सदस्य:Immanuel Sam Chiramel/प्रयोगपृष्ठ

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मेरा नाम इम्मानुएल सैम चिरमल है। मैं क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु में बी ए (पी इस इंग्लिश) में अपने पहले साल के दूसरे सेमेस्टर में हूँ। मैं अपना पृष्ठभूमि, रुचियों, उपलब्धियों और लक्ष्यों से आपका परिचय कराना चहता हू।

भूमिका[संपादित करें]

मैं भारत में केरेला के, पथनमथिट्टा जिले के एक छोटे से गाँव, वेचूचिरा में पैदा हुआ था। केरेला दक्षिण भारत में हे। मैनें अपने जीवन के शुरुवाती ९ वर्ष पुणे में बिताए हैं। पुणे महाराष्ट्र राज्य में दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह शहर अग्रणी शहरों में लंबे समय से अपनी साहित्यिक, कलात्मक और क्रांतिकारी विरासत के लिए जाना जाता है।

परिवार[संपादित करें]

मेरे पिता का नाम सैम चिरामेल वर्गीस है। मेरे पिता एक पादरी हैं। मेरी माँ, सिजि सैम, एक अध्यापिका है। वह एक कॉलेज में ग्रीक और हिब्रू सिखाती है। मैं अपने माता-पिता का सबसे बड़ा पुत्र हूं। मेरा एक ११ साल का छोटा भाई है। मेरे मात-पिता की सबसे महत्तपूर्ण सीख 'कभी भी हार मत मानो', 'दूसरों को बदलने की कोशिश मत करो, उन्के विचारों को बदलो और फिर उन्हें बदलते देखोंगे' और 'जानबूझकर कभी भी किसी को चोट न पहुंचाए'।

शिक्षा[संपादित करें]

मैनें अपना प्रारम्भिक शिक्षा पुणे के सेंट मैरी स्कूल से प्राप्त की। अब मैं क्राइस्ट यूनिवर्सिटी मैं मनोविज्ञान, नागरिक सास्त्र और अंग्रेज़ी भाषा में बी ए डिग्री की प्राप्ती के लिए पढ़ रहा हु। यह विश्वविधालय भारत में अग्रणी संस्थानों में से एक है और आमतौर पर सबसे शैक्षिक सर्वेक्षण में सर्वश्रेष्ठ में से एक के रुप में सूचीबध्द किया गया है।

रुचियाँ[संपादित करें]

मैं जीवन के हर पहलू के बारे मे सकारात्मक हूँ। मुझे पढना, लिखना और फ़ुटबॉल खेलना पसंद है। मेरी रुचि लोगों से बात करना और उन्हें समझने में है। मैं सैध्दांतिक अवधारणों को व्यावहारिक प्रयोग में परिवर्तित करने का भरपूरा प्रयास करता हूँ।

लक्ष्य[संपादित करें]

मैनें नैदानिक ​​मनोविज्ञान में मनोविज्ञान का डॉक्टर बनने का निर्णय लिया है। मेरा यह मनोकामना है कि मैं मानसिक बीमारियों का इलाज करु और उन लोगो को अपने सामान्य जीवन को वापस करना चाहता हूँ। यह लक्ष्य केवल मेरे जीवन से जुड़ा ही नही बल्कि मेरे मात-पिता का भी सपना है।

उपलब्धियाँ[संपादित करें]

मैने जीवन मे कई अलग-अलग लक्ष्यों को हासिल किया है। मेरी उपलब्धियों से मुझे बहुत खुशी मिलती है। सबसे बड़ी व्यक्तिगत संतुष्टि प्रदान करने वाली शीर्ष पांच उपलब्धियाँ: १। पांचवीं कक्षा में अध्ययन में और दौड़ प्रतियोगिता में पहले आना । २। वृद्धाश्रम में कुछ दिन काम करने की खुशी। ३। विभिन्न स्तरों पर अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व करना। ४। क्राइस्ट यूनिवर्सिटी क छात्र होना। ५। ड्राइवर का लाइसेंस मिलना। मेरी उपलब्धियाँ मुझे जीवन मे आगे बढने मे मदद करती हैं।

ललिताम्बिका अन्तर्जनम[संपादित करें]

Lalithambika Antharjanam
ललिताम्बिका अन्तर्जनम
जन्म१९०९
पुनलुर, कोल्लम
मौत१९८७
ज्ञालियाकूज़ही, कोट्टायम
पेशालेखक, समाज सेवी
भाषामलयालम
राष्ट्रीयताभारत
जीवनसाथीनारायण नंबूदिरि
बच्चेभास्कर कुमार, लीला,ऍन मोहनन, शांता, मनी, राजेंद्र

