सदस्य:Anushkamunshi/प्रयोगपृष्ठ

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भूमिका[संपादित करें]

मेरा नाम अनुश्का मुन्शी है। मै बंगलौर के क्राइस्ट विश्वविद्यालय मे पढ़ाई करने आई हूँ। मै लखनऊ की निवासी हूँ और मेरी आयु १८ साल है। मै एक बहुत ही छोटे शहर से आई ह़ू़। हाल ही मे १२ वी की परीक्षा मे अच्च्छे अंक आने के कारण मुझे इस विक्ष्वविद्यालय मे पढ़ने का मौका प्राप्त हुआ। यहाँ हर चीज़ बहुत नयी एवं अलग है। मेरे परिवार मे मेरे माता, पिता, भाई तथा दादी हैं। मेरी माँ अंग्रेज़ी की अध्यापिका थी, पिता डॉक्टर हैं और भाई यहाँ से ही म बी ए कर रहा है। बैंगलोर आने के बाद जीवन बहुत तेज़ी से बदल रहा है। यहाँ आये हुए मुझे ३ महिने हो चुके है और कालेज भी अपनी रफ्तार से चल रहा है। घर से इतनी दूर आकर सबको अपना सपना पूरा करता देख मुझे बहुत अच्छा लगता है।

शिक्षा एवं रुचियाँ[संपादित करें]

मेरी पूरी पढ़ाई लखनऊ के सैन्ट ऐग्नेस लॉरेटो डे स्कूल मे हुई है। १२ वी तक मैने वही पढ़ाई की और फिर यहाँ बैंगलोर आयि। मैने शास्त्रीय संगीत में विशारद् किया है और संगीत ही मेरी रुचि है। वैसे तो किताबें पढ़्ना , टी वी देखना भी अच्छा लगता है, बहुत बार माँ से खाना बनाना सीखने की कोशिश करी , मुझे घूमने का बहुत शोक है । माता - पिता , भाई और मै भारत एव्ं देश के बाहर काफी जगह देखने गये है साथ। सिलाई- बुनाई का काम भी थोड़ा बहुत सीखा है। मुझे लगता है जीवन मे मनुष्य को हर चीज़ सीखनी चाहिए और उसे अपने जीवन मे उसे पालन करने की कोशिश करनी चाहिए। बचपन मे मुझे नाच सीखने का बहुत शोक था और हर छुट्टीयों मे मैन यही सीखती थी। मुझे मूवीज़ देखना बेह्द पसंद है , करीना कपूर को बहुत पसंद करती हूँ मैं।

लक्ष्य[संपादित करें]

मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य् रहा है कि मै अपने माता- पिता का सपना पूरा कर सकून और अपनी पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी नौकरी कर सकून। मुझे लगता है मनुष्य को अपने जीवन का लक्ष्य् कभी नही भूलना चाहिए । कुछ बनने से पहले मैन एक अच्छी मनुष्य बनना चाहती हूँ। क्योकि जीवन मे धन से ज़्यादा लोगो की सहायता करना ज़रुरी है।

उपलब्धियाँ[संपादित करें]

मैने शास्त्रीय संगीत में विशारद किया है।

लखनऊ की सांस्क्रितिक विरासत एव्ं लखनऊ माहाउत्सव[संपादित करें]

Lucknow mahotsav

लखनऊ शहर[संपादित करें]

लखनऊ एक ऐसा शहर है जो पूरे भारत मे अपनी सांस्क्रितिक इतिहास तथा विरासत के कारण मशूर है। लखनऊ पुराने रसमो और नये दौर के रिवज़ो का मधुर मिशरण है। लखनऊ " नवाबों के शहर" के नाम से भी हर जगह जाना जाता है । यह शहर अस्ंख्य भोजन , कलाऍं , संगीत तथा एक बहुत ही अदब पूण समाज का प्र्तीक है। इस शहर के समाज पर मुगल शहनशाओं और मुगलीया स्ंसक्रितियों का बहुत गहरा असर पड़ा है क्योंकि मुगलों ने कई सालों तक राज कीया है। इस शहर के सबसे नामी नवाब अस्फुदोला थे। यह शहर उन शहरों मे से है जो अपने भोजन , स्ंगीत , नृत्य तथा अपने अदब तथा तह्ज़ीब के लिये बेह्द मशूर है। लखनऊ मे हिन्दी तथा उर्दू का प्र्योग किया जाता है। यहां पर चिकनकारी काम किये हुए कुर्ते बेह्द मशूर है और बिरियानी तथा कबाब यहां के सबसे मशूर भोजनों में से है। यहां हर त्योहार को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।

इतिहास[संपादित करें]

https://www.google.co.in/search?q=lucknow+mahotsav&source=lnms&tbm=isch&sa=X&ved=0ahUKEwibsc_48KXZAhUL148KHa0cCF0Q_AUIDCgD&biw=1536&bih=723#imgrc=SH_w-lQB7BEBlM:

यहां का इमामबाड़ा लखनऊ का सबसे मशूर ईमार्तों में से एक है जो अपने अदभुत बनावट की वजह से मशूर है। आज भी इस शहर मे इसकी गहरी तहज़ीब जीवित है जो आने वाले पीड़ीयओं में भी वहां की तहज़ीब को जीवित रखेगी।लखनऊ के लोगो पुरानी तहज़ीब और नये ख्यालों का एक बेह्द खूबसूरत मिशरण है। एसा कहा जाता है और माना भी जाता है कि लखनऊ के लोग पूरे भारत के सबसे तहज़ीबदार और मीठे स्व्भाव  के होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वहां के लोग महमानों को भगवान का स्थान दीया है। इस शहर कि सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस शहर में हर व्यक्ति हर जाति , धर्म और स्ंसक्र्ति को अपना मानकर चलते हैं। यहां के लोग अपने धर्म  अपने स्ंसकारों से बेह्द करीब से ब्ंधे हुए है , पूरे भारत  में इस बात की चर्चा है कि इस शहर की रीती रिवाजे और स्ंस्कार किसी भी अन्य शहर के मुकाबले काफी मजबूत है।

