नवगुंजर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नवगुंजर

नवगुंजर [1] हिंदू धर्म में नौ विभिन्न पशुओं से बना एक पौराणिक प्राणी है।

भारतीय राज्य ओडिशा की पट्टचित्र शैली में इस पशु का एक सामान्य रूपांकन है। प्राणी को भगवान विष्णु या कृष्ण का रूप माना जाता है। इसे कृष्ण के विश्वरूप का एक रूप माना जाता है, जिसे वे अर्जुन को प्रदर्शित करते हैं, जैसा कि महाकाव्य महाभारत के एक भाग भगवद्गीता में वर्णित है। [2]

साहित्य[संपादित करें]

नवगुंजर के रूप में जगन्नाथ

ओड़िया कवि सारला दास द्वारा लिखित हिन्दू महाकाव्य महाभारत का संस्करण, नवगुंजर की कथा का वर्णन करता है; किसी अन्य संस्करण में यह कहानी नहीं है। एक बार, जब अर्जुन एक पहाड़ पर तपस्या कर रहे थे, कृष्ण-विष्णु उन्हें नवगुंजारा के रूप में दिखाई दिए। नवगुंजर के पास एक कुक्कुट का शिर है, और वह तीन पैरों पर खड़ा है, जो एक हाथी, बाघ और हरिण या घोड़े का है; चौथा अंग एक उठा हुआ मानव हाथ है जिसमें कमल या पहिया होता है। प्राणी की गर्दन मोर की, पीठ या कुब्ज बैल की और कमर सिंह की होती है; पूंछ एक नागिन है। प्रारम्भ में, अर्जुन भयभीत होने के साथ-साथ अजीब जीव से मन्त्रमुग्ध था और उसे मारने के लिए अपना धनुष उठाता है। अन्त में, अर्जुन को पता चलता है कि नवगुंजर विष्णु का एक रूप है और उसके सामने झुकते हुए अपने हथियार गिरा देता है।

दृश्य कला तथा आकृति[संपादित करें]

पट्टचित्र में नवगुंजर

नौ रूप[संपादित करें]

इस पूरे ब्रह्माण्ड में ९ अंक को पवित्र और सभी प्रकार की शक्तियों का स्थूल रूप तथा इसे हम सब शक्ति का पहला चरण भी कह सकते हैं। ९ अंक को मानव की चेतना का अन्तिम स्तर भी कहा जाता है। यही एकमात्र ऐसा अंक हे जो कभी भी स्वयं को प्रत्यक्ष नहीं दर्शाता है। तथा ज्योतिष शास्त्र में भी इसे केतु का अंक माना जाता है। केतु एक ऐसा ग्रह है जो अपने भीतर काफी रहस्यों को दर्शाता है। जैसे हम सब नवदुर्गा एवं नवनाथ को जानते है। ठीक वैसे ही नवगुंजर अवतार भी नौ रूप में विभाजित हे।

नौ भागो का रहस्य[संपादित करें]

भगवान नवगुंजर के गूढ़ रहस्य को तथ्य रूप से स्पष्ट किया जाए तो ये काफी हद तक समझ आती है की ये अवतार विराट स्वरूप का एक भाग है जो शून्य के तेज को धारण करता है। एवं उनका मुख चारो युगों के हर एक क्षण की निगरानी करता है। उनका नीला भाग कालान्तर में परिवर्तन होने वाले ब्रह्माण्ड के हर एक कण धारण किए हुए हैं। तथा जिस कुबड़ को तुम देख रहे हो वो नई संस्कृति एवं पुरातन कला को धारण किए रहते हैं। जो सिर्फ तभी अपनी चाल की गति को प्रारब्ध करता है, जब ज्ञान और कर्म में सामंजस्य रूप में प्रयोग किया जाए। और उनके जो तीन पैर हे एक हाथी जो सत्व गुण को धारण करता हैं, दुसरे में शेर का पैर जो तमस गुण को धारण करता है, तीसरे में हिरण जो रजत गुण को धारण करता है। तथा इन तीनों में सामान्यता से प्राणी प्रकृति के प्रभाव से जीवित है। तथा जो चौथा अंग है वो मानव स्वयं हे जो चैतन्य कमल के समान है। और अंत में जो नागिन हे वो सृष्टि के विमुख माया का रुप से जो धर्म एवं कर्म दोनों में उलझाकर रखने में सक्षम है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Chaudhury, Swaati (May 4, 2014). "Odissi fabric with a spiritual touch". Deccan Herald.
  2. Cesarone, Bernard (2001). "Pata-Chitras of Orissa: An Illustration of Some Common Themes". journal. /www.asianart.com. अभिगमन तिथि 2008-10-12.