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"ध्रुवीय ज्योति": अवतरणों में अंतर

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| caption3 = विश्व भर से लिये गये ध्रुवीय ज्योति के चित्र
| caption3 = Aurora australis from the [[International Space Station|ISS]], 2017. Video of this encounter: [https://eol.jsc.nasa.gov/BeyondThePhotography/CrewEarthObservationsVideos/videos/slights_iss_20170817/slights_iss_20170817.mp4]
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[[File:Virmalised 18.03.15 (2).jpg|300px|thumb|इस्टोनिया से दिखती ध्रुवीय ज्योति]]
'''ध्रुवीय ज्योति''' ({{lang-en|Aurora}}, ऑरोरा), या मेरुज्योति, वह रमणीय दीप्तिमय छटा है जो ध्रुवक्षेत्रों के [[वायुमंडल]] के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को '''सुमेरु ज्योति''' ([[अंग्रेजी]]: aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को '''कुमेरु ज्योति''' ([[अंग्रेजी]]: aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। प्राचीन रोमवासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन दृश्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है। दक्षिण गोलार्धवालों ने कुमेरु ज्योति का कुछ स्पष्ट कारणों से वैसा व्यापक और रोचक वर्णन नहीं किया है, जैसा उत्तरी गोलार्धवलों ने सुमेरु ज्योति का किया है। इनका जो कुछ वर्णन प्राप्य है उससे इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि दोनों के विशिष्ट लक्षणों में समानता है।
'''ध्रुवीय ज्योति''' ({{lang-en|Aurora}}, ऑरोरा), या मेरुज्योति, वह रमणीय दीप्तिमय छटा है जो ध्रुवक्षेत्रों के [[वायुमंडल]] के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को '''सुमेरु ज्योति''' ([[अंग्रेजी]]: aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को '''कुमेरु ज्योति''' ([[अंग्रेजी]]: aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। प्राचीन रोमवासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन दृश्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है। दक्षिण गोलार्धवालों ने कुमेरु ज्योति का कुछ स्पष्ट कारणों से वैसा व्यापक और रोचक वर्णन नहीं किया है, जैसा उत्तरी गोलार्धवलों ने सुमेरु ज्योति का किया है। इनका जो कुछ वर्णन प्राप्य है उससे इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि दोनों के विशिष्ट लक्षणों में समानता है।


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परिणामस्वरुप हुए वायुमंडलीय कणों के हुए [[आयनीकरण]] तथा संदीपन के कारण अलग-अलग रंगों के प्रकाश का उत्सर्जन होता है। दोनों ही ध्रुवीय क्षेत्र के आसपास की पट्टियों के निकट ऑरोरा का निर्माण कणों के अप्रत्याशित वेग के त्वरण पर भी निर्भर करता है। टकराने वाले [[हाइड्रोजन]] के परमाणु वायुमंडल से इलेक्ट्राॅन पुनः प्राप्त करने के पश्चात् आवेशित प्रोटॉन सामान्यतः प्रकाशीय उत्सर्जन करते हैं। प्रोटॉन ध्रुवीय ज्योति प्रायः निम्न अक्षांशों से देखे जा सकती हैं।<ref>{{cite web|url=http://auspace.athabascau.ca/handle/2149/518 |title=Simultaneous ground and satellite observations of an isolated proton arc at sub-auroral latitudes |publisher=Journal of Geophysical Research |date=2007 |accessdate=5 अगस्त 2015}}</ref>
परिणामस्वरुप हुए वायुमंडलीय कणों के हुए [[आयनीकरण]] तथा संदीपन के कारण अलग-अलग रंगों के प्रकाश का उत्सर्जन होता है। दोनों ही ध्रुवीय क्षेत्र के आसपास की पट्टियों के निकट ऑरोरा का निर्माण कणों के अप्रत्याशित वेग के त्वरण पर भी निर्भर करता है। टकराने वाले [[हाइड्रोजन]] के परमाणु वायुमंडल से इलेक्ट्राॅन पुनः प्राप्त करने के पश्चात् आवेशित प्रोटॉन सामान्यतः प्रकाशीय उत्सर्जन करते हैं। प्रोटॉन ध्रुवीय ज्योति प्रायः निम्न अक्षांशों से देखे जा सकती हैं।<ref>{{cite web|url=http://auspace.athabascau.ca/handle/2149/518 |title=Simultaneous ground and satellite observations of an isolated proton arc at sub-auroral latitudes |publisher=Journal of Geophysical Research |date=2007 |accessdate=5 अगस्त 2015}}</ref>


