शैलेश मटियानी
शैलेश मटियानी | |
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जन्म |
14 अक्टूबर 1931[1] बाड़ेछीना |
मौत |
24 अप्रैल 2001[1] दिल्ली |
नागरिकता | भारत,[2] ब्रिटिश राज, भारतीय अधिराज्य |
पेशा | लेखक, पत्रकार, कवि |
शैलेश मटियानी (१४ अक्टूबर १९३१ - २४ अप्रैल २००१) आधुनिक हिन्दी साहित्य-जगत् में नयी कहानी आन्दोलन के दौर के कहानीकार एवं प्रसिद्ध गद्यकार थे। उन्होंने 'बोरीवली से बोरीबन्दर' तथा 'मुठभेड़', जैसे उपन्यास, चील, अर्धांगिनी जैसी कहानियों के साथ ही अनेक निबंध तथा प्रेरणादायक संस्मरण भी लिखे हैं। उनके हिन्दी साहित्य के प्रति प्रेरणादायक समर्पण व उत्कृष्ट रचनाओं के फलस्वरूप आज भी उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य में पुरस्कार का वितरण होता है।[3]
जीवन वृत्त
[संपादित करें]शैलेश मटियानी का जन्म उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना नामक गाँव में १४ अक्टूबर १९३१ में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचन्द्र सिंह मटियानी था। बारह वर्ष की अवस्था में उनके माता-पिता का देहांत हो गया था, तब वे पाँचवीं कक्षा में पढ़ते थे, तदुपरान्त अपने चाचा लोगों के संरक्षण में रहे। किन्हीं कारणों से निरन्तर विद्याध्ययन में व्यवधान पड़ गया और पढ़ाई रुक गई। इस बीच उन्हें बूचड़खाने तथा जुए की नाल उघाने का काम करना पड़ा। पाँच साल बाद 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने फिर से पढ़ना शुरु किया।
विकट परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की तथा रोजगार की तलाश में पैत्रिक गाँव छोड़कर १९५१ में दिल्ली आ गये। यहाँ वे 'अमर कहानी' के संपादक, आचार्य ओमप्रकाश गुप्ता के यहाॅं रहने लगे। तबतक 'अमर कहानी' और 'रंगमहल' से उनकी कहानी प्रकाशित हो चुकी थी। इसके बाद वे इलाहाबाद गये। उन्होंने मुज़फ़्फ़र नगर में भी काम किया। दिल्ली आकर कुछ समय रहने के बाद वे बंबई चले गए। फिर पाँच-छह वर्षों तक उन्हें कई कठिन अनुभवों से गुजरना पड़ा। १९५६ में श्रीकृष्ण पुरी हाउस में काम मिला जहाँ वे अगले साढ़े तीन साल तक रहे और अपना लेखन जारी रखा। बंबई से फिर अल्मोड़ा और दिल्ली होते हुए वे इलाहाबाद आ गये और कई वर्षों तक वहीं रहे। 1992 में छोटे पुत्र की मृत्यु के बाद उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए। विक्षिप्तता की स्थिति में उनकी मृत्यु दिल्ली के शहादरा अस्पताल में हुई।
रचना क्रम
[संपादित करें]१९५० से ही उन्होंने कविताएँ और कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं। शुरु में वे रमेश मटियानी 'शैलेश' नाम से लिखते थे। उनकी आरंभिक कहानियाँ 'रंगमहल' और 'अमर कहानी' पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्होंने 'अमर कहानी' के लिए 'शक्ति ही जीवन है' (१९५१) और 'दोराहा' (१९५१) नामक लघु उपन्यास भी लिखे। उनका पहला कहानी संग्रह 'मेरी तैंतीस कहानियाँ' १९६१ में प्रकाशित हुआ। उनकी कहानियों में 'डब्बू मलंग', 'रहमतुल्ला', 'पोस्टमैन', 'प्यास और पत्थर', 'दो दुखों का एक सुख' (1966), 'चील', 'अर्द्धांगिनी', ' जुलूस', 'महाभोज', 'भविष्य' और 'मिट्टी' आदि विशेष उल्लेखनीय है। कहानी के साथ ही उन्होंने कई प्रसिद्ध उपन्यास भी लिखे। उनके कई निबंध संग्रह एवं संस्मरण भी प्रकाशित हुए। उन्होंने 'विकल्प' और 'जनपक्ष' नामक दो पत्रिकाएँ निकाली। उनके पत्र 'लेखक और संवेदना' (१९८३) में संकलित हैं।
कहानी संग्रह
[संपादित करें]- 'मेरी तैंतीस कहानियाँ' (१९६१)
- 'दो दुखों का एक सुख' (१९६६)
- 'दूसरों के लिए' (१९६७)
- 'सुहागिनी तथा अन्य कहानियाँ' (१९६८)
- 'सफर पर जाने के पहले' (१९६९)
- 'हारा हुआ' (१९७०)
- 'अतीत तथा अन्य कहानियाँ' (१९७२)
- 'मेरी प्रिय कहानियाँ' (१९७२)
