लिपि (संस्कृत)

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संस्कृत शब्द 'लिपि' का अर्थ है 'लिखना' या वर्ण। वर्तमान समय में 'लिपि' का प्रयोग पाश्चात्य शब्द 'स्क्रिप्ट' (scripts) के समानार्थी भारतीय शब्द के रूप में होता है।

प्राचीन भारतीय लिपियाँ[संपादित करें]

अनेक प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में उस समय प्रचलित लिपियों के नामों का उल्लेख मिलता है। ललितविस्तर के दसवें अध्याय का नाम 'लिपिशाला समदर्शन परिवार्ता' है। इसमें उन ६४ लिपियों का उल्लेख है जिन्हें सिद्धार्थ ने अपने गुरुओं से गुरुकुल में सीखा था। ये ६४ लिपियाँ निम्नलिखित हैं-[1]

ब्राह्मी
खरोष्टी
पुष्करसारि
अङ्ग-लिपि
वङ्ग-लिपि
मगध-लिपि
मङ्गल्य-लिपि
अङ्गुलीय-लिपि
शकारि-लिपि
ब्रह्मवलि-लिपि
पारुष्य-लिपि
द्राविड-लिपि
किरात-लिपि
दाक्षिण्य-लिपि
उग्र-लिपि
संख्या-लिपि
अनुलोम-लिपि
अवमूर्ध-लिपि
दरद-लिपि
खाष्य-लिपि
चीन-लिपि
लून-लिपि
हूण-लिपि
मध्याक्षरविस्तर-लिपि
पुष्प-लिपि
देव-लिपि
नाग-लिपि
यक्ष-लिपि
गन्धर्व-लिपि
किन्नर-लिपि
महोरग-लिपि
असुर-लिपि
गरुड-लिपि
मृगचक्र-लिपि
वायसरुत-लिपि
भौमदेव-लिपि
अन्तरीक्षदेव-लिपि
उत्तरकुरुद्वीप-लिपि
अपरगोडानी-लिपि
पूर्वविदेह-लिपि
उत्क्षेप-लिपि
निक्षेप-लिपि
विक्षेप-लिपि
प्रक्षेप-लिपि
सागर-लिपि
वज्र-लिपि
लेखप्रतिलेख-लिपि
अनुद्रुत-लिपि
शास्त्रावर्तां
गणनावर्त-लिपि
उत्क्षेपावर्त-लिपि
निक्षेपावर्त-लिपि
पादलिखित-लिपि
द्विरुत्तरपदसंधि-लिपि
यावद्दशोत्तरपदसंधि-लिपि
मध्याहारिणी-लिपि
सर्वरुतसंग्रहणी-लिपि
विद्यानुलोमाविमिश्रित-लिपि
ऋषितपस्तप्तांरोचमानां
धरणीप्रेक्षिणी-लिपि
गगनप्रेक्षिणी-लिपि
सर्वौषधिनिष्यन्दा
सर्वसारसंग्रहणीं
सर्वभूतरुतग्रहणी

इसी प्रकार, जैनों के प्राकृत भाषा के ग्रन्थों 'पन्नवणा सुत्त' और 'समवायाङ्ग सुत्त' में १८ लिपियों के नाम दिए हैं जिनमें पहला नाम 'बंभी' (ब्राह्मी) है। उन्हीं के भगवतीसूत्र का आरम्भ 'नमो बंभीए लिबिए' (ब्राह्मी लिपि को नमस्कार) से होता है।

(1) बांभी = ब्राह्मी) (2) जवणालिया ("ग्रीक") (3) दासापुरीय [दोसापुरिया] (4) खरोट्ठी (= खरोष्ठी) (5) पुक्खरसारिया (6) भोगवैया
(7) पहाराइयाउ [पहाराईयाओ) (8) अंतरिकरिया [अंतक्खरिया] (9) अक्खरपुट्ठिया (10) वेणईया (11) निण्हईया (12) अंकलिवी
(13) गणितलिवी (14) गंधव्वलिवी (15) आयासलिवी [अयंसलिवी] (16) माहेसरी (17) दामिली (18) पोलिंदा (पोलिंदी][2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]