"मध्यनूतन युग": अवतरणों में अंतर
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'''मध्यनूतन कल्प''' (Miocene Period) तृतीय महाकल्प आज से पाँच करोड़ वर्ष पूर्व आरंभ होता है। इस महाकल्प का सामयिक विभाजन जीवविकास के आधार पर, सर चार्ल्स लॉयल ने 1833 ई में तीन भागों, आदिनूतन (Eocene), मध्यनूतन (Miocene) और अतिनूतन (Pliocene) में किया था। इसके पश्चात् दो अन्य कल्प भी इसके अंतर्गत ले लिए गए। मध्यनूतन कल्प अल्पनूतन (Oligocene) कल्प के बाद आरंभ होता है। इसका समय आज से 2 1/2 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है। इस समय के शैलसमूह पृथ्वी पर बिखरे हुए पाए जाते हैं, जिनसे यह विदित होता है कि ये किसी बड़े जलसमूह या समुद्र में नहीं बने हैं, अपितु छोटी छोटी झीलों में इनका निक्षेपण हुआ है। इसका मुख्य कारण पृथ्वी के धरातल का शनै: शनै: ऊँचा होना है। यूरोप में ऐल्पस् और एशिया में हिमालय के प्रकट हो जाने से, वहाँ का जलसमूह या तो सूख गया था, या छोटी छोटी झीलों में परिवर्तित हो गया, जिसके फलस्वरूप इस कल्प के शैलसमूहों का समस्तरक्रम (homotaxis) केवल उनमें पाए जानेवाले फॉसिलों के द्वारा हो सकता है। |
'''मध्यनूतन कल्प''' (Miocene Period) तृतीय महाकल्प आज से पाँच करोड़ वर्ष पूर्व आरंभ होता है। इस महाकल्प का सामयिक विभाजन जीवविकास के आधार पर, सर चार्ल्स लॉयल ने 1833 ई में तीन भागों, आदिनूतन (Eocene), मध्यनूतन (Miocene) और अतिनूतन (Pliocene) में किया था। इसके पश्चात् दो अन्य कल्प भी इसके अंतर्गत ले लिए गए। मध्यनूतन कल्प अल्पनूतन (Oligocene) कल्प के बाद आरंभ होता है। इसका समय आज से 2 1/2 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है। इस समय के शैलसमूह पृथ्वी पर बिखरे हुए पाए जाते हैं, जिनसे यह विदित होता है कि ये किसी बड़े जलसमूह या समुद्र में नहीं बने हैं, अपितु छोटी छोटी झीलों में इनका निक्षेपण हुआ है। इसका मुख्य कारण पृथ्वी के धरातल का शनै: शनै: ऊँचा होना है। यूरोप में ऐल्पस् और एशिया में हिमालय के प्रकट हो जाने से, वहाँ का जलसमूह या तो सूख गया था, या छोटी छोटी झीलों में परिवर्तित हो गया, जिसके फलस्वरूप इस कल्प के शैलसमूहों का समस्तरक्रम (homotaxis) केवल उनमें पाए जानेवाले फॉसिलों के द्वारा हो सकता है। |
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13:53, 7 अगस्त 2010 का अवतरण
मध्यनूतन कल्प (Miocene Period) तृतीय महाकल्प आज से पाँच करोड़ वर्ष पूर्व आरंभ होता है। इस महाकल्प का सामयिक विभाजन जीवविकास के आधार पर, सर चार्ल्स लॉयल ने 1833 ई में तीन भागों, आदिनूतन (Eocene), मध्यनूतन (Miocene) और अतिनूतन (Pliocene) में किया था। इसके पश्चात् दो अन्य कल्प भी इसके अंतर्गत ले लिए गए। मध्यनूतन कल्प अल्पनूतन (Oligocene) कल्प के बाद आरंभ होता है। इसका समय आज से 2 1/2 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है। इस समय के शैलसमूह पृथ्वी पर बिखरे हुए पाए जाते हैं, जिनसे यह विदित होता है कि ये किसी बड़े जलसमूह या समुद्र में नहीं बने हैं, अपितु छोटी छोटी झीलों में इनका निक्षेपण हुआ है। इसका मुख्य कारण पृथ्वी के धरातल का शनै: शनै: ऊँचा होना है। यूरोप में ऐल्पस् और एशिया में हिमालय के प्रकट हो जाने से, वहाँ का जलसमूह या तो सूख गया था, या छोटी छोटी झीलों में परिवर्तित हो गया, जिसके फलस्वरूप इस कल्प के शैलसमूहों का समस्तरक्रम (homotaxis) केवल उनमें पाए जानेवाले फॉसिलों के द्वारा हो सकता है।
मध्यनूतन कल्प के जीव एवं वनस्पतियाँ
यद्यपि इस समय का जलवायु शीतोष्ण था, फिर भी कुछ पौधों, जैसे सीनामोमम (Cinnamomum), के कहीं कहीं पर मिलने से यह मालूम होता है कि जलवायु समशीतोष्ण भी था। इस कल्प की वनस्पति में बाँज़, एल्म (elm), भुर्ज (birch), बीच (beech), ऐल्डर (alder), होली (holly), आइवी (ivy) आदि मुख्य थे। अकेशरुकी में प्रवाल और एकाइनॉड विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मध्यनूतन कल्प के फॉसिलों में स्तनधारियों की संख्या अत्यधिक थी। इनमें सूँड़वाले जीव, जैसे मैस्टोडॉन तथा डाइनोथेरियम भी थे। घोड़ों का विकास चरम सीमा पर पहुँच चुका था।
विस्तार एवं कालविभाजन
मध्यनूतन कल्प के शैलसमूह यूरोप, एशिया, ऑस्टे्रलिया, न्यूज़ीलैंड, उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका, मेक्सिको और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं। समय के अनुसार इनका वर्गीकरण पाँच अवधियों में किया जाता है। भारत में कल्प अक्षारजलीय निक्षेप से, जो शिवालिक प्रणाली के अंतर्गत हैं, निरूपित होता है। इस युग की शिलाएँ सिंध, बलुचिस्तान, कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, प्रदेश एवं असम में स्थित हैं। सिंध में गजशैल समूह, बलूचिस्तान में बुग्ती शैलस्तर, कश्मीर और पंजाब में मरी श्रेणी, शिमला में दगशाई और कसौली श्रेणी तथा असम में सूर्मा श्रेणी इसी कल्प के शैलस्तर हैं। इस युग के आरंभ में आग्नेय उद्भेदन भी हुए, जिनके उदाहरण भारत के उत्तरपश्चिमी भागों में मिलते हैं।