चेरुशेरी नम्बूतिरी
यह लेख अंग्रेजी भाषा में लिखे लेख का खराब अनुवाद है। यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखा गया है जिसे हिन्दी अथवा स्रोत भाषा की सीमित जानकारी है। कृपया इस अनुवाद को सुधारें। मूल लेख "अन्य भाषाओं की सूची" में "अंग्रेजी" में पाया जा सकता है। |
इस लेख को व्याकरण, शैली, संसंजन, लहजे अथवा वर्तनी के लिए प्रतिलिपि सम्पादन की आवश्यकता हो सकती है। आप इसे संपादित करके मदद कर सकते हैं। (नवम्बर 2015) |
चेरुशेरी नम्बूतिरी | |
---|---|
चेरुशेरी नम्बूतिरी | |
व्यवसाय | मलयालम कवि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
लेखन काल | १३७५-१४७५ |
उल्लेखनीय कार्य | कृष्ण गाथा |
उल्लेखनीय सम्मान | वीरस्रिम्कला |
चेरुशेरी नम्बूतिरी (१३७५-१४७५) कृष्ण गाथा के लेखक है।[1] इस महाकाव्य को मलयालम महीने के दौरान कृष्ण की पूजा के एक अधिनियम के रूप में भारत में किया जाता है। चेरुशेरी नम्बूतिरी १३७५ और १४७५ ए.डी के बीच रहता करते है। चेरुशेरी उनका पैतृक इल्लम का नाम है।। उनका जन्म कन्नूर जिले उत्तर मलबार के कोलत्तुनाडु के कानत्तूर ग्राम में हुआ। अनेक विद्वानों की राय यह है की वो पूनत्तिल नम्बूतिरी के अलावा अन्य कोई नही है। वह एक अदालत कवी और कोलत्तुनाडु की उदयवर्मा राजा के आश्रित थे।
प्रमुख साहित्यिक कृतियों
[संपादित करें]चेरुशेरी का सबसे बड़ा कृति " कृष्ण गाधा " एक महाकव्य है। यह मलयालम के पहले महाकाव्य है। राजा " वीरस्रिम्कला" और अन्य सम्मान के साथ उसे उपहार में दिया। कुछ विद्वानों का सोच है उन्होनें "चेरुशेरी भारतम" भी लिखा है। चेरुशेरी मलयालम में कविता लेखन के गाधा शैली के प्रवर्तक है। कृष्ण गाथा " भागवत पुराण " के दसवें सर्ग के आधार पर भगवान कृष्ण के बचपन शरारतों की कहानी है। यह कहा जाता है कि चेरुशेरी ने एक माँ अपने बच्छे को सोया करने के लिये गाया लोरी से प्रेरित थे। उन्होनें अपनी रचना के लिये इस छंद पद्ध्ति का इस्तेमाल किया। कृष्ण गाथा में, हम एक बोलने का ढंग देख सकते है, जो वर्तमान काल के समान है। विषय प्रभु श्री कृष्ण की कहानी से संबंधित है। इस कृति " एरुत्तच्छन " के "आध्यात्म रामायण " के समान केरल के लोगों द्वारा सम्मानित किया गया है।" एरुत्तच्छन आधुनिक मलयालम साहित्य के पिता के रूप में जाना जाता है "। यह माना जाता है की चेरुशेरी उत्तर केरल के कुम्ब्रनातु तालुक के पूनम में मलयालम कैलेंडर में वर्ष ६५० के आसपास रहते थे। इस कवी के जीवन के बारे में इतिहास में दर्ज कोई ज्यादा विवरण नही है। लेकिन अगर हम कृष्ण गाथा को ध्यान से अध्ययन करे पता चलता चेरुशेरी एक गहरी सौंदर्य बोध के कवि थे। कृष्ण गाथा "मंजरी" के रूप में जाना जाता एक मधुर छंद में लिखा है। इस कविता भर विशेषण के भव्य उपयोग के साथ लंबा सुंदर वर्णन भी है जो इस रचना काफी रोचक और मनोरंजक बना देता है। जुनून, भक्ति, हास्य और गर्मजोशी की भावनाओं सभी इस कविता में एक वरिष्ठ स्तर में खोज कर रहे है। भागवत पुराण के आधार पर भगवान श्री कृष्ण स्वर्ग की प्राप्त सहित के पूरे जीवन इस रचना में इतने भक्ती के साथ चर्चा की है कि कैसे अच्छी तरह से करने के लिये के रूप में अकथनीय है।
समापन
[संपादित करें]भाषा में साहस के साथ नहीं लेकिन भाषा में नम्रता के साथ चेरुशेरी केरलवासियों का दिल जीत लिया और केरल का गौरव बन गया। श्री चिराक्कल बालकृष्णन नायर चेरुशेरी नंबूतिरी और अपने कृतियों के बारे में अनुसंधान कार्यों में बहुमूल्य योगदान दिया था। चिराक्कल बालकृष्णन नायर चेरुशेरी पर अध्ययन में एक आधिकारिक स्रोत के रूप में माना जाता है। चिराक्कल के लेख केरल साहित्य अकादमी, त्रिशूर द्वारा प्रकाशित किया है। चेरुशेरी केरल में रह चुके सभी महानतम कवियों में एक है। उनके ग्रंथों ने केरल राज्य की आबादी के लिये खुशी और गर्व लाया है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 नवंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 नवंबर 2015.