- 'पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियाँ' (१९७३)
- 'हत्यारे' (१९७३)
- 'बर्फ की चट्टानें'(१९७४)
- 'जंगल में मंगल' (१९७५)
- 'महाभोज' (१९७५)
- 'चील' (१९७६)
- 'प्यास और पत्थर' (१९८२)
- 'नाच, जमूरे नाच' (१९८९)
- 'माता तथा अन्य कहानियाँ' (१९९३)
- 'भविष्य तथा अन्य कहानियाँ'
- 'अहिंसा तथा अन्य कहानियाँ'
- 'भेंड़े और गड़ेरिए'
- शैलेश मटियानी की इक्यावन कहानियाँ (१९९६; विभोर प्रकाशन, इलाहाबाद से, पुनः विभा प्रकाशन, चाहचंद रोड, इलाहाबाद से-२०१३)
उपन्यास
[संपादित करें]- 'बोरीवली से बोरीबन्दर' (१९५९)
- 'कबूतरखाना' (१९६०)
- 'हौलदार' (१९६१)
- 'चिट्ठीरसैन' (१९६१)
- 'तिरिया भली न काठ की' (१९६१)
- 'किस्सा नर्मदाबेन गंगू बाई' (१९६१)
- 'चौथी मुट्ठी' (१९६१)
- 'बारूद और बचुली' (१९६२)
- 'मुख सरोवर के हंस' (१९६२)
- 'एक मूठ सरसों' (१९६२)
- 'बेला हुई अबेर' (१९६२)
- 'कोई अजनबी नहीं' (१९६६)
- 'दो बूँद जल' (१९६६)
- 'भागे हुए लोग' (१९६६)
- 'पुनर्जन्म के बाद' (१९७०)
- 'जलतरंग' (१९७३)
- 'बर्फ गिर चुकने के बाद' (१९७५)
- 'उगते सूरज की किरण' (१९७६)
- 'छोटे-छोटे पक्षी' (१९७७)
- 'रामकली' (१९७८)
- 'सर्पगन्धा' (१९७९)
- 'आकाश कितना अनंत है' (१९७९)
- 'उत्तरकाण्ड, डेरेवाले (१९८०)
- 'सवित्तरी' (१९८०)
- 'गोपुली गफूरन' (१९८१)
- 'बावन नदियों का संगम' (१९८१)
- 'अर्द्ध कुम्भ की यात्रा' (१९८३)
- 'मुठभेड़' (१९८३)
- 'नागवल्लरी' (१९८५)
- 'माया सरोवर' (१९८७)
- 'चंद औरतों का शहर' (१९९२)
निबंध और संस्मरण
[संपादित करें]- 'मुख्य धारा का सवाल',
- 'कागज की नाव' (१९९१),
- 'राष्ट्रभाषा का सवाल',
- 'यदा कदा',
- 'लेखक की हैसियत से',
- 'किसके राम कैसे राम' (१९९९),
- 'जनता और साहित्य' (१९७5),
- 'यथा प्रसंग',
- 'कभी-कभार' (१९९३),
- 'राष्ट्रीयता की चुनौतियां' (१९९७)
- 'किसे पता है राष्ट्रीय शर्म का मतलब' (१९९५)
सम्मान
[संपादित करें]- प्रथम उपन्यास 'बोरीवली से बोरीबंदर तक' उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत;
- 'महाभोज' कहानी पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘प्रेमचंद पुरस्कार';
- सन् १९७७ में उत्तर प्रदेश शासन की ओर से पुरस्कृत;
- १९८३ में ‘फणीश्वरनाथ रेणु' पुरस्कार' (बिहार);
- उत्तर प्रदेश सरकार का 'संस्थागत सम्मान';
- देवरिया केडिया संस्थान द्वारा ‘साधना सम्मान';
- १९९४ में कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा ‘डी.लिट.' की मानद उपाधि;
- १९९९ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘लोहिया सम्मान';
- २००० में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा 'राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार'।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ https://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb13332289b. अभिगमन तिथि 10 अक्टूबर 2015. गायब अथवा खाली
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(मदद) - ↑ https://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb13332289b. अभिगमन तिथि 26 मार्च 2017. गायब अथवा खाली
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(मदद) - ↑ "उत्तराखंड के 27 शिक्षकों को मिलेगा शैलेश मटियानी पुरस्कार". अमर उजाला, हिन्दी दैनिक, उत्तराखण्ड संस्करण. मूल से 23 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 दिसम्बर 2017.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- बावन नदियों का संगम - शैलेश मटियानी (google book)
- शैलेश मटियानी, अर्धांगिनी और दाम्पत्य-प्रेम संजय राय
- शैलेश मटियानी (संगीता कुमारी)
- शैलेश मटियानी (गद्यकोश)
- साहित्यकार शैलेश मटियानी के बेटे फेरी लगाकर बेच रहे किताबें (प्रवासी दुनिया)