भोजन[संपादित करें]

https://www.google.co.in/search?q=lucknow+mahotsav&source=lnms&tbm=isch&sa=X&ved=0ahUKEwibsc_48KXZAhUL148KHa0cCF0Q_AUIDCgD&biw=1536&bih=723#imgrc=CI63P6VR4Sf6xM: लखनऊ के भोजन मे या उस खाने की एक अलग ही स्थान और अनोखापन है । इस शहर का जो पार्ंपरागत भोजन है वो मुगलों से बहुत ज्यादा प्रभावित था क्योंकि उन्होनें इतने सालों तक इस शहर को अपना बनाकर रखा इसीलिए उनके खाने में एक नवाबीपन है। पुराने जमाने में जो खानसामें होते थे उनको भी इस तरह की सीख दी जाती थी कि वह हर खाने को एक नवाबी पन दे और हम आज भी इस शहर मे एक नवाबीपन महसूस कर सकते हैं। इसी तरह बेहद प्रेम और सादगी से हर साल लखनऊ मे लखनऊ माहोत्सव् को बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। हर साल यह मेला रमाबाई स्थल पर मनाया जाता है और बड़े ही भारी तादार मे लोग वहां जमा होते हैं। हर साल कई बड़े - बड़े कलाकार इस उत्सव में आकर इसका सम्मान बड़ाते हैं, कलाकार जेसे कि श्रेया घोशाल, अरिजित सिंघ , सोनु निगम्, आशा भोसले, पंकज उदास आदि आकर अपने कलाओं का प्रद्शन करते हैं।

लक्ष्य[संपादित करें]

 सन १९७५ -७६ में यह माहोत्सव् मनाने का फेसला लिया गया ताकि दूर -दूर तक लोग लखनऊ की कला , संस्क्रितियों और तहजीब को जान पाये और इस शहर की पर्यटन व्यवस्था को औरर मज़बूत बनाने के लिए यह सरकार की ओर से एक बहुत कामयाब कदम था। तब से लेकर आज तक हर साल यह उत्सव लखनऊ का सबसे बड़ा उत्सव होता है। यह एक १० दिन ल्ंबा उत्सव होता है और इसमें बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक हर इंसान के मनोर्ंजन के लिए कुछ ना कुछ होता है। लखनऊ मोहोत्सव का सबसे बड़ा उददेश्य यह है कि वहां के कारिगरों के काम का सम्मान करना और उनहे आगे काम करने के लिए उत्साहित करना क्योंकि आज के जमाने में हाथ से चीजे बनाने वाले कारिगरों कि अहमियत कहीं गुम सी हो गयी हे। पूरे भारत से बड़े-बड़े कारीगर यहां आकर अपने कलाओं का प्र्दर्शन करते हैं जो कि आम जनता के लिए एक बेह्द खूबसूरत अनुभव होता है।

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मनोरंजन[संपादित करें]

र्ंगीन जुलूस , सांस्क्रितिक नाट्क , कत्थक एव्ं विभिन्न तरह के लखनवी संगीत का भी बेहद खूबसुरत रूप से प्रदर्शन किया जाता है जैसे कि गजल , सार्ंगी , ठुमरी आदि गाया बजाया जाता है। लखनऊ की आधूनिक सांस्क्रितिक विरासत को बड़े ही खूबसूरती से उभारा जाता है। यहां पर बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान और झूले होते हैं जिसकी सैर करना हर बच्चे का मूल उददेश्य होता है उन दिनो। मन को लुभाने वाले मनोर्ंजक खेल जैसे कि एक्का दोड , पत्ंग बाजी , मुर्गि की लड़ाई और विभिन्न प्रकार के झूलों की व्यवसथा भी होती हैं । हर साल यह मेला नवंबर, दिस्ंबर या जनवरी के महीने में होता है। हर साल इस मेले का एक विश्य जरुर होता है, कई बार इमामबारे को इसका विश्य बनाया गया है और वहां बड़े - बड़े मूर्तियां बनाकर उनको लगाया जाता है और चिकन का कुर्ता जो वहां पर सबसे ज़्यादा मशूर है उनका प्रदर्शन बेहद खूबसूरती औरर नज़ाकत के साथ कीया जाता है ताकी उन कारीगरों की महनत हर इंसान को दिखे और वह उनकी अहमीयत को समझें। इस महोत्सव की सबसे बडा उददेश्य है हाथ से काम करने वाले कारीगरों की महनत का एक विचित्र तस्वीर लोगों को दिखाना और उनकी आवाज़ आम जन्ता तक पोहोचाना है। करीब- करीब २०० स्टाल लगते हैं और उन सब में विभिन्न तरह के पकवान, सजने सवरने का सामान, कप - प्लेट , मिटटी का सामान और विभिन्न तरह के अलग- अलग चीज़ो के स्टाल लगे होते है। इतने सालों मी लखनऊ मोहोत्सव ने अपनी ज़िम्मेदारीयों को पूर्ण रुप से निभाया है और किसी भी चीज़ की कमी कभी भी नही हुई और ना ही कोई दुर्घट्ना हुई। कारीगरों और पर्यट्न व्यवस्था के लिए यह सबसे बड़ी मदद है।

  1. "लक्ष्य". गूगल् (अंग्रेजी में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)