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सम्भल, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मण्डल में स्थित एक जिला है। सतयुग में इस स्थान का नाम सत्यव्रत था, त्रेता में महदगिरि, द्वापर में पिंगल और कलयुग में सम्भल है। इसमे ६८ तीर्थ और १९ कूप हैं यहां एक अति विशाल प्राचीन मन्दिर है, इसके अतिरिक्त तीन मुख्य शिवलिंग है, पूर्व में चन्द्रशेखर, उत्तर में भुबनेश्वर और दक्षिण में सम्भलेश्वर हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल चतुर्थी और पंचमी को यहाँ मेला लगता है और यात्री इसकी परिक्रमा करते हैं। सम्भल में रेलवे स्टेशन पर मुग़ल सम्राट बाबर द्वारा बनवाई गई "बाबरी मस्जिद" भी है। यह कृषि उत्पादों का व्यावसायिक केंद्र भी है। टॉलमी द्वारा उल्लिखित संबकल को संभल से समीकृत किया जाता है। यहाँ ऐसी पौराणिक मान्यता है कि कलियुग में कल्कि अवतार शंबल नामक ग्राम में होगा। लोक मान्यता में सम्भल को ही शंबल माना जाता है। मध्यकाल में सम्भल का सामरिक महत्त्व बढ़ गया, क्योंकि यह आगरा व दिल्ली के निकट है। सम्भल की जागीर बाबर के आक्रमण के समय अफ़गान सरदारों के हाथ में थी। बाबर ने हुमायूँ को संभल की जागीर दी लेकिन वहाँ वह बीमार हो गया, अतः आगरा लाया गया। इस प्रकार बाबर के बाद हुमायूँ ने साम्राज्य को भाइयों में बाँट दिया और सम्भल अस्करी को मिला। शेरशाह सूरी ने हुमायूँ सूरी को खदेड़ दिया और अपने दामाद मुबारिज़ ख़ाँ को सम्भल की जागीर दी। अब्बास ख़ाँ शेरवानी के अनुसार बाबर के सेनापतियों ने यहाँ कई मन्दिरों को तोड़ा था और जैन मूर्तियों का खण्डन किया था।
इतिहास
सम्भल एक पुराना उपनिवेश है जो मुस्लिम शासन के समय भी महत्वपूर्ण था व सिकंदर लोदी की १५वीं सदी के अंत व १६वीं सदी के शुरू में प्रांतीय राजधानियों में से एक था। यह प्राचीन शहर एक समय महान चौहान सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राजधानी भी था व संभवतः यह वहीं है जहाँ वह अफगानियों द्वारा द्वितीय युद्घ में मारे गए। "मकान टूटे लोग झूठे" के लिए भी इसे जाना जाता है लेकिन इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। कुछ निवासियों के द्वारा इसका वर्तमान में सत्य होने का दावा किया जाता है। १९९१ की जनगणना में सम्भल को पूरे देश में न्यूनतम साक्षरता वाला पाया गया था। लेकिन समय के साथ स्थितियों में सुधार आया है।