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'''गोस्वामी श्री हरिरायजी''' (संवत १६४७ – १७७२) (सन १५९१-१७१६) सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी के [[पुष्टिमार्ग]] [[आचार्य]], विद्वान, धर्मोपदेशक, अनेक ग्रंथों के रचयिता और [[संस्कृत]], [[प्राकृत]], [[गुजराती]] तथा [[ब्रजभाषा]] के [[साहित्यकार]] थे।<ref> श्रीहरिरायजी का जीवन चरित्र - ‘प्रगटे पुष्टिमहारस देन’, श्रीवल्लभ स्मृति ग्रंथमाला, पुष्प ९, श्रीवल्लभ-ग्रन्थ-प्रकाशन कार्यालय, सूरत, १९८५ </ref> <ref>श्री हरिरायजी - <https://pushtimarg.net/personalities/shri-hariraiji> </ref> वे महाप्रभु [[वल्लभाचार्य]] के पुत्र गोस्वामी [[विट्ठलनाथ]] (गुसाईं जी) के द्वितीय पुत्र गोस्वामी गोविन्दराय जी के पौत्र और गोस्वामी कल्याणराय जी तथा श्रीमती यमुना बहूजी के पुत्र थे। उनका जन्म आश्विन (गुर्जर कलेंडर के अनुसार भाद्रपद) कृष्ण पंचमी, विक्रम संवत १६४७ (तदनुसार सन १५९१) को गोकुल में हुआ था।<ref> श्रीहरिरायजी महाप्रभुजी का जीवन चरित्र - ‘प्रगटे पुष्टिमहारस देन’, श्रीवल्लभ स्मृति ग्रंथमाला, पुष्प ९, श्रीवल्लभ-ग्रन्थ-प्रकाशन कार्यालय, सूरत, १९८५ </ref> |