==पार्थिव ध्रुवीय ज्योति की घटना==
सुमेरु ज्योति के अनेक रूप होते हैं। स्टॉर्मर (Stormer) ने इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया है :
अधिकांश ध्रुवीय ज्योति पट्टिका में उत्पन्न होती है जिसे "ध्रुवीय ज्योतिय पट्टिका" कहते हैं।<ref name="feldstein86">{{cite journal |last=Feldstein |first=Y. I. |year=2011 |title=A Quarter Century with the Auroral Oval |journal=EOS |volume=67 |issue=40 |page=761 |doi=10.1029/EO067i040p00761-02 |bibcode=1986EOSTr..67..761F }}</ref> यह प्रायः अक्षांशों में 3° से 6° तक तथा ध्रुवों पर 10° तथा 20° के मध्य चौड़ी होती है। यह रात के समय काफ़ी साफ़ दिखाई पड़ती है। वह क्षेत्र जहाँ वर्त्तमान में ऑरोरा की घटना घटित होती है उसे "ध्रुवीय ज्योतिय अंडाकार" कहते हैं।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.com/books?id=9gLwCAAAQBAJ&pg=PA190|title=Illustrated Glossary for Solar and Solar-Terrestrial Physics|last=Bruzek|first=A.|last2=Durrant|first2=C. J.|date=2012|publisher=Springer Science & Business Media|isbn=978-94-010-1245-4|page=190}}</ref>


उत्तरी अक्षांशों पर यह प्रभाव उत्तरी प्रकाश (northern lights) से जाना जाता है। 1619 ईस्वी में [[गैलिलियो]] ने इसका पूर्व नाम [[प्राचीन रोम|रोमन]] देवी तथा उत्तरी पवन के यूनानी भाषी नाम पर रखा था।<ref>{{Cite book |doi=10.1029/HG002p0011 |chapter=An historical footnote on the origin of 'aurora borealis' |title=History of Geophysics: Volume 2 |journal=History of Geophysics: Volume 2. Series: History of Geophysics |volume=2 |pages=11–14 |series=History of Geophysics |year=1986 |last1=Siscoe |first1=G. L. |isbn=978-0-87590-276-0|bibcode = 1986HGeo....2...11S }}</ref> इसका दक्षिणी समकक्ष, दक्षिणी प्रकाश (southern lights) की विशेषताएँ भी उत्तरी प्रकाश के लगभग समान होती हैं।<ref>{{Cite journal |doi=10.1016/j.jastp.2006.05.026 |title=Auroral conjugacy studies based on global imaging |journal=Journal of Atmospheric and Solar-Terrestrial Physics |volume=69 |issue=3 |pages=249 |year=2007 |last1=Østgaard |first1=N. |last2=Mende |first2=S. B. |last3=Frey |first3=H. U. |last4=Sigwarth |first4=J. B. |last5=Åsnes |first5=A. |last6=Weygand |first6=J. M. |bibcode=2007JASTP..69..249O}}</ref> दक्षिणी प्रकाश [[अंटार्कटिका]], [[चिली]], [[अर्जेंटीना]], [[न्यूज़ीलैंड]] तथा [[ऑस्ट्रेलिया]] जैसे उच्च दक्षिणी अक्षांशों पर दिखते हैं।
(क) किरणसंरचना प्रदर्शित करनेवाली ज्योति - इसके अंतर्गत कॉरोना (कांतिचक्र) किरण और तथाकथित परिच्छद (draparies) हैं।


[[भूचुम्बकीय झंझा]] के कारण ध्रुवीय ज्योतिय अंडाकार (उत्तर व दक्षिण) निम्न अक्षांशों तक भी विस्तृत हो जाते हैं। इस काल में ध्रुवीय ज्योति सबसे अच्छी दिखाई पड़ती है, जिसे [[चुम्बकीय मध्यरात्रि]] कहते हैं।
(ख) किरणसंरचना न प्रदर्शित करनेवाली ज्योति - इसके अंतर्गत समांग चाप (homogeneous arcs), समांग पट्ट (bands) और स्पंदमान (pulsating) पृष्ठ हैं। वेगॉर्ड (Vegord) ने ज्योति को (अ) शांत और (आ) चल रूपों में वर्गीकृत किया है।


<div style="overflow:auto;">
[[अंतरराष्ट्रीय भूपृष्ठ तथा भूभौतिक संघ]] (International Geodetic and Geophysical Union) द्वारा स्वीकृत प्रतीकों के साथ विविध ज्योतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है :


