सदस्य:Aishwarya Joji Mathew/WEP 2018-19

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धर्मेंद्र सिंह यादव
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म नाम धर्मेंद्र सिंह यादव
पूरा नाम धर्मेंद्र सिंह यादव
उपनाम गोगी
राष्ट्रीयता भारतीय
जन्म २९ दिसंबर, १९७२
निवास नई दिल्ली , भारत
कद 5'4" (162)
खेल
देश भारत
खेल मुक्केबाजी
कोच एस आर सिंह
वह एक प्रसिद्व भारतीय मुककेभाज(बोक्सेर)है
यादव जी को बचपन से ही  मुककेभाजी का शौक था

जीवन परिचय[संपादित करें]

यादव जी ने अपने जीवन मे पदक को हासिल किया

धर्मेंद्र सिंह यादव जी का जन्म २९ दिसंबर, १९७२ को हुआ था | वह एक प्रसिद्व भारतीय मुककेभाज(बोक्सेर)है | उन्हें मुककेभाजी के लिए सन्न १९९१ ईस्वी मे अर्जुन पुरुस्कार मिला था | यादव जी ने अपने जीवन मे कुल तीन रजत और सात कांस्य पदक को हासिल किया | सन्न १९८९ से १९९४ तक यादव जी ने अंतराष्ट्रीय कार्यक्रमों मे,भारत को १९ बार प्रतिनिधित्व किया | उन्होंने सात कांस्य और तीन रजत पदक जीते |बचपन से ही यादव जी को मुक्खेभाजी का शोक था |अपने परिवार के सबसे छोटे बेटे होने के कारण उनकी इस कुवाईश को पूरा किया गया और नयी दिल्ली के सबसे बड़े आईजी स्टेडियम मे ,कोच एस आर सिंह की देखरेख मे ट्रेनिंग के लिए भेजा गया और परिणाम यह हुआ की कोच ने यादव जी की काबलियत को समझने मे कोई देर नहीं लगायी |फिर क्या होगा देखते देखते वह बेहतरीन मुक्खेभाज बन गए |उनकी जीवन की कहानी यहाँ से शुरू होती है | इस कामयाबी की राह तक पहुँचने मे उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा , लेकिन वो कभी उस राह से पीछे नहीं हटे |

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा[संपादित करें]

यादव जी के पिता का नाम स्वर्गीय श्री लोचन यादव है | वे हिन्दू राष्ट्रीयता को मानाने वालो में से एक है | उन्हें हिंदी एवं अंग्रेजी भाषाओ का ज्ञात है | वे आंध्रपदेश के उस्मानिया विश्विद्यालय में पूर्ण स्तानक हुए | सन्न २०००-२००१ में एन आईएएस पटियाला में ऐ ग्रेड के साथ खेल में डिप्लोमा किए | यादव बॉक्सिंग में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के एक प्रसिद्ध खिलाडी के प्रतिरूप माने गए है | उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलो (लाइट फलिवइट डिवीज़न ) मे कांस्य पदक को अपनाया सन्न १९९० ईस्वी मे | वे सन्न १९९५ ईस्वी मे पेशेवर बने |वे बेहतरीन कोचों मे एक माने जाते है | ९० के दशक मे धर्मेंद्र की गिनती दुनिया के बेहतरीन मुककेभाजो मे की जाती है |पूरे देश मे शायद ही ऐसा कोई मुक्खेभाज हो सकेगा जो उनके साथ ट्रेनिंग नहीं करना चाहते हो | यादव जी के चमकते आँखो मे सिर्फ एक ही सपना एवं लक्ष्य है , देश की मुक्खेभाजी मे पावर हाउस बनाना और वे इस तरफ एक कदम भी बड़ा चुके है |यादव जी भारतीय मुक्खेभाजो के टीम के साथ बतौर असिस्टेंट कोच के तौर काम कर रहे है |वे सबसे युवा अर्जुन अवार्ड पाने वाले पहले भारतीय मुक्खेभाज बने | यादव जी ने कभी भी अपने देश को निराश नहीं किया |प्रोफेशनल मुक्खेभाजी मे यादव जी का नाम छह शून्य का अन्बितेन रिकॉर्ड है जिसमे वो एक मुक्खेभाजी को नॉक आउट भी किये है |बॉक्सिंग के प्रथम मुकाबले मे ,इंग्लैंड के नील पैरी को ६-० से उन्होंने शिकस्त दी |रोवन अन्थोनी को २-० से हराया |इसी तरह आगे बढ़ते हुए इंग्लॅण्ड के शान नार्मन को १-० से हराया और पूरी दुनिया को अपना होने का एहसास कराया आज यादव असिस्टेंट कोच की तौर पर भारतीय बॉक्सिंग टीम के साथ काम कर रहे है |उनका लक्ष्य पूरे देश के मुक्खेभाजो को एक नई राह या दिशा तक पहुंचाना है जिसके लिए वे अपनी कड़ी मेहनत के साथ पटियाला मे नेशनल टीम और एसआर सिंह(चीफ कोच )के साथ मुक्खेभाजो को ट्रेनिंग दे रहे है |

