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हिंदी पखवाड़ा

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भारत सरकार के सभी कार्यालयों, उपक्रमों, उद्यमों, संस्थाओं में हिंदी पखवाड़ा हर वर्ष 14 सितंबर से 28 सितंबर अथवा 1 सितंबर से 14 सितंबर तक मनाया जाता है। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार के केंद्रीय गृह मन्त्री जी का संदेश 14 सितंबर को प्रकाशित किया जाता है। केद्रीय हिंदी समिति के अध्यक्ष के नाते भारत के प्रधान मंत्री जी तथा महामहिम राष्ट्रपति जी का संदेश भी जारी किया जाता है। राजभाषा हिंदी के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए हिंदी पखवाडे के दौरान अनेक हिंदी कार्यक्रम, प्रतियोगिताएँ, कवि सम्मेलन, संगोष्ठी, भारतीय स्तर पर हर विभाग द्वारा राजभाषा सम्मेलन भी आयोजित करने का प्रावधान है। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में हिंदी में अधिक कार्य करनेवाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सम्मानित किया जाता है। यह देखा जाता है कि हिंदी पखवाड़े के दौरान कार्यालयों में हिंदी पत्राचार में कितना प्रतिशत कार्य बढ गया है। मा, संसदीय राजभाषा निरीक्षण समिति कार्यालय का निरीक्षण करते समय इस बात पर उचित ध्यान देती है। हिंदी पखवाडे का आयोजन कार्यालय की सुविधानुसार हिंदी दिवस के पहले या बाद में किया जाता है।

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  • हिन्दी दिवसहिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितम्बर 1949 को भारत की संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्त्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था।

वर्ष 1949 में स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर 14 सितम्बर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में इस प्रकार वर्णित है। संघ की राष्ट्रभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया, इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। हालांकि जब राष्ट्रभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेज़ी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। इस कारण हिन्दी में भी अंग्रेज़ी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा।