"मजरुह सुल्तानपुरी": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
No edit summary
छो Bot: Migrating 2 interwiki links, now provided by Wikidata on d:q1715105 (translate me)
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
[[श्रेणी:गीतकार]]
[[श्रेणी:गीतकार]]
[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]
[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]

[[de:Majrooh Sultanpuri]]
[[en:Majrooh Sultanpuri]]

08:28, 7 अप्रैल 2013 का अवतरण

मजरुह सुल्तानपुरी हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं ।मजरूह तरक्की पसंद तहरीक के उर्दू के सबसे बड़े शायर थे। उन्होïने अपनी रचनाओï के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया है ये लब्बोलुआब है। ये सारांश है गनपत सहाय परास्नातक कालेज मेï 'मजरूह सुल्तानपुरी गजल के आइने मेï' विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयोï के शिक्षाविदोï ने इस सेमिनार मेï हिस्सा लिया और कहा कि वे ऐसी शख्सियत थे। जिन्होïने उर्दू को एक नयी ऊंचाई दी है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा गनपत सहाय कालेज मेï मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। लखनऊ विश्वविद्यालय की उर्दू विभागाध्यक्ष डा.सीमा रिजवी की अध्यक्षता व गनपत सहाय कालेज की उर्दू विभागाध्यक्ष डा.जेबा महमूद के संयोजन मेï राष्ट्रीय सेमिनार को सम्बोधित करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो.अली अहमद फातिमी ने कहा मजरूह सुल्तानपुर मेï पैदा हुए और उनके शायरी मेï यहां की झलक साफ मिलती है। वे इस देश के ऐसी तरक्की पसंद शायर हैï जिनकी वजह से उर्दू को नया मुकाम हासिल हुआ। उनकी मशहूर लाइनों 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये और करवां बनता गया' का जिक्र भी वक्ताओं ने किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.मलिक जादा मंजूर अहमद ने कहा कि यूजीसी ने मजरूह पर राष्ट्रीय सेमिनार उनकी जन्मस्थली सुल्तानपुर में आयोजित करके एक नयी दिशा दी है।

मजरूह सुलतानपुरी ने पचास से ज्यादा सालों तक हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे। आजादी मिलने से दो साल पहले वे एक मुशायरे में हिस्सा लेने बम्बई गए थे और तब उस समय के मशहूर फिल्म-निर्माता कारदार ने उन्हें अपनी नई फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने का अवसर दिया था। उनका चुनाव एक प्रतियोगिता के द्वारा लिखा गया था। इस फिल्म के गीत प्रसिद्ध गायक सहगल ने गाए थे। ये गीत थे-गम दिए मुस्तकिल और जब दिल ही टूट गया जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। इनके संगीतकार नौशाद थे।

जिन फिल्मों के लिए आपने गीत लिखे उनमें से कुछ के नाम हैं-सी.आई.डी., चलती का नाम गाड़ी, नौ-दो ग्यारह, पेइंग गेस्ट, काला पानी, तुम सा नहिं देखा, दिल देके देखो, दिल्ली का ठग, इत्यादि। पंडित नेहरू की नीतियों के खिलाफ एक जोशीली कविता लिखने के कारण मजरूह सुलतानपुरी को सवा साल जेल में रहना पड़ा। 1994 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फालके पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व 1980 में उन्हें ग़ालिब एवार्ड और 1992 में इकबाल एवार्ड प्राप्त हुए थे। वे जीवन के अंत तक फिल्मों से जुड़े रहे। जून 2000 में उनका देहांत हो गया।


हस्ताक्षर

बाहरी कड़ियाँ