फीड्रिक आगस्ट केकुले

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फीड्रिक आगस्ट केकुले

फीड्रिक आगस्ट केकुले (जर्मन: Friedrich August Kekule von Stradonitz ; जर्मन उच्चारण : [ˈfriːdrɪç ˈaʊɡʊst ˈkekuːle fɔn ʃtraˈdoːnɪts] ; 1829-1896 ई.) विख्यात रसायनशास्त्री। सन् १८५० से लेकर मृत्युपर्यन्त वे यूरोप के सबसे महान रसायनशास्त्री रहे। रासायनिक संरचना का सिद्धान्त मुख्यतः उनकी ही देन है। केकुले द्वारा प्रस्तुत बेंज़ीन संरचना संबंधी सिद्धांत कार्बनिक रसायन की महत्वपूर्ण कड़ी थी।

परिचय[संपादित करें]

इसका जन्म डार्मस्टैट (Darmstadt) (जर्मनी) में 7 सिंतबर, 1829 ई. को हुआ था। उसका विचार शिल्पी बनने का था, किंतु गीस्सेन (Giessen) में शिल्पकला का अध्ययन करते समय उसका संपर्क तत्कालीन प्रसिद्ध रसायनज्ञ लीविख (Liebig) से हुआ। उन्होंने केकुले की रुचि रसायन के प्रति आकर्षित की। उनकी प्रेरणा पर केकुले पेरिस आया और उसने रेनो, फ्रेमी और बुर्टज़ के व्याख्यान सुने और ज्हेरार (Gerhardt) से उसकी मित्रता हुई। पश्चात्‌ वह स्विट्ज़रलैंड और इंग्लैंड गया और वहाँ के प्रसिद्ध रसायनज्ञों के संपर्क में आया। जर्मनी लौटने पर उसने हाइडलबर्ग में एक छोटी सी प्रयोगशाला स्थापित की। 1858 ई. में घेंट (Ghent) तथा 1865 ई. में बॉन (Bonn) विश्वविद्यालय में रसायन का अध्यापक रहा। 13 जून 1896 ई. को बान में उसकी मृत्यु हुई।

कार्बन की संयोजकता पर फ्रैंकलैंड आदि जो कार्य कर रहे थे, उसमें केकुले ने भी योग दिया। 1858 ई. में कार्बन की चतु:संयोजकता के आधार पर परमाणुओं के संयोजन को समझाने का प्रयत्न इन्होंने किया तथा संवृत और विवृत श्रृंखला के यौगिकों की कल्पना पहली बार प्रस्तुत की। इसी सिलसिले में इन्होंने बेनज़ीन की प्रस्तावना की। यह कार्य इतने महत्व का था कि प्रोफेसर जैप ने, जिन्होंने केकुले की मृत्यु पर लंदन केमिकल सोसायटी में सन्‌ 1897 में भाषण दिया था, कहा कि कार्बनिक रसायन का तीन चौथाई भाग प्रत्यक्ष रूप से, या परोक्ष रूप से, केकुले के बेंज़ीन संरचना संबंधी विचारों और परिकल्पनाओं का ऋणी है।

केकुले द्वारा प्रतिपादित बेंजीन का सूत्र

केकुले द्वारा प्रस्तुत बेनज़ीन संरचना संबंधी सिद्धांत हमारी सहायता न करता तो कोलतार से संबंध रखनेवाले सहस्रों उपयोगी यौगिकों की संभावना भी नहीं प्रतीत हुई होती।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]