस पूरे काललोक के लिए उस खुश खबरी के साथ साथ एक बुरी खबर भी है, भयराजा मैने उस बच्चे की कुंडली देखा और पाता चला की ये बच्चा केवल काललोक की उत्तराधिकारी ही नही बल्की इस पूरे बह्माण्ड यानी धरती,आकाश और पाताल इन तीनो दुनीया की रक्षक है।"" कालराज को चक लगा, कालमयी ने ही ये सारी बातें सुनकर हैरान हुआ। """" फिर एक दिन Rishav Saikia (वार्ता) काललोक कालमयी ने अपनी कक्ष की तरफ आ रहा था। कालमयी ने कालराज और कालगुरु को बाते करते हुए सुना। कालराज :"" कालगुरु किसी भी करके हमे उस बच्चे को इन तीनो दुनिया की रक्षक बनने से रुकना होगा, क्योकि वो सिर्फ और सिर्फ काललोक की रक्षक है और किसी दुनिया की भी नही, वो सिर्फ मेरा रक्षक है और किसी की भी नही।"" कालगुरु: ""भयराजा उसे रुकने का सिर्फ एक ही तरीका है,आपको उसे मारना होगा।"" (कालराज और कालमयी को चक लगा।)""अगर उसकी जनम होने से पहले पहले ही उसे मारकर उसकी अंदर काली शक्ति डाल दिया जाए तो उसकी अच्छाई और सच्चाई की शक्ति हमेशा के लिए खतम हो जाएगा और अगर सोनहरे चांद की आधिरात के समय उसको मार दिया जाए तो उसकी अंदर समाहित सारी शक्ति मारने वालो के अंदर समा जाएगा (कालमयी को चक लगा)।"" कालराज :"" तो ठीक है, काललोक को बचाने के लिए मुझे उसको यानी कालमयी को भी मारना पड़े तो मे पीछे नहीं हातेगें (कालमयी को चक लगा।)"" कालगुरु:""(कुछ देर सोचने के बाद) ये मे सोचा क्यों नहीं, आज ही वो सोनहरे चांद वाली रात है जो कई हजार वर्ष बाद आती है, भयराजा और एक बात आपकी वो सुनहेरा मोका तो आज ही है,आज ही वो सोनहरे चांद वाली रात है जो कई हजार वर्ष बाद आती है यानी कुछ पल बाद ही वो पल आएगा।"" कालराज:"" इसका मतलब एक तीर से दो चिड़िया, उस बच्चे को मारकर उसके अंदर समाहित सारी शक्ति अपनी ओर खींच लूंगा, ( कालमयी को चक लगा) और में पूरी दुनिया पर राज करुंगा (कालराज और कालगुरु ने हंसने लगा।)"" सोनहरे चांद निकल आया। चाद की रोशनी चारो तरफ फेलता रहा, तेजी से हवा चलने लगा। काललोक, कालमयी:"" नही में अपनी बच्ची को कुछ नहीं होने दूंगी चाहे जो कुछ भी हो जाए मे अपनी बच्ची को कुछ नहीं होने दूंगी।"" कालगुरु: ""होनी को कौन डाल सकता है भला जो होना है वो तो होकर ही रहेगा। "" कालराज और कालगुरु ने हांसा। कालमयी ने कालराज और कालगुरु को अपने पास देखकर डर गया। कालमयी:"" तुमलोग चाहे जो कुछ भी कर लो में मेरे बच्चे को एक आंश भी आने नहीं होने दूंगी, ये मेरा बादा है तुम दोनो से कायर। "" कालमयी ने अपनी शक्ति से उनलोगो को चकमा देकर चला गया। काललोक की वाग, कालमयी ने आसमान में उड़ते हुए काललोक की मुख्य दरवाजे की तरफ आता रहा। कालमयी को झंटका लगा। कालमयी ने जमीन पे गिर पड़ा। कालराज और कालगुरु ने आया। कालगुरु:"" मेरे इजाजत के बगर तुम यहां से कभी बाहार नहीं जा पाओगे। (कालगुरु की याद आया, कालराज और कालगुरु ने कालमयी की काले धूँवे की वजह से कुछ नहीं देख पाया। कालराज ने अपनी शक्ति से धुँवा को हता दिया। कालमयी यहा पर नहीं था। कालगुरु ने अपनी शक्ति से काललोक की चारो ओर