रमाशंकर मिश्र
रमाशंकर मिश्र हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हैं।
जीवन परिचय
[संपादित करें]पिता - स्व0 श्री रामक्रष्ण मिश्र आयुर्वेदाचार्य ; माता - स्व0 श्रीमती सुन्दर देवी मिश्रा
पत्नी - श्रीमती शैलकुमारी मिश्रा
जन्मतिथि - 07-09-1937 जन्मस्थान - दारागंज, प्रयाग इलाहाबाद
पिता का जन्मस्थान - ग्राम समगरा, मर्का, बांदा, उ0 प्र0
पिता का निवास स्थान - कतिपय वर्ष दारागंज, प्रयाग और तत्पाश्चात् कर्वी चित्रकूट, उ0 प्र0
सेवा स्थल - अंग्रेजी प्रवक्ता और प्रधानाचार्य के रूप में श्री जे0पी0 शर्मा इण्टर कालेज, बबेरू, बांदा, उ0प्र0
शिक्षा
[संपादित करें]- एम0ए0 अंग्रेजी इलाहाबाद विश्वविद्यालय
- एम0 ए0 हिन्दी आगरा विश्वविद्यालय
- साहित्यरत्न, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, इलाहाबाद
- एल0टी0, के0पी0 टेनिंग कालेज इलाहाबाद
प्रकाशित रचनायें
[संपादित करें]महाकाव्य
[संपादित करें]1- स्वामी विवेकानन्द 2- भीष्म पितामह 3-लवकुश 4- साध्वी द्रौपदी 5- महासती अनसूया
6- महानारी मदालसा 7- भगिनी निवेदिता 8- धर्मराज युधिष्ठिर 9-भक्त प्रवर सम्राट ध्रुव
10- विप्रवीर परशुराम 11- भक्त सम्राट प्रहलाद
खण्डकाव्य
[संपादित करें]1- सुलोचना का सतीत्व 2- महादेवी राज्यश्री 3- डॉ॰ ऐनी बेसेण्ट 4- राजर्षि मांधाता 5- इन्द्राणी
कविता-संग्रह
[संपादित करें]1- अन्तर्यात्रा 2- सरस स्वर 3- नयी कवितायें 4- प्रयोगवादी आयाम 5- विविध भाव तरंगें 6- नवीन भावगीत 7- ज्ञानगीत तरंग
विशेष
[संपादित करें]1- 14 रचनाओं पर शोधप्रबंध लिखकर एक शोध छात्र ने सागर विश्वविद्यालय म0 प्र0 से पी-एच0 डी0 की उपाधि प्राप्त किया है।
2- एक छात्र ने दो महाकाव्यों पर शोध अधिनिबंध लिखकर उज्जैन विश्वविद्यालय से एम0 फिल0 प्राप्त किया है।
सम्मान
[संपादित करें]1- विशिष्ट सम्मान पत्र सन् 1985 में 2- विशिष्ठ सम्मान पत्र सन् 1991 3- काव्यश्री सन् 1996 में 4- निराला सम्मान पत्र सन् 2004 में5- साहित्य विभूषण सम्मान सन् 2006 में 6- समर्पण सम्मान सन् 2007 में
कविता के उदाहरण
[संपादित करें]महाकाव्यों से उदाहरण
[संपादित करें](1) सागर मंजूषा दीपशिखा
साधना तपस्या की प्यासी।
पाषाण शिला कहती पुकार,
अब जाग उठो भारतवासी।। (स्वामी विवेकानन्द महाकाव्य सर्ग 8 पृ0 106)
(2) भारत की अध्यात्मिकता,
संस्कृति-मस्तक की बिन्दी।
वह व्यथा-कथा की अथ-इति,
श्रद्धा स्वराष्ट्र की हिन्दी।। (साध्वी द्रौपदी महाकाव्य सर्ग 11 पृ0 282)
(3) मधुऋतु आश्रम में आ उतरी,
अनसूया महासती के संग।
मधुकर कलिका की वार्तायें,
चढता जीवन में प्रणय-रंग।। (महासती अनसूया सर्ग तृतीय पृ0 54)
(4) पैदा हो आयरलैण्ड-मध्य,
भारत को मातृभूमि माना।
आध्यात्म जगत में कार्य किया,
भारतमाता को पहचाना।। (भगिनी निवेदिता सर्ग अश्टम पृ0 109)
खण्डकाव्यों से उदाहरण
[संपादित करें](1) अपनी संस्कृति में नयी विभा,
आये, असुरत्व हटे प्रचण्ड।
मानवता के नव सुमन खिलें,
राक्षसी वृत्ति हो खण्ड-खण्ड।। (सुलोचना का सतीत्व सर्ग चतुर्थ पृ0 62)
(2) चन्द्रमा चांदनी से भरता,
पावन प्रयाग का तीर्थराज।
मानों फैला राज्यश्री-यश,
अरु हर्ष-कीर्ति धवलित समाज।। (महादेवी राज्यश्री सर्ग पंचम पृ0 81)
कविवत संग्रहों से उदाहरण
[संपादित करें](1) जब तक नभ में रवि, शशि, तारक,
भूपर गंग-यमुन में पानी।
गर्जितोर्मि सागर के जल में,
तब तक तेरी अमर कहानी।। (अन्तर्यात्रा की कविता क्रातिवीर चन्द्रशेषर आजाद पृ0 120)
(2) माता निर्मल गायत्री,
वात्सल्य सुरभि भरती है।
घर के उजडे उपवन को,
निर्मल पवित्र करती है।। (सरस स्वर की कविता मां का महत्व पृ0 80)