खपरैल

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खपरैल से ढकी हुई घर की छत

किसी मिट्टी, पत्थर, धातु, काच आदि कठोर पदार्थ से बने टुकड़े को खपरे या खपरैल (टाइल) कहते हैं। ग्रामीण भारत में घरों पर छाया का मुख्य साधन है, उपयोग प्रायः छत, फर्श, दीवार आदि ढकने में होता है।

भारतीय खपरैल और चौके[संपादित करें]

भारतवर्ष में मिट्टी की पकाई हुई खपरैल तथा चौके तीन प्रकार के बनाए जाते है :

  • (१) छत के लिए विभिन्न प्रकार की खपरैलें तथा चौके
  • (२) फर्श के लिए चौके
  • (३) नाली के लिए नाल तथा अर्धगोल खपरैल आम भाषा मे घारिया बोला जाता है।

इनके अलावा चीनी मिट्टी के ग्लेज किए हुए तथा सीमेंट के चौके फर्श तथा दीवाल पर जड़ने के लिए भी बनाए जाते हैं, जो कई आकृतियाँ तथा रंगों के होते हैं।

तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्र में खपरैल की छत

छत छाने के लिए ऐसबेस्टस तथा अन्य वस्तुओं के भी तरह तरह के चौके अथवा टाइलें भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं के लिए प्रयोग में आती हैं जैसे संगमरमर, स्लेट, टेराकोटा इत्यादि के चौके।

मिट्टी के चौके और खपरैल प्राय: उसी प्रकार बनाई जाती हैं जैसे ईंट पर इनके बनाने में अधिक मेहनत और ध्यान देना पड़ता है। इन खपरैलों तथा चौकों की तरह तरह की डिजाइनों के लिए फर्मा बहुत सावधानी से तथा सच्चा बनाना पड़ता है और उनके पकाने और निकासी में बहुत सावधानी रखनी पड़ती है।

भारत में छत छाने के लिए स्थानीय देशी खपरैल से लेकर स्यालकोट, इलाहाबाद, मंगलोर इत्यादि में अच्छे मेल की खपरैल काफी बनती थीं, पर इनका प्रचलन अब धीरे-धीरे सीमेंट कंक्रीट तथा प्रबलित ईटों (reinforecd-bricks) के कारण कम होता जा रहा है।

देशी खपरैलों में दो प्रकार की खपरैलें अधिक प्रचलित हैं। एक में दो अधगोली नालीदार खपरैलें एक दूसरे पर आैंधाकर रख दी जाती हैं। दूसरे में दो चौकोर चौके, जिनके किनारे, थोड़ा सा ऊपर मुड़े रहते हैं, अगल बगल रखकर उन दोनों के ऊपर एक अधगोली खपरैल उलटकर रख दी जाती है, जिससे दोनों चौकों के बीच की जगह ढक जाए। करीब १,२०० खपरैलें १०० वर्गफुट छत छाने के लिए अपेक्षित होती हैं।

मँगलोर चौके चिपटे होते हैं। इनमें आपस में एक दूसरे को फँसाने के लिए खाँचा बना रहता है। करीब १३० दक्षिणी चौके या १०० कानपुरी चौके १०० वर्गफुट छत छाने के लिए आवश्यक होते हैं।

विभिन्न प्रकार के खपरैल

इलाहाबादी टाइल से एकहरी या दोहरी छवाई की जाती है। उभरे हुए भाग (ridge), कटि प्रदेश (hip) तथा निम्न भूमि (valley) के लिए विशेष टाइलें बनानी पड़ती हैं। नाली के लिए जो टाइल या चौके बनते हैं, या तो चिपटे

बनाकर सुखाने तथा पकाने से पहले लकड़ी के गोल फर्मे पर मोड़ लिए जाते हैं, अथवा आरंभ में ही अधगोले के आकार में मशीन द्वारा ढाल लिए जाते हैं। ग्लेज़ किए हुए चीनी मिट्टी के चौके महँगे होते हैं और स्नानागार अस्पताल तथा अन्य स्थानों पर सौंदर्य तथा सफाई के विचार से फर्श या दीवाल में सीमेंट द्वारा बैठा दिए जाते हैं। अब सीमेंट के मोज़ेइक टाइल भी बहुत बनने लगे हैं और इनका प्रचलन दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। ये सब कई डिजाइनों तथा रंगों के बनते हैं और इनसे बने फर्श बहुत सुंदर लगते हैं।