एक अभेद्य सुरक्षा कवच (त्रिकाल का कवच) लगाया ताकि कालमयी काललोक से बाहर नहीं निकल पाये।)"" कालमयी:"" चाहे तुमलोग जो कुछ भी कर लो जितनी भी कवच लगालो मुझे यहां से जाने से कभी नहीं रुक पाओगे, चाहे जो कुछ भी हो जाए मे मेरे बच्चे को कुछ नहीं होने दूंगी, चाहे मेरी जान भी क्यो न चले जाए।" कालमयी ने उड़कर अभेद्य कवच को पार करने की कोशिश किया, कालमयी को फिर झंतका लगा। कालमयी ने फिर जमीन पे गिर पड़ा। सुनहरे चांद निकल आया। कालगुरु:"" इतनी भी क्या जल्दी है भगरानी, थोड़ा सफर करो, जब ये सोनहरे चांद आधिरात के समय अपनी चरम सीमा पर होगा ठीक उसी समय तुम्हारी ये अंश का आखरी पल होगा, तुम तो काललोक की भयरानी हो न तो तुम ये काललोक की अंत को क्यो पालने लगी हो, तुम्हें उसे मार देना चाहिए।""' कालमयी:"" नहीं में ऐसा कुछ नहीं करूंगी, चाहे जो कुछ भी हो जाए, मेरी जान भी क्यों न चले जाए मे मेरे बच्चे को कुछ नहीं होने दूंगी।"" कालराज:""तो तुम ऐसे नहीं मानोगे तो ठीक है तुम अपनी जान गवाने के लिए तैयार हो जाओ।"" कालराज ने अपनी शक्ति से कालमयी को मारने का प्रयास किया। कालमयी ने कालराज के साथ युद्ध किया। कालमयी हार गया। कालराज ने फिर से कालमयी को हमला किया। कालमयी ने कालराज से फिर युद्ध किया। कालमयी ने एक अस्त्र से कालराज पर हमला किया। कालराज हार कर गिर गया। $$"" कालमयी के पास ऐसी शक्ति भी थी की वो किसी को भी थोड़ी देर के लिए पत्थर बना सकती थी। उसने कालराज और कालगुरू के साथ ऐसा ही किया।"$$ कालमयी ने कालराज और कालगुरू को अपनी शक्ति से क्रेट किया कालराज और कालगुरू थोड़ी देर केलिए पत्थर बन गया। सुनहरे चांद निकल आया, कालराज और कालगुरू को पत्थर बनते हुए देखकर काललोक की सारी सेना ने आकर कालमयी पर हमला किया। कालमयी ने सारे काललोक बासी को समझाया पर किसीने कालमयी की बात नही माना। काललोक की सारी सेनाओ ने आकर कालमयी पर हमला किया। कालमयी ने अपनी सारी सेनाओ के साथ युद्ध किया। कालमयी ने हार गया। कालमयी को कालराज और कालगुरू की सारी बाते यानी कालमायी की पेट(गर्भ) में सांसे लेने वाली बच्चे को मारने की योजना के बारे में याद आया। कालराज और कालगुरु ने पत्थर से आजाद हुआ। कालमयी ने अपनी शक्ति से कालसेना को बेहुश कर दिया। कालराज और कालगुरू पूरी तरह से कालमयी की बंधन से आजाद हुआ। कालराज ने अपनी शक्ति से कालमयी को पकड़ा। कालमयी ने अपनी शक्ति से कालराज पे बार किया। कालराज और कालगुरू ने जमीन पे गिर गया। सुनहरे चांद निकल आया। कुछ देर बाद, सुनहरे चांद निकलकर अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। कालराज और कालगुरू ने अपनी शक्ति से कालमयी को पकड़ा। कालमची ने अपनी शक्ति से दोनो पर वार किया। कालराज और कालगुरू को झंटका लगा और दोनो जमीन पे गिर गया। कालगुरू ने उठकर अपनी शक्ति से कालमयी पर हमला किया। कालमयी ने अपनी शक्ति प्रयोग करके कालगुरू को अपनी और खींच लिया। कालमयी ने एक अग्नेयास्त्र प्रयोग करके कालगुरु को मार दिया। कालराज ने चिल्लाया: "'" भगरानी तुमने ऐसा करके अपनी मत