हरिहर वैष्णव

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हरिहर वैष्णव (जन्म 19 जनवरी 1955 मृत्यु 23 सितंबर 2021) एक हिन्दी साहित्यकार एवं बस्तर, छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर अनुसन्धान कर्ता हैं। ये मूलतः कथाकार एवं कवि हैं साथ ही इन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखनी की है। इनकी अभी तक २४ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें से इनकी मुख्य कृतियाँ हैं: लछमी जगार और बस्तर का लोक साहित्य। इनके साहित्यों के कारण इन्हें 'उमेश शर्मा साहित्य सम्मान 2009' सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

जीवन परिचय[संपादित करें]

हरिहर वैष्णव का जन्म बस्तर के दन्तेवाड़ा में १९ जनवरी १९५५ को कोंडागांव में श्यामदास वैष्णव और जयमणि वैष्णव के घर हुआ।[1] ये हिन्दी साहित्य में स्नात्कोत्तर हैं। ये वर्तमान में सरगीपारा, कोंडागाँव (बस्तर) में रहते हैं।

इनके ज़्यादातर कविताएं और साहित्य बस्तर के बारे में लिखे हैं।[2] बस्तर के लोक साहित्य के संकलन में वे किशोरावस्था से ही संलग्न रहे। बस्तर से इनका बहुत जुड़ाव रहा है। बस्तर की परम्पराओं और संस्कृति को अपने काव्य और गद्य में उतारने पर इनके लेख प्रामाणिक माने जाते हैं। इन्होंने बहुत से बस्तर की जनजातियों में सदियों से गाये-बजाये जाने वाले गीतों को एकत्रित करके उनका अनुवाद करने में किया है।[3]

हरिहर वैष्णव वन विभाग में लेखाकार के पद पर कार्यरत थे, लेकिन शोध कार्य के लिए पर्याप्त समय न मिल पाने के कारण उन्होंने सेवानिवृत्ति से चार साल पहले ही स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली।

कृतियाँ[संपादित करें]

इन्होंने कहानी एवं बालसाहित्य रचा है। वैष्णव का सम्पूर्ण लेखन-कर्म बस्तर पर केन्द्रित है। अब तक कुल २४ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं[3] और कुछ प्रकाशनाधीन हैं। हिन्दी के साथ-साथ बस्तर की भाषाओं - हल्बी, भतरी, बस्तरी और छत्तीसगढ़ी में भी समान लेखन-प्रकाशन।

इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं –

  • मोहभंग (कहानी संग्रह)
  • लछमी जगार (बस्तर का लोक महाकाव्य)
  • बस्तर का लोक साहित्य (लोक साहित्य)
  • चलो चलें बस्तर (बाल साहित्य)
  • बस्तर के तीज त्यौहार (बाल साहित्य)
  • राजा और बेल कन्या (लोक साहित्य)
  • बस्तर की गीति कथाएँ (लोक साहित्य)
  • धनकुल (बस्तर का लोक महाकाव्य)
  • बस्तर के धनकुल गीत (शोध विनिबन्ध)

इसके अलावा इन्होंने बस्तर की मौखिक कथाए (लोक साहित्य), घूमर (हल्बी साहित्यिक पत्रिका), प्रस्तुति, (लघुपत्रिका), एवं ककसाड (लघु पत्रिका) का सम्पदन भी किया है।

पुरस्कार एवं सम्मान[संपादित करें]

हरिहर वैष्णव को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उल्लेखनीय सम्मानों में छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद् का 'उमेश शर्मा साहित्य सम्मान 2009', दुष्यन्त कुमार स्मारक संग्रहालय का 'आंचलिक साहित्यकार सम्मान 2009', छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण 'पं. सुन्दरलाल शर्मा साहित्य सम्मान 2015, 'वेरियर एल्विन प्रतिष्ठा अलंकरण 2015', 'साहित्य अकादेमी का भाषा सम्मान 2015'।[3]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "एक परिचय "हरिहर वैष्णव" से [बस्तर शिल्पी अंक – 3] – राजीव रंजन प्रसाद". sahityashilpi.com. मूल से 24 जून 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जून 2021.
  2. "लोक जीवन की कृति ही हम सबकी साझा संस्कृति है: हरिहर वैष्णव". prabhasakshi.com. अभिगमन तिथि 23 जून 2021.
  3. "छत्तीसगढ़ के हरिहर वैष्णव ने बस्तर के लोक साहित्य को संजोने में लगा दिया जीवन". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 23 जून 2021.