विकास यात्रा और व्यवसाय[संपादित करें]

भारतीय मुक्खेभाजो के लिए राह कभी भी आसान नहीं होने वाली, क्योंकि इस बार मुकाबला कामनवेल्थ खेलो से ज्यादा मुश्किल होने वाली है| लकिन कोच यादव जी का साथ हमेशा भारतीय मुक्खेभाजो के साथ बना रहेगा | यादव जी को प्रतियोगिताओ का अच्छा ख़ासा अनुभव है , एक कोच और खिलाडी के होने के नाते |जो इस मुश्किल खेल मे उनके काम आएगी |जिस देश की बड़ी सी बड़ी प्रतियोगिताओ को जीतकर गौरव , सम्मान और आत्मविश्वास को अर्जित करने वाला खिलाडी एक तुच्छ नौकरी के लिए तरसे ,उसी देश में उनकी भलाई के लिए बड़े बड़े दावा करने वाले सरकारों एवं उनकी नियत पर सवाल उठता है | खेलो के लिए बड़ी बजट बनती है ,लेकिन खिलाडी का कितना भला होता ये हमें जानना है तो भारत के प्रथम एवं शानदार बॉक्सर यादव जी से बड़ा कोई उदहारण नहीं हो सकता |वो विरोधी को बेदम कर देते है | अपनी जीवन में उन्होंने टूर्नमेंट के द्वारा तिरंगे की शान को बढ़ाया | लेकिन अभी उनके अंदर डर है किसी विरोधी से नहीं अपने आप से , इस बात का कि उसकी बेरोजगारी और परिवार के लिए दो रोटी जुटाने की चिंता इस कदर न तोड़ दे की वो उन हाथो में हतियारे उठाये , जिन हाथो में न जाने देश के कितने मैडल जीते है | यही बात रही है धर्मेंद्र सिंह यादव जी की (भारत के प्रथम प्रोफेशनल बॉक्सर ) | बचपन से ही बॉक्सिंग का जूनून होने के कारण उन्हें अपने दौर का,भारत का सबसे बड़े मुक्खेभाज बना दिया | कड़ी मेहनत और खेल के प्रति समर्पित जीवन व्यतीत करने वाले यादव जी जल्द ही सफलता की शीर्ष पर पहुंचे |विरोधियो पर जब उनका पंच पड़ता था तो बचने के रास्ता खोजते थे | इसी पंच का असर था कि वे १९९० में पूरे विश्व युवा बॉक्सिंग चैंपियनशिप में सेमीफाइनल तक पहुँचने वाले भारत के पहले मुक्खेभाज बने|एक बार सफलता का सिलसिला शुरू नहीं हुआ कि बीतते दिन आगे बढ़ते ही गए | उन्होंने चैंपियनशिप , कामनवेल्थ जैसे न जाने कितने खेलो में पदक जीते और देश को गौरान्वित किया | समय की बीतते ही वे प्रोफेशनसल बॉक्सर बन गए |

बॉक्सिंग के प्रति जुनून[संपादित करें]