को दावत दी है भयरानी....."" कालराज ने काल त्रिनेत्र तिशूल प्रयोग करके कालमयी पर वार किया। कालराज ने काल त्रिनेत्र तिशूल आके कालगुरु पर लगा, क्योंकि कालमयी ने अपनी शक्ति से कालगुरु को अपने सामने ले आया था। सुनहरे चांद की रात खतम हुँआ। कालमयी ने अपनी ऊपर रोशनी सुरक्षा कवच लगाया और काललोक की चारो तरफ तेज रश्मि फैला दिया। तेज रश्मि की वजह से कालराज कुछ नहीं देख पाया। कालमयी: ""क्या हुआ भयराजा लाचार कालराज सुनहरा मौका हाथ से निकल गया अ ..... तुम जीत के भी हार गई, तुम जीत के भी हार गई, तुम जीत के भी हार गई।"" कालमयी ने काललोक छोड़ कर चला गया। कालराज ने खुद से और कालगुरु से वादा किया। कालराज:"" जब तक में कालमयी और उसकी अंश की विनाश नहीं करूंगा तब तक में उन्ध दोनों की पीछा नहीं छोडूंगा में आ रहा हूँ तुम्हारी अंत के लिए भयरानी आ रहा हूँ में तुम्हारी अंत के लिए.... (चिल्लाया)।" पृथ्वीलोक, कालमयी ने भागते भागते उड़ते हुए आकर पृथ्वीलोक में पहुंच गया। कालमयी ने एक भगवान (Shivmondir) की पास पहुंच गया। शिवमंदिर में Rudra नाम की एक पुजारी ने पूजा कर रहा था। कालमयी ने मंदिर की अंदर आने की बहुत कोशिश किया, लेकिन वो अंदर नहीं आ पाया। कालमयी ने एक सुंदर स्त्री (औरत) की रूप धारण करके फिर अंदर आने की कोशिश किया पर अंदर नहीं आ पाया। कालमयी:"" हे देव, आप तो भक्तो का रक्षक है न, आप तो इस पूरे संसार है न, आप मेरी मदद कीजिए, आप उस राक्षस से मेरी बच्चे को बचा लीजिए आप तो हर बुराई को मिटाने वाले महाकाल ही न, आज एक काली शक्ति आप की चरण में गिरकर आपसे अपनी बच्ची की रक्षा की भीग मांग रही है, आप मेरी बच्चे को उस कालराज की नजरों से बचा लीजिए, आप चाहे मूझे जितनी भी रुकने की कोशिश करे, मे अपने कर्म से पीछे नहीं हटूंगी, चाहे जो कुछ भी हो जाए मैं अपने कर्म से पीछे नहीं हटूंगी (कालमची ने बार बार मंदिर की अंदर आने की कोशिश करता रहा। पर अंदर नही आ पाया)।" कुछ देर बाद, कालमयी ने अपनी मन को शांत किया और मंदिर की दरवाजे पे लगाए हुए सुरक्षा कवच पर अपना हाथ रखा। कालमयी ने उस सुरक्षा कवच पर हाथ रखते ही सुरक्षा कवच हात गया यानी कालमयी महादेव की परिक्षा में सफल हुआ। कालमयी ने मंदिर के अंदर आया। कालमयी ने मंदिर के अंदर आके महादेव चरण स्पर्श करके महादेव की प्रणाम किया। कालमयी ने कालरक्षिका के लिए भगवान से दुवा मांगा और महादेव की चारों ओर न परिक्रमा पूर्ण किया। धरती की मोसम बदल गया। कालमयी ने न परिक्रमा सम्पूर्ण करके महादेव की सामने तांडव किया। अग्नेयगिरी उदीरण हुआ, बिजली गिराया, तेज हवा चलने लगा। कालमयी ने तांडव करते करते गिर गया कालमयी ने उठकर हवन कुंड की अग्नि के जरिए अपनी सारी शक्तियाँ त्यागने लगा, कालमयी बेहुश होके गिर गया। महादेव कालमयी से पसंद होकर कालमयी की सामने प्रकट हुआ। कालमयी की हुश आया। कालमयी ने उठकर महादेव को प्रणाम किया। महादेव कालमयी से प्रसन्न होकर कहा:"' क्या हुआ बेटी तुम क्यों परिशांत हो।'"" कालमयी ने महादेव को काललोक में होनेवाली सारी घटना के बारे