ललिताम्बिका अन्तर्जनम (मलयालम : ലളിതാംബിക അന്തര്‍ജനം ; १९०९–१९८७) भारत की एक साहित्यकार एवं समाज-सुधारक थीं। उन्होने मलयालम में साहित्य रचना की है। उनके प्रकाशित काम में लघु कथाएँ, छः संग्रह, कविताएं, बच्चों के लिए दो पुस्तकें, और एक उपन्यास, अग्निसक्शि’’ (१९७६), जिसमें, १९७७ में केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार और केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता गया था। उनकी आत्मकथा आत्माकधक्कुरु आमुखम (आत्मकथा का परिचय) एक बहुत महत्वपूर्ण काम है। वह महात्मा गांधी और वी.टी. भट्टाथिरिपाद की अगुवाई वाले नम्बूदिरी जाति के बीच सामाजिक सुधार आंदोलनों से काफी प्रभावित हुए। उनका लेखन, समाज में महिलाओं की भूमिका की संवेदनशीलता को दर्शाता है।

जीवनी[संपादित करें]

ललिताम्बिका का जन्म १९०९ में एक रूढ़िवादी परिवार में, कोल्लम जिले, केरल के पुनलुर के पास कोट्टावट्टोम में हुआ था। शिक्षा की सीमित सुविधा के बावजूद वे पढ़ना-लिखना सीखने में सफल रही, जो कि उस समय कि एक असामान्य उपलब्धि थी। 'अन्तर्जनम' का अर्थ है- 'वह जो अपनी जिंदगी घर के अंदर बिताती है'। उनका पहला नाम 'ललिता' (सरल) और 'अंबिका' (वास्तव में 'छोटी मां', एक देवी ) का एक परिसर है। [1]

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

हालांकि वह केरल के सबसे शक्तिशाली ज़मींदार ब्राह्मण जाति का हिस्सा थीं, परंतु ललिताम्बिका के जीवन-कार्य में नम्बूदरी समाज कि महिलाओं कि ओर पाखंड, हिंसा और अन्याय मामूली था| उन्हें विद्यालय में पढ़ाई करने की अनुमति नहीं थी, और वह केवल पुरुष रिश्तेदारों के माध्यम से बाहर की दुनिया के बारे में जानकारी प्राप्त करती थी। उन्हें भारत कि आज़ादी आंदोलन कि जानकारी मिली, और वे इसमें भाग लेना चाहती थीं। १९२६ में, उन्होंने निर्धारित तरीके से किसान नारायणन नंबूदिरी से शादी की। एक पत्नी के रूप में, उसने बाहर की दुनिया के साथ सभी संपर्क खो दिया, और उनकी ज़िन्दगी एक धुएं भरी रसोई, धिरे हुए आँगन और अन्य महिलाओं की अनेक कहानियों तक सीमित हो गयी। लेकिन उन्होंने अपने जीवन की अप्राकृतिक परिस्थितियों के बावजूद भी उनकी हिम्मत और मानव होने का दृढ़ संकल्प नहीं छूटा। इस दुनिया में उनकी एक ही ख़ुशी थी- वह गुप्त में लिखना थी। [2]

साहित्यिक कार्य[संपादित करें]

एक कामकाजी दिन के अंत में, जो भोर से शुरू होकर रात्रि को अपने बच्चे सुलाने पर ख़तम होता,वे दरवाजा बंद करके, एक छोटे से दीपक की रोशनी में लिखना शुरू करती। धुआं और अपर्याप्त प्रकाश से लगातार संपर्क के कारण उनकी आँखों की नज़र नष्ट होने लगी। जब दर्द बहुत बढ़ता, तब वह अपनी आँखें बंद करके लिखती थी। उन्होंने अपने मशहूर मलयालम उपन्यास अग्निसाक्षी (आग जो था साक्षी ) में अपनी जाति की अन्य महिलाओं की हताश दुर्दशा का पर्दाफाश किया। बाद में १९९७ में एक ही शीर्षक के साथ, उपन्यास, एक फिल्म में बनाया गया था। उसकी कहानी, बदला खुद’’ मैं (अंग्रेजी अनुवाद The Inner Courtyard [1] में प्रकाशित हैं ), उन्होंने ऊंची जाति के नंबूदिरी महिलाओं के सामने नैतिक और यौन विकल्प पर प्रकाश डाला जो "गली हुई महिला" तत्वी की कहानी के माध्यम से दर्शाया गया।

  1. (मलयालम में) http://www.keralasahityaakademi.org/sp/Writers/PROFILES/Lalithambika/Html/Lalithambikagraphy.htm. गायब अथवा खाली |title= (मदद)
  2. (अंग्रेज़ी में) http://www.veethi.com/india-people/lalithambika_antharjanam-profile-2177-25.htm. गायब अथवा खाली |title= (मदद)