रामचन्द्रसूरि
रामचन्द्र सूरि एक जैन आचार्य थे जिन्होंने संस्कृत मे नाटकों की रचना की थी।
समय[संपादित करें]
रामचन्द्र सुरि का जन्म संवत १११० और मृत्यु संवत ११७३ को हुए थीं। सिद्धराज जयसिंह से इनकी मुलाकात संवत ११३५ में धाराविजय के समय हुई थी।
राज्याश्रय[संपादित करें]
रामचन्द्र सुरि को सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल का राज्याश्रय प्राप्त था। रामचन्द्र सुरि के के गुरु जैन आचार्य हेमचंद्र थे।
रुपक[संपादित करें]
- सत्यहरिश्चन्द्र नाटक - पुराणों आधारित इस नाटक में हरिश्चन्द्र की कथा दी गई है।
- नलविलास नाटक - महाभारत आधारित इस कथा में दमयंती विवाह से नल को पुनः राज्यप्राप्ति का वर्णन मिलता है।
- रघुविलास नाटक - राम वनवास से रावण वध की कथा दी गई है।
- राघवाभ्युदय नाटक - इसमें सीता स्वयंवर से रावण वध की कथा दी गई है।
- यादवाभ्युदय नाटक - इसमें कंसवघ , जरासंघ वघ और कृष्ण के अभिषेक की कथा दी गई है।
- यदुविलास नाटक - यह नाटक अप्राप्य है।
- कौमुदीमित्रानंद प्रकरण - कौमुदी और मित्रानंद के विवाह की कथा इसमे दी गयी हैं।
- रौहिणीमृगांक प्रकरण - यह नाटक अप्राप्य है।
- मल्लिकामकरंद प्रकरण - कथासरित्सागर के कथानक अनुसार इस नाटक में मल्लिका और मकरंद का विवाह होता है।
- निर्भयभीम व्यायोग - इसमें भीम द्वारा वनवास में बकासुर को मारने की कथा है।
- वनमाला नाटिका - यह नाटक अप्राप्य है।
काव्य[संपादित करें]
- सुधाकलश - १३०० श्लोक का सुभाषित ग्रंथ
- कुमारविहार शतक - राजा कुमारपाल की प्रशस्ति।
शास्त्र[संपादित करें]
- नाट्यदर्पण (गुणभद्र के साथ) - ४ विवेक और २३९ कारिका का नाट्य विषयक ग्रंथ।
- द्रव्यालंकार - जैन न्याय विषयक ग्रंथ।
- हेमबृहत्वृत्तिन्यास - व्याकरण विषयक ग्रंथ।
मृत्यु[संपादित करें]
अजयपाल राज्य प्राप्ति हेतु कुमारपाल और आचार्य हेमचंद्र को विष देकर मार डाला और अजयपाल ने सिंहासन हेतु संवत ११७३ को रामचन्द्र को मार डाला।