{{multiple image
1. समांग चाप एच ए (HA) - इनकी सीमाएँ पर्याप्त स्पष्ट होती हैं। ये आकाश में कुछ दिशाओं में फैले होते हैं और चाप का उच्चतम बिंदु चुंबकीय याम्योत्तर (meridian) पर होता है। दीप्त चाप ऊपरी भाग हरा, मध्य भाग पीला और निचला भाग सामान्यत: लाल होता है।
| title = [[एक्सपेडिशन 28]] के सदस्य दल द्वारा अन्तरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से लिये गये दक्षिणी प्रकाश के वीडियो
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| caption1 = This sequence of shots was taken 17 September 2011 from 17:22:27 to 17:45:12 GMT,<br>on an ascending pass from south of [[Madagascar]] to just north of [[Australia]] over the [[Indian Ocean]]
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| caption3 = This sequence of shots was taken 11 September 2011 from 13:45:06 to 14:01:51 GMT, from a descending pass near eastern Australia, rounding about to an ascending pass to the east of [[New Zealand]]
}}
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| title = [[नेशनल ओशिनिक एण्ड अट्मोसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन|NOAA]] के उत्तर अमेरिका तथा यूरेशिया के मानचित्र
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| footer = These maps show the local midnight equatorward boundary of the aurora at different levels of geomagnetic activity.<br>A Kp=3 corresponds to low levels of geomagnetic activity, while Kp=9 represents high levels.
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| alt1 = Kp map of North America
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===चित्र===
2. सकिरण चाप आर ए (RA) - इनसे किरणें पहिए के अरों (spokes) के समान अपसृत होती हैं।
<gallery mode="packed" widths="180" heights="180">

File:Aurora Australis From ISS.JPG|[[भूचुम्बकीय झंझा]] के समय ध्रुवीय ज्योति, आईएसएस द्वारा 24 मई 2010 को लिया गया चित्र
3. स्पंदमान चाप पी ए (PA) - ये स्पंदित होकर और दमककर कुछ ही सेकंड में लुप्त हो जाते हैं।
File:DEaurora.gif|उच्च कक्षीय में स्थापित उपग्रह डीई-1 द्वारा दृश्य ध्रुवीय ज्योतिय विखंडन

File:Virmalised 18.03.15 (2).jpg|[[एस्टोनिया]] से दिखती ध्रुवीय ज्योति
4. किरण आर (R) - ये अकेली या झुंड में बड़ी राशि में प्रकट हो सकती हैं। ये एकमात्र शांत (केवल प्रकट और लुप्त होनेवाली), या तेजी से चलनेवली, हो सकती हैं।
</gallery>

5. परिच्छद डी (D) - ये बहुत लंबी किरणों से बने और पर्दे सदृश होते हैं। कभी कभी किरणें चुंबकीय बलरेखाओं का अनुसरण करती हुई पंखे जैसी दिखाई पड़ती हैं।

6. किरीट या कॉरोना सी (C) - ये अत्यंत उच्च अक्षांशों पर, जहाँ चुंबकीय बलरेखा, भूपृष्ठ पर प्राय: अभिलंब होती हैं, दिखाई पड़ते हैं। प्रेक्षक के चुंबकीय शिरोविंदु के पास ही आकाश के किसी निश्चित विंदु से किरीट किरण की धाराएँ फैलती हैं।

7. समांग पट्ट एच बी (H B) और किरण संरचना पट्ट, आर बी (R B) - ये चाप की दिशा में ही फैलते हैं।

8. स्पंदमान पी एस (P S) या स्पंदहीन डी एस (D S) विसरित दीप्तिमय पृष्ठ - यह अनिश्चित आकार और स्पष्ट सीमाओं का दीप्त मेघ सा दिखाई पड़ता है।

9. दुर्बल दीप्ति जी (G) - यह क्षितिज के निकट चाप के ऊपरी भाग में उषाकाल के समान प्रतीत होती है।

उपर्युक्त वर्णित विविध प्रकार की ज्योतियों में संरचनायुक्त या संरचनाविहीन चाप, पट्ट और परिच्छद ही अधिक सामान्य हैं, जबकि स्पंदमान पृष्ठ और किरणें बहुत कम दिखाई पड़ती हैं।