इसी सफलता के साथ वे छह के छह मुकाबले जीते | तभी ब्रिटिश रैंकिंग में और पैन आसिआन रैंकिंग में ७ नो. पर पहुंचे |लकिन कहा गया है कि " पुरूस्कार से शान तो बढ़ता है लेकिन पेट नहीं "| यादव जी के साथ यही हुआ | उन पर सम्मानो की बारिश छायी रही लेकिन परिवार का पालन पोषण के लिए वे नौकर का संघर्ष करते हुए दिखाई दे रहे है | अर्जुन अवार्डी धर्मेंद्र के सम्मान ,पत्नी और दो बच्चे को चलाने की चुनौती अब उनके सामने खड़ी है| बेरोजगारी के तोर पर न जाने अधिकारियो के कितने चक्कर काटे है | आज भी यादव जी ने उनके दरवाजे पर नौकर की बात को लेकर जाते है | ऐसा दिखाते है जैसे वह देश के मुक्खेभाजी के गौरव पुरुष नहीं कोई सड़क चाप इंसान है |परिवार चलाने की मजबूरी ने यादव जी को इस तरह तोड़कर रख दिया कि वो रोटी कि मजबूरी में अपराध की और कदम बढ़ाने का सोचते है | उन्हें डर लगता है कि कई वो क्रिमिनल न बन जाये | यादव जी जैसे खिलाड़ी देश के आन-बान और शान है | उन्हें रोजी रोटी के लिए मजबूर नहीं करना , उन्हें सहज कर रखना चाहिए | यकींन ना हो तो विकास कृष्ण से पूछे जो उनके रिओ ओलिंपिक में यादव जी को कुछ दिन कोचिंग के लिए मांगा था |सन्न १९९२ ईस्वी में यादव ने ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक में फलिवइट डिवीज़न में भागी हुए |वे पहले दौर में ही हंगरी के इस्तवान कोवाक्स के द्वारा पराजित हुए|

वे पाकिस्तान के एसएएफ खेलो में रजत पदक को हासिल किए है

उपलब्धियां[संपादित करें]

यादव जी को एशिया में प्रशंसित किया गया "सबसे वादा करने वाला बॉक्सर "का पदक भी प्राप्त हुआ |वे पाकिस्तान के एसएएफ खेलो में रजत पदक को हासिल किए है |हैदराबाद के इंडो एस्सस आर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उन्हें स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ | एशियाई चैंपियनशिप जो बीजिंग और चीन में हुआ था उसमे उन्हें कांस्य पदक मिला | सन्न १९९१ को एसीआई खेलो में भाग लिए जो चीन में आयोजित किया गया था | वे आकलैंड के आम धन खेलो में भी जीते, कांस्य पदक को |सन्न १९९३ को स्पेन में आयोजित ओलिंपिक खेलो में भाग लिए |सन्न १९९४ ईस्वी में थाईलैंड के किंग्सकेप इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भाग लिया |सन्न १९९० ईस्वी में ६ विश्वकप के पहले सेमीफइनल के लिए सबसे अधिक आशाजनक और युवा बॉक्सर के रूप में मुंबई में उन्हें पदक प्राप्त हुआ | ६ से १२ में , २००४ तक पाकिस्तान के ओलिंपिक ग्रीन हिल कप में ट्रेनर के रूप में भाग लिए |रिओ दी जेनेरो में अगले ओलंपिक तक भारतीय मुक्खेभाज टीम के साथ सहायक कोच के प्रतिरूप रहेंगे | सन्न २००३ से २००९ तक राष्ट्रीय बॉक्सिंग कोच के रूप में अनेक चैंपियनशिप में भाग लिया | दिल्ली में सन्न २००४ -२००५ की अवधि में जूनियर इंडियन बॉक्सिंग टीम चीफ के रूप में कार्य किये है |यादव जी सब मानव के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है |

निष्कर्ष[संपादित करें]

वह अपने काम में सच्चे थे, जो हम सबको उनकी और आकर्षित करती है | वह भारत को आगे बढ़ाने के एक प्रसिद प्रतिनिधि है |यादव जी से हमे ये प्रेरणा मिलती है कि यदि मानव में कड़ी मेहनत करने की चाहत हो तो, इस दुनियाँ में कुछ भी नामुनकिन नहीं है |हमे उनकी तरह दृढ़ एवं साहसी बनने का संकल्प लेना चाहिए ||

सन्दर्भ[संपादित करें]

[1][2]

  1. https://www.dnaindia.com › Topics
  2. https://en.wikipedia.org/wiki/Dharmendra_Singh_Yadav