बलवंत पांडुरंग अण्णा साहब किर्लोस्कर

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अण्णा साहब किर्लोस्कर

बलवंत पांडुरंग अण्णा साहब किर्लोस्कर (1843-1885 ई0) मराठी रंगमंच के आदि संगीत-नाटककार थे।

आपका जन्म महाराष्ट्र के बेलगाँव जिले के एक गाँव में हुआ था। विद्याध्ययन के लिए 1863 में पूना भेजे गए किंतु संगीत और नाटक में आरंभ से ही रुचि होने के कारण स्कूली पढ़ाई में मन नहीं लगा। पढ़ाई छोड़कर आपने अध्यापक, सिपाही आदि की नौकरी की पर उनके जीवन का विकास नाटक के क्षेत्र में ही हुआ। उन्होंने 1866 में भारत शास्त्रोत्तेजक मंडली की स्थापना की और अपने लिखे नाटक श्री शंकर-दिग्विजय और 'अलाउद्दीन' का मंचन किया। इसमें उन्हें पर्याप्त सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर किर्लोस्कर संगीत नाटक मंडली के नाम से एक व्यावसायिक संस्था की स्थापना की और 1880 ई. में पूना में अभिज्ञान शाकुंतल का मराठी संगीत रूपक संगीत शाकुंतल प्रस्तुत किया। इस नाटक की सफलता ने मराठी रंगमंच में एक नया युग उपस्थित कर दिया। किर्लोस्कर ने 'संगीत शाकुंतल' के अतिरिक्त सौभद्र रामराज्य वियोग आदि अन्य कई नाटक लिखे और वे सभी समादरित हुए।

42 वर्ष की अवस्था में आपका 2 नवंबर 1885 ई. में देहांत हो गया।

मराठी रंगमंच का इतिहास[संपादित करें]

1843 में, उसी वर्ष जिसमें किर्लोस्कर का जन्म हुआ था, विष्णुदास भावे ने नाटक सीता स्वयंवर (सीतास्वयंवर) का मंचन करके मराठी नाटकों की प्रस्तुति की शुरुआत की, सांगली की रियासत के राजा तब दर्शकों के बीच उपस्थित थे।

बेलगाम में एक स्कूल शिक्षक के रूप में काम करते हुए, किर्लोस्कर ने 1866 में भारतशास्त्रोत्तेजक मंडली की स्थापना की। सात साल बाद, उन्होंने अपने पहले गद्य नाटक श्री शंकर दिग्विजय (श्रीशंकर दिग्विजय) की रचना को कोल्हापुरकर नाटक मंडली द्वारा सार्वजनिक प्रस्तुति के लिए पूरा किया। ) 1874 के आसपास, उन्होंने किर्लोस्कर नाटक मंडली (किरहोस्कर नाट्य मंडली) की स्थापना की।

1879 में, नाटककार और निर्माता त्रिलोककर ने स्वतंत्र रूप से मराठी जनता के लिए अपना संगीत नाटक नल-दमयंती (नल-दमयंती) प्रस्तुत किया। यह मराठी मंच पर पहला संगीतमय नाटक था।


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