== मेरुज्योति की विशेषताएँ ==
चुंबकीय निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर मेरुज्योति की आवृत्ति क्रमश: बढ़ती जाती है और ध्रुवीय क्षेत्रों में सर्वाधिक होती है। ऊँचाई के साथ मेरुज्योति के वितरण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि मेरु ज्योति की घटना 90 और 130 किलोमीटर के बीच होती है। स्टॉर्मर के अनुसार मेरुज्योति की निम्नसीमा 80 किलोमीटर की ऊँचाई है। चाप, पट्ट और परिच्छद क्षैतिज दिशा में चुंबकीय याम्योत्तर के लगभग समकोण की दिशा में फैलते हैं और किरणधाराएँ चुंबकीय बलरेखाओं के साथ साथ न्यूनाधिक क्षैतिज दिशाओं में फैलती हैं। वास्तविक दिशा स्थान पर निर्भर करती है। यह महत्व की बात है कि किरणधारा के विकिरणविंदु का चुंबकीय शिरोविंदु से संपतन (coincidence) होता है। मेरुज्योतीय सक्रियता में दैनिक और मौसमी परिवर्तन देखे जाते हैं। आधी रात के ठीक पहले स्पष्ट दैनिक प्रमुख उच्चतम और प्रात: दुर्बल उच्चतम सक्रियता होती है। निम्न अक्षांशों की वार्षिक आवृत्ति में दो उच्चतम सक्रियताएँ होती हैं जिनका विषुवों (equinoxes) से संपतन होता है। ज्यों-ज्यों हम मेरुज्योतीय क्षेत्र की ओर बढ़ते हैं ये उच्चतम सक्रियताएँ एक दूसरे के निकट आती जाती हैं और उच्चतम सक्रियता मध्य जाड़े में होती है। मेरुज्योतीय सक्रियता सुज्ञात 11 वर्षीय और सक्रियता का अनुसरण करती है और जब बड़े-बड़े सूर्य धब्बों के समूह सूर्य के केंद्रीय याम्योत्तर के निकट से गुजरते हैं, उसी समय इस घटना के होने की प्रवृत्ति होती है। चुंबकीय विक्षोभ के समान ही 27 दिनों बाद पुन: मेरुज्योतीय सक्रियता की प्रवृत्ति देखी जाती है। क्यूरी (Currie) एवं एडवर्ड (Edward) के अनुसार निर्मित चित्र ऊपर दिया है, जिस से मेरुज्योतीय, चुंबकीय और भौमधारा सक्रियताओं में साम्य का पता चलता है। पार्थिव चुंबकीय विक्षोभ और ध्रुवीय प्रकाश दोनों ही दृश्य घटनाओं का मूल तीव्र वेग से आविष्ट सूर्य की कणिकाओं को माना जाता है। इन दृश्य घटनाओं की व्याख्या के लिए अनेक सिद्धांत प्रतिपादित हुए हैं, जिनमें चैपमैन (Chapman) और फेरारो (Ferraro) का सिद्धांत, जिसे बाद में मांर्टिन (Martyn) ने पल्लवित किया, सर्वाधिक संतोषप्रद और महत्वपूर्ण है।


==सन्दर्भ==
==सन्दर्भ==

11:55, 9 जनवरी 2019 का अवतरण

Images of auroras from around the world, including those with rarer red and blue lights cimage3 = Aurora australis ISS.jpg

ध्रुवीय ज्योति (अंग्रेज़ी: Aurora, ऑरोरा), या मेरुज्योति, वह रमणीय दीप्तिमय छटा है जो ध्रुवक्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। प्राचीन रोमवासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन दृश्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है। दक्षिण गोलार्धवालों ने कुमेरु ज्योति का कुछ स्पष्ट कारणों से वैसा व्यापक और रोचक वर्णन नहीं किया है, जैसा उत्तरी गोलार्धवलों ने सुमेरु ज्योति का किया है। इनका जो कुछ वर्णन प्राप्य है उससे इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि दोनों के विशिष्ट लक्षणों में समानता है।

ध्रुवीय ज्योति का निर्माण तब होता है जब चुम्बकीय गोला सौर पवनों द्वारा पर्याप्त रूप से प्रभावित होता है तथा इलेक्ट्राॅनप्रोटॉन के आवेशित कणों के प्रक्षेप पथ को सौर पवनों तथा चुम्बकगोलीय प्लाज्मा उन्हें अप्रत्याशित वेग से वायुमंडल के ऊपरी सतह (तापमण्डल/बाह्यमण्डल) में भेज देते हैं। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश के कारण इनकी ऊर्जा क्षय हो जाती है।

परिणामस्वरुप हुए वायुमंडलीय कणों के हुए आयनीकरण तथा संदीपन के कारण अलग-अलग रंगों के प्रकाश का उत्सर्जन होता है। दोनों ही ध्रुवीय क्षेत्र के आसपास की पट्टियों के निकट ऑरोरा का निर्माण कणों के अप्रत्याशित वेग के त्वरण पर भी निर्भर करता है। टकराने वाले हाइड्रोजन के परमाणु वायुमंडल से इलेक्ट्राॅन पुनः प्राप्त करने के पश्चात् आवेशित प्रोटॉन सामान्यतः प्रकाशीय उत्सर्जन करते हैं। प्रोटॉन ध्रुवीय ज्योति प्रायः निम्न अक्षांशों से देखे जा सकती हैं।[1]