में जानकारी दी। महादेव :"" और तुम इसी कारण अपनी लोक से दूर होकर अपनी शक्ति त्यागने चली थी। तुम्हे शक्ति त्यागने की कोई जरूरत नहीं, अगर तुम्हारी शक्तियाँ ही नही रहेगी तो तुम अपनी बच्ची की रक्षा कैसे करोगी, तुम्हारी बच्ची की ऊपर एक बहुत बड़ी खतरा आने वाली है जिसकी रक्षा तुम्हे ही करनी होगी। (कालमयी ने महादेव को सवाल किया) एक ऐसी खतरा जिसके बारे में मुझे भी ज्ञात नहीं समयचक्र ने इस बार बहुत बड़ी खेल रस रहा जिसकी सामना तुम्हे और तुम्हारी बच्ची को ही करना होगा।'"" कालमयी:"" 'खतरा चाहे जो भी हो जैसी भी हो मे सामना करने केलिए तेयार हूँ।"" महादेव :""मे तुम्हारी फैसले से पसंद हूँ, कहो तुम्हे क्या चाहिए? "" कालमयी :""मुझे कुछ नही चाहिए मुझे बस अपनी बच्ची के साथ एक नई जिंदगी जीने की आशीर्वाद चाहिए, वही मेरे लिए आपकी दी हुई सबसे बड़ी वर होगी।"" महादेव ने कालमयी को एक नई जिंदगी जीने की आशीर्वाद देकर वहां से चला गया। बाहर की मोसम पहले जैसा हो गया। कालमयी ने मालविका की नाम से इंसानी रूप में धरती लोक में एक अच्छी सच्ची परिवार के साथ खुशी से जीने लगा। कुछ दिन बाद, मालविका ने एक लड़की को जनम दिया। मालविका की परिवार बच्ची की आने की खुशी में बहुत खुश भी पर मालविका की चेहरे पे थोड़ी सी डर थी। काललोक, कालराज ने कालमयी की मायाजाल से आजाद हुआ। कालराज ने धरती की मौसम की स्थितियाँ (बर्तावरण) बदलते हुए देखकर कालराज को उस शक्ति यानी कालरक्षिका की जनम होने की अनुमान हुआ। कालराज ने आकर पृथ्वी पर हमला किया,पर सफल नही हुआ। मालविका ने अपनी परिवार के साथ खुशी से जीने लगा।) 25 साल बाद, Rikshika यानी कालरक्षिका बड़ा हो गया। उस बच्ची का नाम Rikshika है। Rikshika देखने में बहुत ही सुंदर, सुशील लड़की थी। Rikshika को मजबूरी से एक अंजान लड़के के साथ शादी करना पड़ा। फिर भी दोनो बहुत खुश थी। फिर एक दिन कालराज ने उनकी पूरी परिवार को मार दिया। और दोनों प्रेमी को जाल बिछाकर कालराज ने राजवीर और कालमयी की तरफ एक त्रिशूल ( प्राण घातक त्रिशूल) फेंका। त्रिशूल आके पक्षीराज (पक्षीघोड़ा की पीठ पर लगा। पक्षीराज मर गया। राजवीर और मालविका (कालमयी )ने कालराज को आग की समुन्दर में केद किया। कालराज हमेशा हमेशा के लिए आंग की समुन्दर में कैद हो गया। राजवीर ने Rikshika को मार दिया। कालमयी ने मालविका (कालमयी) भी आग में जलकर भस्म हो गया। कालमयी:"" तुम दोनो को वापस आना ही होगा वापस आना होगा तुम दोनो को अपनी कहानी को पूरी करने केलिए आना ही होगा। आज से 400 साल बाद एक महायुग का आरंभ होगा अखंड काल महायुग, उस युग का आरंभ होते ही तुम दोनो का पुनर जनम होगा। तुम दोनो को अपनी बदला पूरी करने केलिए आना होगा।"""" ******* उन दोनो प्रेमी Rikshika और राजवीर की प्रेम कहानी अधूरी रह गया। इसके बाद क्या हुआ। उन्ध दोनों की प्रेम कहानी पूरा हुआ या नहीं इसके बारे में जानने के लिए आगे की कहानी देखते है।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️ Rishav Saikia
Address: tinsukia dist, Assam, India