सदस्य:Crmaaz7/प्रयोगपृष्ठ/1

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                                                         अशरे की जमात
जमात की बैठक दिखाता हुआ छवि

परिचय[संपादित करें]

मुसलमानों में प्रयत्न की जाने वालि यह संस्कृति बहुत अद्वितीय है । यह एसा एक संस्क्र्ति है जो एक मुसलमान अपने इच्छा होने पर ही प्रयत्न करता है । जमात मुसलमानों द्वरा जमा की गयी एक सभा है । दुनिया की पाठ सीख्ने के लिये हम विध्यालय जाते हैं , उसी प्रकार अगर किसी को इसलाम सीखना है , तो वो जमात जा सकता है। अशरे की जमात यानि १० दिन के लिये इसलाम पहलाने के लिये निकलती एक सभा या परिषद है । यह परिषद उन इलाखों को मध्य नज़र रखते हुए निकलती है जहां मुसलमानों इसलाम को भूल ने की दिषा में जा रहे हैं । लेकिन हर बार यह अवश्य नहीं है की जो जमात निकल रहि है वो उपर बताये गये जगों में से ही हो ।

पहुँच[संपादित करें]

इन्डिया से अधिक्तर जमात ऑस्ट्रेलिया , अफ्रीका , अमरीका , न्यूजीलैंड ,श्री लंका आदि जैसी जगहों को निकलती है । अफ्रीका क्रिकेट टीम के जाने-माने हस्ती 'हाषिम आमला' और इन्डियन क्रिकेट टीम के 'युसुफ पठान' विश्व के बहुत प्रसिध जमातियों केहलाते हैं ।

अधिकार[संपादित करें]

जैसे हर चीज़ को नेत्र्त्व करने के लिये एक इनसान को नियुक्त किया जाता है वैसे ही जमात की सभा को नेत्र्त्व करने के लिये सारे जमातियों आपसी सेहमती से एक सक्षम व्यक्ति को छुनते हैं , जिसे अमीर साहब के नाम से बुलाया जाता है । अगर जमात में ३० से अधिक लोग हैं तो दो अमीरों को नियुक्त किया जाता है । हर एक अमीर की फर्ज़ है कि वह सुनिश्चित करें कि जो कोइ जमात की सभा में प्रस्तुत हैं , वह उन्हें दिये गये कार्यों को पूरी श्रध्धा के साथ करें । हर एक अमीर साहेब के नीचे एक उपाअध्यक्ष रेहते हैं , जो यह सुनिश्चित करते हैं कि यदी अमीर साहेब अनुपस्थित हैं तो जमात सफलतापूर्वक ही रहें और जो काम अमीर साहेब ने पूरा कर्ने की हुक्म दी हो वह काम समाप्त करें । जमात की अव्धी सुबह तहजूद यानी प्रात्ःकाल ४ से लेकर इशा यानी रात के ९:३० या १०:०० बजे तक की है । अमीर की फर्ज़ और लक्ष्य यही रेहना है की जो जमात की सभा प्रस्तुत हैं वे पूरी तरह से नैतिक मूल्य प्राप्त करें और १० दिन खत्म होने पर जमात की सभा के लोगों में अच्छा आचार विचार रहें जिस्से वे अपनी वातावरण में प्रस्तुत लोगों को सुधार सकें ।

कर्तव्य[संपादित करें]

जमात की नियमों के अनुसार हर एक व्यक्ति को दिन के पांच वक्त की नमाज़ पढना ज़रूरी है , लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि सिर्फ जमातियों पांच वक्त की नमाज़ पढें , हर एक इसलाम को स्वीकार किया हुआ मनुष्य की फर्ज़ है की वो पांच वक्त की नमाज़ पढें । जमात में जो भी सदस्य हैं उन्हें हर वक्त की नमाज़ के बाद बारी-बारी में इसलाम की धार्मिक किताबें पढकर दूसरों को सिखाना या सुनाना पढता है ।

समारोह[संपादित करें]

मुसलमानों में अगर कोइ जवानी में ही बिगड जाता है तो माता-पिता द्वारा यह सूचना पेहली दी जाति है कि उस बिगडे हुए लडके को जमात को भेजें । अगर कोई जमात में पेह्ली बार जा रहा है , तो उस व्यक्ति को अकेलापन पेहले के दो दिन में तो आवश्य मेहसूस होगी , लेकिन उसके बाद हर कोइ व्यक्ति अल्लाह की राह पर अपनी जीवन गुज़ार ने के लिये तयार हो जाता है । हर एक व्यक्ति को भाइचारा की पाठ तो आवश्य मिलता है क्योंकि जमात की मुख्य पाठों में से भाईचारा एक है । यह बात को इनसाफी दिलाती है जमात की खाने की बैठक का तरीका जहां ५ जमात के साथियों एक खाने की थाली में खाते हैं , जहां एक गोल बैठक खाने के लिये बैठती है और जमात की पकाने की विभाग के सदस्यों उन्हें खाना परोसते हैं । जमात की अवधी में हर हफते एक उप टीम , मस्जिद के अडोस-पडोस की जन्न को मस्जिद को आने के लिये कहते हैं, जहां उन्हें इसलामी पाठ सिखाते हैं ।जमात में किसी के बीच भेद-भाव नहीं होता और अमीर-गरीब सारे लोगों को जमात में प्रवेश मिलता है । जमात की वित्त स्त्रोत अद्वितीय है क्योंकि हर कोई इस पुण्य काम को लाभ कर्ना चाहता है ।   

नैतिक[संपादित करें]

अगर मिठ्ठी पर मेहनत करते हैं तो हमें कई प्रकार के अनाज और फल मिलते हैं , यदि कुछ भी नहीं करे तो जमीन से कोइ फायदा नहीं , उसी प्रकार मनुश्य पर जमात की असर या मेहनत पढने पर जीवन सफल हो जाता है और एसे ही रह गये तो मनुश्य में बुरी मान आ सकती है ।