पार्थिव ध्रुवीय ज्योति की घटना

अधिकांश ध्रुवीय ज्योति पट्टिका में उत्पन्न होती है जिसे "ध्रुवीय ज्योतिय पट्टिका" कहते हैं।[2] यह प्रायः अक्षांशों में 3° से 6° तक तथा ध्रुवों पर 10° तथा 20° के मध्य चौड़ी होती है। यह रात के समय काफ़ी साफ़ दिखाई पड़ती है। वह क्षेत्र जहाँ वर्त्तमान में ऑरोरा की घटना घटित होती है उसे "ध्रुवीय ज्योतिय अंडाकार" कहते हैं।[3]

उत्तरी अक्षांशों पर यह प्रभाव उत्तरी प्रकाश (northern lights) से जाना जाता है। 1619 ईस्वी में गैलिलियो ने इसका पूर्व नाम रोमन देवी तथा उत्तरी पवन के यूनानी भाषी नाम पर रखा था।[4] इसका दक्षिणी समकक्ष, दक्षिणी प्रकाश (southern lights) की विशेषताएँ भी उत्तरी प्रकाश के लगभग समान होती हैं।[5] दक्षिणी प्रकाश अंटार्कटिका, चिली, अर्जेंटीना, न्यूज़ीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे उच्च दक्षिणी अक्षांशों पर दिखते हैं।

भूचुम्बकीय झंझा के कारण ध्रुवीय ज्योतिय अंडाकार (उत्तर व दक्षिण) निम्न अक्षांशों तक भी विस्तृत हो जाते हैं। इस काल में ध्रुवीय ज्योति सबसे अच्छी दिखाई पड़ती है, जिसे चुम्बकीय मध्यरात्रि कहते हैं।

एक्सपेडिशन 28 के सदस्य दल द्वारा अन्तरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से लिये गये दक्षिणी प्रकाश के वीडियो
This sequence of shots was taken 17 September 2011 from 17:22:27 to 17:45:12 GMT,
on an ascending pass from south of Madagascar to just north of Australia over the Indian Ocean
This sequence of shots was taken 7 September 2011 from 17:38:03 to 17:49:15 GMT,
from the French Southern and Antarctic Lands in the South Indian Ocean to southern Australia
This sequence of shots was taken 11 September 2011 from 13:45:06 to 14:01:51 GMT, from a descending pass near eastern Australia, rounding about to an ascending pass to the east of New Zealand
NOAA के उत्तर अमेरिका तथा यूरेशिया के मानचित्र
Kp map of North America
North America
Kp map of Eurasia
यूरेशिया
These maps show the local midnight equatorward boundary of the aurora at different levels of geomagnetic activity.
A Kp=3 corresponds to low levels of geomagnetic activity, while Kp=9 represents high levels.

चित्र

सन्दर्भ

  1. "Simultaneous ground and satellite observations of an isolated proton arc at sub-auroral latitudes". Journal of Geophysical Research. 2007. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2015.
  2. Feldstein, Y. I. (2011). "A Quarter Century with the Auroral Oval". EOS. 67 (40): 761. डीओआइ:10.1029/EO067i040p00761-02. बिबकोड:1986EOSTr..67..761F.
  3. Bruzek, A.; Durrant, C. J. (2012). Illustrated Glossary for Solar and Solar-Terrestrial Physics. Springer Science & Business Media. पृ॰ 190. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-94-010-1245-4.
  4. Siscoe, G. L. (1986). "An historical footnote on the origin of 'aurora borealis'". History of Geophysics: Volume 2. History of Geophysics: Volume 2. Series: History of Geophysics. History of Geophysics. 2. पपृ॰ 11–14. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-87590-276-0. डीओआइ:10.1029/HG002p0011. बिबकोड:1986HGeo....2...11S.
  5. Østgaard, N.; Mende, S. B.; Frey, H. U.; Sigwarth, J. B.; Åsnes, A.; Weygand, J. M. (2007). "Auroral conjugacy studies based on global imaging". Journal of Atmospheric and Solar-Terrestrial Physics. 69 (3): 249. डीओआइ:10.1016/j.jastp.2006.05.026. बिबकोड:2007JASTP..69..249O.

बाहरी कड़ियाँ